थैलेसीमिया विकार के लिए एक नए युग की शुरुआत
8 मई विश्व थैलेसीमिया दिवस पर विशेष
स्तम्भ: आधुनिक चिकित्सा को रोगियों के लिए सुलभ और सस्ता बनाने के वैश्विक प्रयास का समय) “स्वस्थस्य स्वास्थ्य रक्षणं, आतुरस्य विकार प्रशमनं।” (चरक संहित सूत्र ३०।२६)
अर्थात: चिकित्सा शास्त्र की हर विधा का उद्देश्य एक स्वस्थ व्यक्ति को स्वस्थ रखना और किसी व्यक्ति में प्रकट होने वाली बीमारियों (मन, शरीर या दोनों) को प्रबंधित करना या ठीक करना है।
उपर्युक्त सूक्ति को ध्यान में रखते 8 मई को हर साल विश्व थैलेसिमाय दिवस मनाया जाता है। इस दिवस को मनाने का सबसे बड़ा उद्देश्य यह है कि लोगों को रक्त संबंधित गंभीर बीमारी थैलेसीमिया के प्रति जागरुक करना है।
थैलेसीमिया विकार
थैलेसीमिया एक पुरानी रक्त विकार होने के साथ साथ यह एक वंशानुगत विकार है जो माता-पिता से बच्चों में जीन के माध्यम से पारित होता है।, जिसके कारण रोगी में लाल रक्त कोशिकाओं (आर.बी.सी.) में पाए जाने वाले पर्याप्त हीमोग्लोबिन को नहीं बन पाता है। इससे मरीज को एनीमिया होता है और गंभीर रोगियों को जीवित रहने के लिए हर दो से तीन सप्ताह में रक्त की अत्यंत आवश्यकता होती है। इस रोग की गंभीरता जीन में शामिल उत्परिवर्तन और उनके परस्पर क्रिया पर निर्भर करती है।
थैलेसीमिया के प्रकार
चिकित्सा विज्ञान के वैज्ञानिकों के मतानुसार यह रोग मुख्यतः तीन प्रकार का होता है।
थैलेसीमिया माइनर
थैलेसीमिया माइनर में, हीमोग्लोबिन जीन, गर्भाधान के दौरान माता-पिता से बच्चों में जीन के माध्यम से पारित होता है । एक जीन में थैलेसीमिया लक्षण वाले लोगों को वाहक के रूप में जाना जाता है या कहा जाता है कि उन्हें थैलेसीमिया माइनर है। थैलेसीमिया माइनर कोई बीमारी नहीं है और उन्हें केवल हल्का एनीमिया है।
थैलेसीमिया इंटरमीडिया
इस श्रेणी में ऐसे मरीज आते हैं जिनमें लक्षण हल्के से लेकर गंभीर विकार तक के पाये जाते हैं।
थैलेसीमिया मेजर
यह थैलेसीमिया सेका सबसे गंभीर रूप है। यह तब होता है जब एक बच्चे को दो उत्परिवर्तित जीन विरासत में मिलते हैं, प्रत्येक माता-पिता में से एक। मरीजों को थैलेसीमिया मेजर वाले बच्चे जीवन के पहले वर्ष के भीतर गंभीर एनीमिया के लक्षण विकसित करते हैं। जीवित रहने के लिए या अस्थि मज्जा बाधाओं के लिए उन्हें नियमित रूप से संक्रमण की आवश्यकता होती है और लोहे के अधिभार और अन्य जटिलताओं का खतरा होने लगता है।
थैलेसीमिया से पीड़ित रोगी के लक्षण
- अगर चिकित्सकों की माने तो इस विकार में निम्न लक्षण देखने को मिलते हैं।
- बार बार बीमार होना
- सर्दी, जुकाम लगातार बना रहना
- कमजोरी और उदासी का बने रहना
- शारारिक विकाश का आयु के अनुसार न होना
- कमजोर हड्डियां
- पीली त्वचा
- अपर्याप्त भूख, एवम अन्य कई लक्षण पाये जाते हैं।
तथ्य और आंकड़े:
राष्ट्रीय स्वास्थ्य पोर्टल, विश्व स्वास्थ्य संगठन, रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्र के आंकड़ों के अनुसार
- भारत में थैलेसीमिया का पहला मामला 1938 में सामने आया था
- देश भर में १,००,००० से अधिक मरीज २० वर्ष की आयु से पहले ही मर जाते हैं।
- भारत में हर साल थैलेसीमिया से पीड़ित 10,000 बच्चे पैदा होते हैं।
- भारत हर महीने 40 मिलियन वाहक और 1,00,000 से अधिक थैलेसीमिया मेजर के साथ दुनिया में थैलेसीमिया की राजधानी है।
थैलेसीमिया का संभावित उपचार
चिकित्सक की निरंतर निगरानी में सामान्य तौर पर इस बीमारी से पीड़ित व्यक्ति को विटामिन, आयरन, सप्लीमेंट्स और संतुलित आहार लेने की सलाह दी जाती है। जबकि गंभीर विकार की हालात में खून बदलने, बोनमैरो ट्रांसप्लांट और पित्ताशय की थैली को हटाने के लिए सर्जरी का सहारा लिया जाता है।
इस बीमारी से बचने के लिए व्यक्ति को कम वसा वाली व हरी पत्तेदारी सब्जियां खानी चाहिए। इसके अलावा आयरन युक्त फूड्स का सेवन, मछली और नॉनवेज चीजों का सेवन, नियमित योग और व्यायाम करना चाहिए। थैलेसीमिया से बचने के लिए माता-पिता को समय-समय पर ब्लड टेस्ट करवाते रहना चाहिए। इसके अलावा बच्चा होने के बाद उसका भी सही तरीके से ब्लड टेस्ट करवाना चाहिए। साथ ही प्रेग्नेंसी के चार महीने के बाद भ्रूण का परीक्षण करवाना चाहिए। शादी से पहले लड़का-लड़की का ब्लड टेस्ट करवाना चाहिए। विशेषतः रोगी चिकत्सक से परामर्श के बाद ही किसी भी उपचार को अपने जीवन मे शामिल करें।
लॉकडाउन एंवम थैलेसीमिया
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(लेखक प्राध्यापक, भौतिक विज्ञान, डॉलफिन महाविद्यालय, देहरादून है)