चल लौट के आ जा रे मेरे मीत
प्रसंगवश
स्तम्भ: बुन्देलखण्ड में कहावत है- ‘आन गाॅव की चिपड़ी सें घर की सूखी साजी’ अर्थात् दूसरे गाॅव की चिपुड़ी रोटी से अपने गाॅव-घर की सूखी रोटी अच्छी। सो परदेस से अब लाखों की संख्या में अपने देसी अपने घर वापस लौट आए हैं और कुछ लौटने की प्रक्रिया में हैं।
आन गाॅव की चिकनी-चुपड़ी वे छोड़ के भाग आए हैं और अब अपने घर की सूखी का सहारा ले रहे हैं। परदेसी बने अपने कल्लू, लल्लू, राम प्रसाद, राम अवतार, दसरथ, बैजनाथ, किदारी, बिजवासी, विंदावन-सब ने अब नए अवतार में फिर से देसी रूप धर लिया है।
जिस महात्मा गाॅधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना यानी ‘मनरेगा’ ने नरेगा के रूप में कांग्रेस सरकार के जमाने में 2005 में जन्म लिया था और जिसकी भारतीय जनता पार्टी ने जमकर आलोचना की थी और संसद व उसके बाहर विरोध किया था, वही अब केन्द्र और उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकारों की तारनहार बन गई है।
लाॅकडाउन लागू होने के बाद पूरे देश के कोने कोने से उत्तर प्रदेश के मजदूर/ श्रमिक भारी संख्या में अपने प्रदेश की ओर दौडे़ हैं और यहीं अपना ठिकाना तलाश लिया है। प्रदेश की सरकार के लिए इतनी बड़ी संख्या में इन प्रवासियों को राशन और रोजगार देना आसान काम नहीं था।
उसे अंततः मनरेगा की ठौर लेनी पड़ी। राज्य सरकार ने एक अच्छा काम यह किया कि समय रहते मनरेगा की शाीतल छाॅव प्रवासियों को मुहैया कराने की पर्याप्त तैयारी कर ली और उनके लिए पलक पाॅवड़े बिछा दिए वरना प्रदेश में रोजगार तलाशते प्रवासी कानून-व्यवस्था की गंभीर स्थिति के सबब बन सकते थे।
भाजपा को अब तक यह बात समझ में आ गई होगी कि उसने 2005 में इस योजना का विरोध करके कितनी बड़ी गलती की थी। आज भाजपा खुद इस योजना को नित नए रूप में पेश कर व्यापक आधार दे रही है। मनरेगा के लिए केन्द्रीय सरकार के बजट में वर्ष 2020-21 के लिए 61 हजार करोड़ रुपए का प्रावधान मूल रूप में किया गया था। अब इसमें 40 हजार करोड़ रुपए की वृद्धि कर दी गई है।
इस तरह अब मनरेगा का कुल बजट 1 लाख 1 हजार करोड़ हो गया है जो अपने आप में एक रिकार्ड है। उल्लेखनीय बात यह है कि प्रवासी मजदूरों की वापसी के बाद देश में कुल 2 करोड़ 19 लाख बाशिंदों ने मनरेगा का लाभ लिया, जो आठ वर्ष में सर्वाधिक है और इस तरह एक रिकार्ड है। स्थिर आय सुनिश्चित करने के लिए यह योजना 2 फरवरी 2006 को देश के 200 जिलों में प्रारम्भ की गई थी। फिर 1 अप्रैल 2007 को 130 अतिरिक्त जिलों और फिर 1 अप्रैल 2008 को पेश 285 जिलों में लागू की गई थी।
उत्तर प्रदेश में वर्ष 2019-20 में 11,34,249 बाशिन्दों यानी हाउसहोल्ड्स ने मई महीने में इस योजना का लाभ लिया था। वर्ष 2020-21 में पिछले महीने यह संख्या बढ़कर 33,22,663 यानी लगभग तिगुनी हो गई। यह वृद्धि लगभग 193 प्रतिशत- जी हाॅ 193 प्रतिशत! इस महीने की 3 तारीख को प्रदेश भर में 1 करोड़ 87 लाख जाॅब कार्ड बने थे।
यह संख्या इस 9 जून को बढ़कर 1 करोड़ 89 लाख हो गई यानी एक सप्ताह में जाॅब कार्ड्स की संख्या में करीब 2 लाख की बढ़ोतरी हो गई। सक्रिय जाॅब कार्ड मात्र एक सप्ताह में 88.03 से बढ़कर 90.19 लाख हो गए। सक्रिय मजदूरों की संख्या बढ़कर 1 करोड़ 12 लाख हो गई। वर्तमान हालातों और राज्य सरकार की माॅग को ध्यान में रखते हुए योजना के तहत मजदूरी की दरें अब 182 रुपए से बढ़ाकर 202 रुपए कर दी गई है। तो भी आम तौर पर यह मजदूरी उस मेहनताने से बहुत कम है जो प्रवासी मजदूर लाॅकडाउन के पहले अपने अपने ठौर पर नौकरी करके कमा रहे थे। इसलिए बहुत से अब भी परदेस की राह पकड़ने की जुगाड़ में हैं।
सरकार ने जिस तेजी से इस पूरी योजना का कम्प्यूटीकरण किया है, उससे गड़बड़ियों की आशंकाएं बहुत कम रह गई हैं। मजदूरी का पैसा सीधे जाॅब कार्ड धारक के खाते में चला जाता है इसलिए बिचौलिए उस पर अपनी नजर नहीं गड़ा पाते हैं। तो भी भ्रटाचार की शिकायतों की कमी नहीं है।
ग्राम प्रधान और पंचायतों के सचिव पैसा कमाने के कई तरीके पैदा कर ही लेते हैं। एक शिकायत जो आमतौर पर कई जगहों से सरकार को मिलती रही है, वह है कि मजदूरों को ‘फर्जी’ काम देना और मजदूरी का आधा आधा बंटवारा कर लेना। इसके अलावा मनरेगा फंड का दुरुपयोग, कम मजदूरी का भुगतान, जाॅब कार्ड होल्डर के पास कार्ड होने के बाद भी उसे काम न देना और निर्माण कार्यों में मानक से घटिया सामग्री का प्रयोग आम षिकायतें हैं। प्रदेश में 58,906 ग्राम पंचायतें हैं, जिनके मनरेगा सुपुर्द है और उनके कर्ताधर्ताओं से पार आना आसान बात नहीं है। पंचायत स्तर पर राजनीतिक दुश्मिनियों में मनरेगा के पैसे के दुरुपयोग की संभावनाओं की बड़ी सक्रिय भूमिका है। आगामी पंचायत चुनाव इसकी नए तरीके से भूमिका तैयार कर सकता है।
और अंत में, ‘मनरेगा’ की तरह सरकार को, ‘मनकरेगा’ नाम की स्कीम लानी चाहिए,
जिसमें आदमी को छूट हो कि जब मन करे वो तभी काम करे।।