स्वतंत्र भारत के प्रथम संसद के पहले सत्र की वर्षगाँठ
संसद प्रथम सत्र वर्षगॉठ पर विशेष
नई दिल्ली: मध्य रात्रि की बेला थी। 14 अगस्त 15 अगस्त में शनैः शनैः परिवर्तित हो रहा था। वर्षों का करोड़ों भारतवासियों के संघर्ष, त्याग के परिणाम का पल आने वाला था। स्वतंत्रता की घोषणा हुई। हम स्वतंत्र हो गये थे। औपनिवेशिक अत्याचारी सत्ता से हमें मुक्ति मिली थी, परन्तु अभी अनेक चुनौतियों का सामना करना था। अनेक स्वपनों का मूर्त रूप देना शेष था। अनेक प्रश्न जो संसार के मन में थे, उसके पुष्ट उत्तर देने की परीक्षा शेष थी। वर्षों की धवस्त हुई भारतीय संस्कृति को संजोना था। इन सबके लिए एक व्यवस्था की आवश्यकता थी, जो इस यक्ष प्रश्न का समुचित हल ढ़ूँढ़ सके और कुशल मार्गदर्शन से भारत और भारतवासियों के गौरवपूर्ण स्वपनों को पूर्ण कर सके।
भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1946 के अंतर्गत भारत को संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न निकाय की घोषणा की गयी। अब भारत को शासन चलाने की पूर्ण शक्तियाँ प्राप्त हो गयी थी। यह शक्ति भारत को भारत स्वतंत्रता अधिनियम 1947 की धारा आठ के अंतर्गत मिली थी।
अब यह अनुभव किया जाने लगा कि संविधान सभा के संविधान निर्माण के कार्य और विधानमंडल के रूप में इसके साधारण कार्य में अंतर बनाये रखना अधिक बेहतर होगा।
संविधान सभा की एक अलग निकाय के रूप में पहली बैठक 17 नवम्बर 1947 को हुई। इसके अध्यक्ष सभा के प्रधान डॉ. राजेन्द्र प्रसाद थे। संविधान सभा (विधानमंडल) स्पीकर पद के लिए केवल श्री जीवी मावलंकर को विधिवत चुना गया। बाद में वे प्रोविजनल संसद के स्पीकर बने, तत्पश्चात प्रथम लोकसभा के अध्यक्ष भी बने।
14 नवम्बर 1948 को संविधान का प्रारूप संविधान सभा में प्रारूप समिति के सभापति बीआर अम्बेडकर के द्वारा पेश किया गया। प्रस्ताव के पक्ष में बहुमत था। 26 जनवरी 1950 को स्वतंत्र भारत के गणराज्य का संविधान लागू हो गया।
इसके कारण आधुनिक संस्थागत ढांचे और उसकी अन्य सब शाखा-प्रशाखाओं सहित पूर्ण संसदीय प्रणाली स्थापित हो गई। संविधान सभा भारत की अस्थायी संसद बन गई। वयस्क मताधिकार के आधार पर पहले आम चुनावों के बाद नए संविधान के उपबंधों के अनुसार संसद का गठन होने तक इसी प्रकार कार्य करती रही। नए संविधान के तहत पहले आम चुनाव वर्ष 1951-1952 में सम्पन्न हुए।
प्रथम निर्वाचित संसद जिसके दो सदन बने-राज्यसभा और लोकसभा। 3 अप्रैल, 1952 को पहली बार उच्च सदन अर्थात् राज्यसभा का गठन किया गया और इसका पहला सत्र 13 मई, 1952 को आयोजित किया गया। इसी तरह 17 अप्रैल, 1952 को पहली बार निम्न सदन लोकसभा का गठन किया गया जिसका पहला सत्र 13 मई, 1952 को आयोजित किया गया। इस तरह स्वतंत्र भारत का प्रथम संसद सत्र 13 मई, 1952 को बुलाया गया।
भारतीय संसद राष्ट्रपति और दो सदनों-राज्यसभा और लोकसभा-से मिलकर बनती है। भारतीय लोकतंत्र में संसद जनता की सर्वोच्च प्रतिनिधि संस्था है। इसी माध्यम से आम लोगों की संप्रभुता को अभिव्यक्ति मिलती है। संसद ही इस बात का प्रमाणित करती है कि हमारी राजनीतिक व्यवस्था में जनता सबसे ऊपर है, जनमत सर्वोपरि है। भारत के संविधान के अंतर्गत संघीय विधानमंडल को ‘संसद’ कहा जाता है। यही देश के शासन की आधारशिला है।
अतः इस आधारशिला को मजबूत और पवित्र बनाए रखने का उत्तरदायित्व हम भारतवासियों का है। यह गौरवशाली व्यवस्था नित दिन फूले-फले और जनहितकारी बने। आज के दिन इसी आशा को हम पुर्नस्मरण कर संकल्प को दृढ़ करते है।