घर में जो रहोगे काम बन जाएगा
प्रसंगवश
स्तम्भ: एक और लाॅकडाउन जल्दी ही दस्तक दे सकता है और यह नए किस्म का लाॅकडाउन होगा क्योंकि इसकी उत्पत्ति केन्द्र सरकार के गृह विभाग से नहीं, आपके दफ्तर से हो सकती है। हो सकता है कि इस नए लाॅकडाउन से नए किस्म की घेरेबंदी की शक्ल में घरबंदी का आपको सामना करना पड़े। वास्तव में यह साल ही ऐसा है। यह 20-20 मैच की तरह जल्दबाजी में है, फटाफट क्रिकेट की तरह तुरत-फुरत नतीजा सामने लाना चाहता है। यह कमाल का साल है। इस साल कुछ भी संभव है सो तैयार रहिए, कमर कसकर रखिए।
हो सकता है आपकी कम्पनी आपसे कहे कि आपने लाॅकडाउन के दौरान घर में पत्नी के साथ जीवन यापन करना, निर्वाह करना और घर बैठकर आफिस का काम करना अब तक अच्छी तरह से सीख लिया होगा। अब आपका दफ्तर आपके इस अनुभव का लाभ लेने का प्रयास कर सकता है और आपसे कह सकता है कि अब आप घर पर ही रहो, तालेबंदी के समय की तरह घर से ही काम करते रहो। बहुत अपरिहार्य कारण होगा तो आउटडोर ड्यूटी पर भेजा जाएगा, वरना सारी गिटिर-पिटिर घर से ही करो।
गोपनीय किस्म के, तुरंत निपटारे की अपेक्षा वाले और ‘अविलम्ब’ का ठप्पा धारण करने वाली गरिमामयी फाइल घर से बेहतर ढंग से निपटेगी, सो वहीं से निपटाओ और आनलाइन ही फटाफट उसका क्लियरेंस करो। ये सब काम घर से ही ठीक रहेंगे। लैपटाॅप तो है ही, उसी से जूझो, दफ्तर ऐसे साफ्टवेयर तैयार कर लेगी कि आप कामचोरी न कर पाएं। वैसे भी यह पाया गया है कि घर से काम करने वाले लोग कामचोरी कम ही करते हैं, समय की बरबादी कम ही करते हैं, वरना एक बार दफ्तर के बाहर की गुमठी पर चाय पीने गए तो समझो गए घंटा भर को। घर पर रहोगे तो न हाय—हाय न चिक—चिक, चिल्लपों न झिकझिक।
वैसे भी वायरस महामारी से बचाव हेतु दुनिया भर में लाखों लोग घर से ही काम कर रहे हैं। उनके मालिकों ने कामकाज में व्यवधान न पड़े, इस खातिर यह सुविधा दी है। कई कम्पनियां इस सिलसिले को आगे भी जारी रखना चाहती हैं। मसलन फेसबुक ने अपने स्टाफ के लोगों को अगली दिसम्बर तक घर से ही काम करने की छूट दे दी है और तो और ट्विटर ने इससे आगे जाते हुए अपने कर्मचारियों को रिटारमेंट तक घर से ही काम करने का विकल्प दिया है। यह अचरज भरा है लेकिन सत्य है।
लेकिन माइक्रोसाफ्ट के सबसे आला अफसर सत्या नडेला का कहना है कि स्थायी रूप से घर से काम करने से कर्मचारियों के मानसिक स्वास्थ्य और सामाजिक सम्पर्कों पर गंभीर कुप्रभाव पड़ सकता है। न्यूयार्क टाइम्स से उन्होंने कहा कि आफिस की जगह घर से काम करना ठीक नहीं है। उनका यह भी कहना था कि वीडियो कॉन्फ्रेंस भी किसी भी कीमत पर आफिस की मीटिंग की जगह नहीं ले सकतीं।
कुछ कम्पनियाॅ और भी ऐसी हैं जो पहले से अपने कर्मियों से अपने घर से ही काम करने की व्यवस्था को स्थायी रूप देना चाह रही हैं। कई देशों में खासकर अमेरिका और जापान में घर से काम कराना आम बात है। काम कराने वाले साहबों यानी नियोक्ताओं/ इम्प्लायर्स को कुछ सुविधाएं भी इसमें हो सकती हैं।
मसलन वे आपकी तनख्वाह में कुछ कटौती लागू कर सकते हैं- घर पर रहो तो कम वेतन लो। इसके अलावा भी सुविधाएं मालिकों को, नियोक्ताओं को हो सकती हैं। दफ्तर का बिजली का, चाय पानी का, साफ सफाई का, मेन्टेनेंस का, पार्किंग का, गाड़ी के कन्वेनेंस का यानी पेट्रोल-डीजल का, चपरासियों का और छोटे कर्मचारियों को नौकरी पर रखकर उन्हें वेतन देने का खर्च तो निश्चितरूप से बचेगा ही। बड़े कार्यालय संचालित करने की जरूरत नहीं पड़ेगी। घर से ही काम करना हो तो ज्यादा संख्या में महिलाएं भी काम के लिए आगे आ सकती है, जो कम वेतन पर रखी जा सकती हैं।
इंस्टीट्यूट आफ चार्टर्ड एकांउटेंन्ट्स/ सीएएस/ के पूर्व अध्यक्ष अमरजीत चोपड़ा तो यह तक सुझाव दे रहे हैं कि 30 हजार से ज्यादा वेतन पर कटौतियाॅ लागू होनी चाहिए। सरकार को इसकी इजाजत देनी चाहिए। नेशनल स्टाॅक एक्सचेंज में सूचीबद्ध 100 कम्पनियों में से 27 कहती हैं कि यदि उनकी आमदनी में 30 प्रतिशत की कमी हुई तो वे वर्तमान दर पर वेतन नहीं दे पाएंगे। यह बात डेल्वाॅइट कम्पनी के एक सर्वे से सामने आई है। वैसे भी यह बात तो उभरकर सामने आ ही रही है कि इस अप्रैल से जून तक की तिमाही बहुत निराशाजनक वित्तीय परिणाम लेकर सामने आ सकती है।
लेकिन बात इतनी सीधी नहीं है। अगर नियोक्ताओं ने बड़े पैमाने पर छटनी या वेतन कटौती की राह पकड़ी तो इसमें कई वैधानिक अड़चनें पैदा हो सकती हैं। कर्मचारी संगठन अदालतों का दरवाजा खटखटा सकते हैं। अंततः बात सर्वोच्च न्यायालय तक भी जा सकती है। प्रधानमंत्री भी जोर देकर नियोक्ताओं से अनुरोध कर रहे हैं कि वेतन में कटौती न की जाय। मतलब साफ है कि सरकार उद्योग जगत की वेतन कटौती की राह में रोड़े अटका सकती है। सरकार ने श्रम कानूनों में सुविधाएं देने का सिलसिला यदि जारी नहीं रखा तो भी उसका उद्योग जगत से टकराव तो हो ही सकता है।
और अंत में, कोरोना से बचने का आसान उपाय
‘‘ किसी से सीधे मुँह बात न करें’’
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं पूर्व सूचना आयुक्त हैं।)