उच्च रक्तचाप दुनिया भर में मृत्यु की एक बड़ी वजह: डॉ. अनुरुद्ध वर्मा
विश्व उच्च रक्तचाप दिवस पर विशेष
(उमेश यादव/राम सरन मौर्या): विश्व उच्च रक्तचाप दिवस डब्ल्यूएचओ द्वारा प्रतिवर्ष 17 मई को मनाया जाता है। उच्च रक्तचाप या हाइपरटेंशन तब होता है जब किसी व्यक्ति की धमनी का रक्तचाप एक निश्चित स्तर से ऊपर उठ जाता है। इसे आमतौर पर ब्लडप्रेशर के रूप में भी जाना जाता है। उच्च रक्तचाप होने का सीधा मतलब यह है कि पूरे शरीर में रक्त की आपूर्ति करने के लिये हृदय को सामान्य से अधिक पंप करना पड़ता है। उच्च रक्तचाप को अक्सर ‘ साइलेंट किलर ‘ कहा जाता है क्योंकि जब तक शरीर के अंग गंभीर रूप से प्रभावित न हों तब तक इसका कोई लक्षण परिलक्षित नहीं होता है।
वरिष्ठ होम्योपैथिक चिकित्सक डॉ अनुरुद्ध वर्मा बताते है कि साइलेंट किलर के नाम से प्रसिद्ध उच्च रक्तचाप रोग दुनिया में अकाल मृत्यु का प्रमुख कारण है। उच्च रक्तचाप की गंभीरता का अनुमान इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार, 2017 में पूरे भारत में 22.5 मिलियन लोगों की जाँच में पाया गया कि हर आठ में से एक भारतीय उच्च रक्तचाप से पीडि़त है।दुनिया में करोडों की संख्या में लोग इससे प्रभावित हैं।
वहीं पर देश में भी लाखों लोग इससे पीडि़त हैं। उच्च रक्तचाप की समस्या की गंभीरता को देखते हुये इस वर्ष पूरे विश्व में इसके प्रति आम जनता में जागरूकता उत्पन्न करने एवं शिक्षित करने के लिए जो विषय रखा गया है वह है: अपना रक्तचाप नियमित नापें, नियंत्रित रखें और लंबा जीवन जियें। लेकिन ऐसा देखा गया है कि तमाम लोग नियमित रूप से रक्तचाप नापने के प्रति गंभीर नहीं हैं। दौड़-भाग, आपा- धापी, पश्चिमी एवं आधुनिक जीवन शैली, चिंता, आरामतलब जिंदगी, तला -भुना एवं मसालेदार भोजन आदि उच्च रक्तचाप के लिए काफी हद तक जिम्मेदार हैं। वैसे तो 95 प्रतिशत लोगों में इसके निश्चित कारणों का पता नहीं होता है।उच्च रक्तचाप की समस्या से 40 से 60 वर्ष आयु वर्ग के लोग ज्यादा प्रभावित होते हैं तथा पुरुषों एवं महिलाओं में यह लगभग बराबर होता है।
आज 2020 में जब पूरी दुनिया कोरोना महामारी (कोविड 19) के भय के कारण तनाव, दबाव एवं चिंता में है।ऐसे में उच्च रक्तचाप की गम्भीरता का महत्त्व और अधिक बढ़ जाता है। क्योंकि उच्च रक्तचाप को बढ़ाने में मानसिक तनाव एवं दबाव बड़ी भूमिका निभाता है और उच्च रक्तचाप से अनेक हृदय रोगों के होने की संभावना ज्यादा बढ़ जाती है। हृदय रोगियों में कोरोना के संक्रमण का खतरा बढ़ सकता है। इसलिये रक्तचाप को नियंत्रित कर हृदय रोगों से बचना जरूरी है।
क्या है रक्तचाप एवं उच्च रक्तचाप
ह्रदय द्वारा धमनियों में रक्त प्रवाह के दबाव एवं धमनियों में रक्त प्रवाह के प्रति प्रतिरोध को रक्तचाप कहा जाता है। सामान्य रूप से रक्तचाप जहां सिस्टोलिक 110-120 एमएम/एचजी एवं डायस्टोलिक 70-80 एमएम/एचजी के मध्य होता है और जब सिस्टोलिक रक्तचाप 140 और डायस्टोलिक 90 से अधिक होता है तब इसे उच्चरक्तचाप के रूप में परिभाषित किया जाता है।
उच्च रक्तचाप को बढ़ाने वाले प्रमुख कारक
उच्च रक्तचाप को बढ़ाने के लिए जो मुख्य कारक जिम्मेदार हैं उसमें मोटापा, अधिक शराब का सेवन, आलसी जीवन, तनाव, चिंता,ज्यादा नमक और वसा युक्त भोजन, धूम्रपान, तम्बाकू, फ़ास्ट फ़ूड और आनुवांशिक कारक प्रमुख हैं।
क्या होते हैं उच्च रक्तचाप के लक्षण
वरिष्ठ होम्योपैथिक चिकित्सक डॉ अनुरुद्ध वर्मा बताते है कि उच्च रक्तचाप में ज्यादातर मरीजों में किसी विशेष प्रकार के लक्षण प्रदर्शित नहीं होते है। परंतु थकान, सुस्ती, हृदय का तेज धड़कना, साँस फूलना, अनियमित नींद, नाक से खून आना, धुंधला दिखना, ज्यादा पसीना आना, सिर के पिछले हिस्से में दर्द और सुबह जागने पर दर्द बढऩा, चिड़चिड़ापन, अधिक गुस्सा आदि लक्षण हो सकते हैं।
उच्चरक्तचाप से होने वाली जटिलताए
यदि लंबे समय तक उच्च रक्तचाप बना रहे और उसका विधिवत उपचार ना किया जाए तो स्ट्रोक, हार्ट अटैक, हार्ट फेल्योर, किडनी का फेल होना, रेटिनोपैथी जैसी गंभीर समस्याएं हो सकती हैं। इसलिए समय रहते उपचार कराना आवश्यक है।
कैसे बचें उच्च रक्तचाप से
डॉ अनुरुद्ध वर्मा बताते है कि उच्च रक्तचाप से बचने के लिए जीवन शैली में परिवर्तन आवश्यक है।वजन को नियंत्रित करें, तनाव एवं मानसिक दबाव से जितना संभव हो बचने की कोशिश करें, भोजन में नमक की मात्रा कम रखें, सेंधा नमक का प्रयोग करें, ज्यादा घी, तेल, वसा युक्त भोजन, फ़ास्ट फ़ूड का प्रयोग ना करें।सिगरेट ,बीड़ी, शराब का प्रयोग एवं अन्य नशीली चींजों का प्रयोग बिल्कुल न करें। ताजी एवं हरी सब्जियां, फल, आदि का सेवन करें। नियमित रूप से सुबह टहलने जाए। योग, प्राणायाम, व्यायाम एवं ध्यान करें।
उच्च रक्तचाप का होम्योपैथिक उपचार
वरिष्ठ होम्योपैथिक चिकित्सक डॉ अनुरुद्ध वर्मा बताते है कि होम्योपैथी में उच्च रक्तचाप के रोगी का उपचार उसके लक्षणों के आधार पर चयनित औषधि के द्वारा सफलता पूर्वक किया जा सकता है।उच्च रक्तचाप के उपचार में प्रयुक्त होने वाली औषधियों में रॉवल्फिय़ा, एलियम सटाईवा, बराइटा म्योर, नेट्रम म्योर,लैकेसिस, लाइकोपोडियम, नक्स वोमिका, एड्रेनेलिन, ऐमिल नाइट्रेट, ग्लोनाइन, वेरेटरम विरिड आदि का प्रयोग प्रशिक्षित चिकित्सक की सलाह पर किया जा सकता है।
आयुर्वेद में भी है प्रभावी इलाज
आयुर्वेदाचार्य भानू प्रताप यादव बताते है कि उच्च रक्तचाप का आयुर्वेद में भी प्रभावी इलाज है।आयुर्वेद में खान पान पर विशेष ध्यान देने की बात बतायी जाती है। उच्च रक्तचाप के रोगियों को पथ्य भोजन का सेवन ही करना चाहिये जैसे बाजरा, ज्वारा, गेहूँ का आटा, अंकुरित दालें, हरी पत्तेदार सब्जियाँ, लौकी, नींबू, तरोई, करेला, अजवायन, अंगूर, मौसमी, अमरुद, अनार, सेव, छाछ, अर्जुन छाल का काढा,गाय का दूध, सोयाबीन, सरसों, सूरजमुखी तेल, शहद आदि। जबकि अपथ्य भोजन से दूर रहना चाहिये जैसे फास्ट फूड, अधिक नमक, मैदा, वनस्पति घी, खोया, मलाई, तला एवं अधिक मसाले का भोजन, शराब, धूम्रपान, गरिष्ठ भोजन, मांस आदि।
आयुर्वेदिक दवाएं
आयुर्वेदाचार्य भानू प्रताप यादव बताते है कि उच्च रक्तचाप में आयुर्वेदिक दवाएं भी बहुत असर करती है। इसके इलाज के लिये पुर्ननवारिष्ट 10 मिली सुबह शाम,सर्पगंधा घन वटी 1-1 गोली सुबह शाम,त्रिफला चूर्ण 3 ग्राम रात में खाने के बाद पानी के साथ,व अर्जुनारिष्ट 10 मिली. सुबह शाम आदि सभी दवाइयों को प्रशिक्षित चिकित्सक के परामर्श के अनुसार ही लेना चाहिए।