तेरे हौसले से गजब हो गया
प्रसंगवश
स्तम्भ: अभी जबकि हम शुरू में पिछड़ जाने के बाद तेजी से कोरोना की रेस में आगे बढ़़ने की ओर अग्रसर हो रहे हैं, दक्षिण प्रशांत देश न्यूजीलैंड ने झण्डे गाड़ दिए हैं। सिर्फ 50 लाख की आबादी वाले इस देश ने कोरोना को नकेल पहनाने में स्वर्णिम सफलता प्राप्त कर ली है।
कोेरोना माई को आखिर जवाब मिल गया है और उसे यह करारा जवाब देने वालों की टीम की लीडर एक महिला ही हैं, न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री जिसिंदा अरडर्न। उन्होंने न्यूजीलैंड से कोरोना की विदाई की घोषणा कर दी है और अपने देश में तमाम तरह की सभी बन्दिशें और प्रतिबंध हटाने की घोषणा कर दी है। यहाॅ तक कि सामाजिक दूरी बनाए रखने जैसे प्रतिबंध तक समाप्त कर दिए गए हैं। ऐसा करने वाला न्यूजीलैंड पहला देश बन गया है।
सुश्री अरडर्न ने ऐलान किया है कि सारे उद्योग-धंधे, सभी पब्लिक व निजी कार्यक्रम, परिवहन खोल दिए गए हैं और आम जिंदगी बहाल कर दी गई है। अभी जबकि अमेरिका भारत, ब्रिटेन, रूस, यूरोप और लेटिन अमेरिकी देशोें की अर्थव्यवस्था लड़खडा़ गई हैं, न्यूजीलैंड पुनरुत्थान के रास्ते पर है। आखिर न्यूजीलैंड की सरकार ने क्या जादू किया है?
यह स्वच्छन्द और उन्मुक्त माहौल ऐसे ही हासिल नहीं हुआ है। उसने सात सप्ताह तक कड़ा लाॅकडाउन लगाया। पूरे 75 दिन तक सामान्य जनजीवन पर कड़े प्रतिबंध लागू किए गए और किसी को भी घर से निकलने की इजाजत नहीं दी गई। जो बंदिशें लागू की गईं, वे अत्यधिक कड़ी थीं। नतीजा यह हुआ कि पूरे देश में संक्रमण के केवल 1154 केस हुए और सिर्फ 22 मौतें हो पाईं।
ये घोषणाएं न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री की तरफ से की गईं तो पूरा देश झूम पड़ा। स्वयं प्रधानमंत्री ने कहा कि जब यह सूचना उन्हें दी गई कि अब देश भर में कोरोना का एक भी केस नहीं हैं, तो वे झूम उठीं और नाचने लगीं।
जिस समय ये खबरें विलिंडटन से आ रही थीं तो उस समय हम संक्रमण के लगातार बढ़ते मामलों को लेकर परेशानियों में घिरे पड़े थे। हमारे देश में संक्रमण की गति थमने का नाम नहीं ले रही है और वह बुरी तरह प्रभावित तमाम देशों में सबसे अधिक हो गई है।
तमाम चिकित्सक, विशेषज्ञ, ज्योतिष जो भविष्यवाणी कर रहे हैं, उससे लगता है कि अगले दो महीनों में संक्रमण के मामलों में तेजी से वृद्धि होगी। महाराष्ट्र पहले ही कोरोना के जनक चीन से आगे निकल गया है। उत्तर प्रदेश में भी संक्रमण की दर बराबर बढ़ रही है। जो आंकड़े सरकार दे रही है, वे भी सम्पूर्ण नहीं लगते क्योंकि टैस्टिंग के साधन निरंतर कम पड़ रहे हैं। दिल्ली की स्थिति कम चिंताजनक नहीं है।
हमारे देश में चार चरणों में कुल 68 दिन तक लाॅकडाउन रहा और बाद के दिनों में उसमें कई बार विभिन्न प्रकार की रियायतें दी जाती रहीं। दरअसल, पाॅचवें अनौपचारिक लाॅकडाउन के शुरू से ही लगातार बन्दिशें हटाई जाती रहीं । कुछ बन्दिशें, जैसे सोशल डिसटैंसिंग (सामाजिक दूरी) उल्लंघन करने में ही मानी गईं।
यहाॅ तक कि राज्य सरकार के सचिवालयों में इसका खुलमखुल्ला उल्लंघन हुआ। सामाजिक दूरी वाला प्रतिबंध लगभग बेमानी साबित हो रहा हैै। सार्वजनिक स्थानों में थूकना अपराध घोषित किया गया लेकिन पान मसाले पर से सरकार द्वारा प्रतिबंध हटा लिए जाने के बाद यह भी अर्थहीन साबित हो गया। मास्क लगाकर रखने के निर्देशों भर का आम तौर पर पालन हो रहा है। इस सबके बीच राजनीतिक गतिविधियों पर रोक लगाने का आदेश सर्वथा अर्थहीन साबित हो गया है।
देर सबेर सरकार को पहले लाॅकडाउन की तरह की शर्तों और बन्दिशों के साथ एक और सख्त लाॅकडाउन लागू करने की आवश्यकता पड़ सकती है और ऐसा हुआ तो सरकार को भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है क्योंकि अब प्रतिबंधों को लागू करने में अनेक व्यवहारिक कठिनाइयाॅ आएंगी।
एक तो कड़ी शर्तों को मानने के पीछे लाॅकडाउन के प्रारम्भ में महामारी का जो भय था, उसने आमजनों को स्वनियंत्रण को प्रेरित किया था। अब वह कहीं है नहीं। विपरीत खबरों के बावजूद वह डर अब लोगों के दिलोदिमाग पर नहीं रहा। दूसरी तरफ आम लोगों ने कोरोना को पहले तरह की गंभीरता से लेना बंद कर दिया है और अब उल्लंघनों का दुष्परिणाम संक्रमण के फैलने के रूप में सामने आ सकता है, जो सबसे लिए खतरनाक होगा।
और अंत में, बाजार जाता हूॅ तो लगता है कि कोरोना कभी आया ही नहीं था
और न्यूज देखता हूूूॅ तो लगता है कोई बचेगा ही नहीं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं पूर्व सूचना आयुक्त हैं।)