मास्क लगाये लेकिन समझदारी भी बरतें
मुबंई: बुधवार 27 मई को सुबह से एक बडे अस्पताल जाना हुआ। उस अस्पताल में कोरोना मरीजों का इलाज चल रहा है। कुल 55-60 कोरोना के मरीज आज भी उस अस्पताल में भर्ती है। उनका इलाज अस्पताल के तीसरी मंजिल पर हो रहा है। मैं पहली मंजिल के आईसीयू में था।
उस दिन ऐसी संभावना बन रही थी कि मुझे न चाहते हुए भी बार-बार पहली मंजिल से तीसरी मंजिल पर आना-जाना पड रहा था मगर इस दौरान मै पूरी तरह से एहतियात बरत रहा था। सरकार और मेडिकल विभाग की गाईड लाईन को पूरी तरह से फोलो कर रहा था।
उस दिन अस्पताल में शाम तक रूकना हुआ। शाम को काम खत्म करके निश्चिंत हुआ तो सर थोडा भारी लग रहा था, हल्का सा चक्कर आ रहा था। रात के भोजन के बाद मैने चक्कर नियंत्रित करने की दवा ली, रात को सोने के समय तक मेरी हालत सामान्य हो गई।
स्थिति ऐसी बनी कि दूसरे दिन भी अस्पताल में ही सुबह से शाम गुजर गई लेकिन दूसरे दिन भी मैंने पूरी तरह से हर प्रकार की एहतियात बरती, सावधान रहा लेकिन फिर शाम को मेरी तबियत कुछ ज्यादा ही बिगड़ गई। अब रह-रह कर चक्कर काफी जोर से आने लगे थे, ठीक ठंग से चलने की हालत में नहीं था, पैर बराबर उठ नहीं रहे थे।
मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि मेरे साथ यह क्या हो रहा है? ऐसा क्यों हो रहा है? लक्षणों की वजह से मैंने सोचा सुगर तो नहीं है? मेरी उम्र में डायबीटीस होना अब सामान्य बात है। सुगर की जांच कराई, वह भी नॉर्मल 130 बता रहा था, फिर सोचा रक्तचाप बढ़ा या कम होगा लेकिन वह भी सामान्य था यानी 125/80। मगर चक्कर रह-रह के आ ही रहे थे। शरीर का तापमान भी सामान्य था, बुखार के लक्षण नहीं है, थर्मामीटर भी यही बता रहा था, फिर शंका हुई कि दिन में उमस ज्यादा थी तो शरीर में पानी की कमी तो नहीं हो गई लेकिन दिन भर मे मैंने लगभग ढाई लीटर पानी पिया था, हाँ दोपहर का भोजन नहीं किया था फिर भी शंका के समाधान के लिए मै टॉयलेट में जाकर पिशाब जांचा, उसका रंग भी सामान्य था।
अब आशंका थोड़ी गहराने लगी। जब तक बच्चे को सांप की जानकारी न हो, वह उसे रस्सी ही समझता है लेकिन जानकारी होने के बाद अचानक से सामने पड़ी या फेंकी रस्सी भी उसे सांप नजर आती है और ऐसे में भय का माहौल निर्मित हो जाए तो कल्पना के घोड़े और भी तेज गति से दौड़ने लगते हैं। मेरे साथ भी ऐसा ही कुछ हो रहा था, मैं भी तरह-तरह की बिमारी की कल्पना और शंका मे उलझाा हुआ था।
अभी में इसी उधेड़बुन में था कि अचानक ख्याल आया कि शरीर का ऑक्सीजन स्तर क्यों ना जांचा जाए? मैं हिल डूल रहा था, चल फिर रहा था, बातचीत करने मे कोई व्यवधान नहीं था, न जुबान लड़खड़ा रही थी, ना नजर धुंधली थी तो शायद अति आत्म विश्वास मे मैं अपने शरीर के आक्सीजन स्तर को अब तक परखा नहीं था। ऐसा सामान्य तौर पर मेडिकल प्रोफेशनल्स के साथ हो भी हो जाता है?
मै पहली मंजिल के आईसीयू में गया, ऑक्सी मीटर लिया और ऑक्सीजन की जांच करने लगा। मेरे आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। ऑक्सी मीटर मेरी शरीर का ऑक्सीजन 82% बता रहा था, एक स्वस्थय वयक्ति में ऑक्सीजन का स्तर 90% से ज्यादा होता है, मेरा तो सामान्यत: हमेशा 97-98% के आसपास होता है।
मुझे चक्कर का कारण अब जाकर समझ मे आया कि मेरे शरीर में ऑक्सीजन की मात्रा बहुत गिर चुकी थी। मैंने ज्यादा कुछ न सोचते हुए, सहायक डाक्टर से मुंह पर ऑक्सीजन मास्क लगाने को कहा, तुरंत मास्क लगा, गहरी-गहरी सांसों द्वारा नाक ने अपना काम तुरंत शुरू कर दिया। तुरंत ऑक्सीजन लेना बेहतर समझा और इसका फल भी मिला, लगभग एक घंटे में मेरे शरीर का ऑक्सीजन स्तर सामान्य हो गया था।
अब बार-बार चक्कर आना, जाता रहा, उस रात बहुत अच्छी नींद भी आई, अब चक्कर नही आ रहे थे, सुबह उठने पर सामान्य था। मगर शरीर से ऑक्सीजन स्तर कम होने का कारण अब भी रहस्य बना हुआ था? मैने डॉ. संदेश कुलकर्णी को फोन लगाया, ये मुंबई में दिमाग के क़ाबिल डॉक्टरों में से एक है। मैंने उनको दो दिन की वास्तु स्थिति से विस्तार पूर्वक अवगत करवाया।
उनके जवाब के बाद अब आश्चर्य की बारी मेरी थी क्योंकि मैं सब कुछ जानते-बुझते हुए भी गलती कर बैठा था। ..उन्होंने मुझे बताया कि ” शायद दिन भर मास्क पहने की वजह से मेरे शरीर का ऑक्सीजन स्तर कम हुआ होगा? ” उनकी यह आशंका शत प्रतिशत सही भी थी, मैं दो दिन से लगातार अपने मुंह पर मास्क लगाए हुए था।
कोरोना काल में मास्क लगाना, स्वंय की सुरक्षा के लिए सबसे बेहतरीन जरिया है, बेहतर उपाय है लेकिन बीच-बीच में सुरक्षित तौर पर इसे हटाकर भी सांस ले लेना चाहिए। लगातार मास्क लगाए रहने की वजह से लोगों में अफनाहट होने, दम घुटने की बहुत सी शिकायतें भी आयी है।
उच्च दर्जे के बेहतरीन मास्क को भी घंटे, दो घंटे में भी थोड़ी दे की राहत लेते-देते रहना चाहिए, अन्यथा शरीर में ऑक्सीजन का स्तर कम होने की संभावना बढ़ जाती है और यह खतरनाक हो सकता है।
जय हिंद