ज्ञानेंद्र शर्मादस्तक-विशेषराष्ट्रीयस्तम्भ

जब प्यार हुआ इस पिंजरे से…

ज्ञानेन्द्र शर्मा

प्रसंगवश

जब प्यार हुआ इस पिंजरे से
तुम कहने लगे आजाद रहो
हम कैसे भुलाएं प्यार तेरा
तुम अपनी जुबां से ये न कहो
अब तुम सा जहां में कोई नहीं
है, हम तो तुम्हारे हो बैठे
तुम कहते हो कि ऐसे प्यार
को भूल जाओ, भूल जाओ …

लखनऊ : तो क्या 20-20 आईपीएल मैचों की तरह इस 2020 साल की तकनीकी विदाई जल्दी ही हो जाएगी? उसका सारा मजा, सारी मौज मस्ती अब यहीं खत्म होने वाली है? अब हमें कई विषेशज्ञ यह सलाह दे रहे हैं कि कम से कम एक साल बाहर का खाना मत खाओ, बेवजह घुमक्कड़ी न करो, कम से कम दो साल विदेश न जाओ, शाकाहारी भोजन पर निर्भरता बढ़ाओ, शादी विवाहों, मिलन समारोहों से दूर रहो, भीड़ भाड़ में घुसो नहीं और हां मुंह ढककर रखो यानी मास्क पहिनकर रखोे। बहुत सारी आजादियां इस बाकी साल में छिनने वाली हैं लेकिन दूसरे फायदों के मुकाबलेे वे ज्यादा महंगी नहीं पड़ेंगी।

एक हफ्ते में इस लाॅकडाउन को हम बाई बाई करेंगे तो क्या हमें इसकी याद नहीं आएगी? जरा गौर करिए हमने इस समय को कितने सुकून से गुजारा और कुछ छुटपुट बाधादौड़ों को छोड़कर हमें उसका साथ अच्छा लगने लगा।

अपराधों में कमी, भीड़ से मुक्ति, आंखों में जलन पैदा करने वाला धुआं नदारद, नाइट्रोजन और कार्बन डाय आक्साइड के दमघोंटू जहर से छुटकारा, सड़कों पर गंदगी गायब, अनुशासन की वापसी और जगह जगह भीड़ के चलते मारामारी के अदृश्य हुए नजारे। धूल-धक्कड़ नहीं, भागमभागी नहीं, धक्कामुक्की नहीं। सड़कों को जुलूसों के चलते, गाड़ियों की रेस के रहते दम नहीं मिलता था, हमारे माथों की लकीरें तनावों से छुटकारा पाने का नाम नहीं लेती थीं। लेकिन तब जाकर पेड़ों को, चिड़ियों को आॅक्सीजन वाली सांस मिली। इस डेढ़ पौने दो महीने ने हमारी और सबकी दुनिया बदल डाली।

गंगा का पानी आचमन लायक हुआ, नदियों में मछलियों की अटखेलियां वापस लौटीं, कई कई सौ मीलों की दूरी से हिमालय पर जमी बर्फ दिखने लगी, पवित्र धामों के दर्शन मैदानी इलाकों से ही होने लग गए, स्कूलों तक की बच्चों की दौड़ कम हो गई और वे घरों में ही इंटरनेट के माध्यम से पढ़ने लगे। जरूरी सामान घरों पर ही मिलने लगा।और हमारे बटुओं को आराम मिला। होटल, सिनेमा, बार, सैर सपाटा का खर्च बचा तो हम इस हाल में आए कि कुछ पैसा बचा लें। वेतन कम हुआ, पेट्रोल महंगा हुआ पर इन मदों पर कम खर्च होने से जान में जान आई। हो सकता है कि आगे आयकर में कमी हो, कृषि उत्पादों पर कर घटें, बहुत से आयात शुल्क कम हों। लेकिन बहुत से त्यागों के लिए हमें व्यापक हितों में तैयार भी रहना होगा।

सत्तारूढ़ राजनीतिक नेतृत्व को भी बहुत सारी आजादियां हासिल हो जाएंगी और विरोधी आवाजें म्यूट मोड में रहने को मजबूर होंगी। यह अच्छा भी है और खराब भी। अब देखिए श्रमिक कानूनों में इतने व्यापक परिवर्तन कर दिए गए, पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ गए पर विपक्ष से वैसा शोर नहीं उठा जो सामान्य काल में उठता था। पता नहीं, इन अहम मुद्दों पर भी विरोधी गले रूंधे हुए क्यों थे।

कुछेक आवाजें सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने उठाईं जरूर लेकिन उनकी हमेशा की तरह की आवाजों से ज्यादा प्रासांगिक नहीं थीं। आखिर सरकार कोे तमाम कर बढ़ाने के लिए विधानसभा की तरफ मुंह नहीं ही करना पड़ा। ट्रेड यूनियन गतिविधियां मंद पड़ जाएंगी, यह भविष्यवाणी करना बहुत मुश्किल काम नहीं है। सत्तारूढ़ भाजपा से जुड़े श्रमिक संगठनों ने विरोध के कुछ स्वर उठाए हैं पर उनमें ताकत नहीं दिखी।

इस बीच सरकार ने दो अच्छी पहल कर विपक्षी विरोध को कुंद किया है। एक तो उसने हजारों हजार प्रवासी मजदूरों को वापस लेने का पूरा वादा किया है और उनके लिए बसों व रेलगाड़ियों का इंतजाम किया है। दूसरे ऐसे उपाय करने का वादा किया है कि कोई 20 लाख ऐसे मजदूरों को रोजगार उपलब्ध कराएंगे।

अब जबकि हम लाॅकडाउन की समाप्ति से मात्र सात दिन दूर हैं, हमें उसका कैदखाना अच्छा लगने लगा है तो बहुत आश्चर्य की बात नहीं है।
और अंत में:- आज बरबस मशहूर फिल्म ‘दिल एक मंदिर’ का वो नायाब गीत याद आ ही जाता है जो हसरत जयपुरी ने लिखा था और बेहतरीन अदाकारा मीना कुमारी के लिए लता जी ने गाया थाः

जब प्यार हुआ इस पिंजरे से
तुम कहने लगे आजाद रहो
हम कैसे भुलाएं प्यार तेरा
तुम अपनी जुबां से ये न कहो
अब तुम सा जहां में कोई नहीं
है, हम तो तुम्हारे हो बैठे
तुम कहते हो कि ऐसे प्यार
को भूल जाओ, भूल जाओ …
जब प्यार हुआ इस पिंजरे से
तुम कहने लगे आजाद रहो…

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं पूर्व सूचना आयुक्त हैं।)

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