एक और हाट माननीय विधायकों की
प्रसंगवश
स्तम्भ: एक बार फिर माननीय विधायकों की तुलाई की तैयारियॉ हो रही हैं। अभी पूरे देश में कोरोना ने तहलका मचा रखा है और पूरा देश इस महामारी से हो रही मौतों की गणना के नतीजों से चिंता में डूबा है। लेकिन राजस्थान और गुजरात में राजनीतिक लोगों द्वारा विधायकों की गिनती की तैयारियॉ हो रही हैं क्योंकि महामारी के चलते स्थगित हुए राज्यसभा के द्विवार्षिक चुनाव अब अंततः 19 जून को कराए जा रहे हैं। कम से कम दो राज्यों में इनके चलते शक्ति परीक्षण के हालात पैदा हो रहे हैं। दोनों पक्षों की प्रतिश्ठा दॉव पर है- सरकारों के अस्थिर होने के खतरे जो सामने मौजूद है।
सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच शक्ति परीक्षण की स्थिति पैदा होते ही अपने अपने विधायकों को आवश्यकत वस्तु की तरह इकट्ठा करके विरोधियों की नजर से बचते-बचाते हुए होटलों और रिजॅार्ट्स में भेज दिया जाता है और ऐन जोर-आजमाइश के वक्त अपनी राजधानी में, अपने ठौर पर लाया जाता है। यह सिलसिला करीब 4 दशक से बदस्तूर चल रहा है और लगभग सभी राजनीतिक दलों के नेता इसमें पूरी शिददत से शामिल होते हैं। आम तौर पर विधायकों के झुण्डों को उस राज्य में भेजा जाता है जहॉ अपने दल की या कोई दोस्ताना सरकार होती है।
सबसे ताजी मिसालें देशवासियों की खिदमत में गुजरात और राजस्थान से पेश की जा रही हैं। राजस्थान में कांग्रेस के दो उम्मीदवार राज्यसभा का चुनाव लड़ रहे हैं और जो स्थितियॉ हैं, उनके अनुसार पार्टी के प्रत्याशी तभी जीत सकते हें जब उसके सारे विधायक एकजुट रहते हैं। सुरक्षा का कवज देने के लिए सभी कांग्रेस विधायकों को एक रिपोर्टर्स में एकजुट करके रखा गया है और 19 जून को होने वाले चुनाव के ऐन वक्त राजधानी जयपुर के राजनीतिक प्रांगण में लाया जाएगा।
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने एक सनसनीखेज आरोप यह लगाया है कि भारतीय जनता पार्टी उनके विधायकों को तोड़ने के लिए 25-25 करोड़ रुपया का ऑफर दे रही है। उनके अनुसार दस दस करोड़ एडवांस देने के ऑफर दिए जा रहे हैं और कि उनकी सरकार को अस्थिर करने की साजिश है। जैसा कि होता ही है भाजपा इसका खण्डन कर रही है।
इससे पहले भाजपा-शासित गुजरात के 65 कांग्रेसी विधायकों को विरोधियों की गिद् दृष्टि से बचाते हुए राजस्थान भेजा गया है। उन्हें पहले एक रिजॉर्ट में और फिर होटल में रखा गया है।
पिछले साल जब कर्नाटक में शक्ति परीक्षण की नौबत आई तो भाजपा के विधायकों को कुमारस्वामी सरकार पलटने की तैयारी में दो रिजार्ट में ले जाया गया था। इसके जवाब में जनता दल/एस/ भी अपने विधायकों को रिजॉर्ट में ले गइ थी। पिछले साल ही मध्यप्रदेश में कमलनाथ की कांग्रेसी सरकार को पलटने की तैयारी मेें ऐसे ही रिजॉर्टों का सहारा लिया गया।
ये हालात तब पैदा हुए जब ज्योतिरादित्य सिंधिया के नेतृत्व में 22 कांग्रेसी विधायकों ने पार्टी छोड़ दी। कांग्रेस ने दिसम्बर 2018 में हुए चुनाव में 114 सीटें जीती थीं जिसके दस पर कमलनाथ की सरकार 15 महीने चली। सिंधिया के साथ पार्टी छोड़ने वाले 18 विधायकों को कर्नाटक के एक रिजॉर्ट में ले जाया गया था जबकि भाजपा ने भी अपने विधायक दिल्ली के निकट गुरुग्राम में 11 मार्च को तड़के एक लक्जरी होटल ग्रांड भारत में अपनी रखवाली में रखवा दिया था। कांग्रेस ने अपने विधायक राजस्थान पठा दिए थे। अंततः कमलनाथ सरकार शक्ति परीक्षण में पराजित हो गई थी।
पिछले साल ही जब महाराष्ट्र में नई सरकार के गठन का मौका आया तो दोनों पक्ष आमने-सामने आ गए- खासतौर पर उस समय जब भाजपा नेता व पूर्व मुख्यमंत्री देवेन्द्र फड़नवीस और अजित पवार ने मिलजुलकर सरकार बना ली। शिवसेना, कांग्रेस व एन0सी0पी0 के 162 विधायक ग्रांड हयात होटल मुम्बई में एक छत के नीचे ले आए गए और गठबंधन ने भाजपा को अपना बहुमत साबित करने की चुनौती दी।
रिजॉर्टबाजी का यह सिलसिला 1983 में कर्नाटक से ही शुरू हुआ था। बाद में कई राज्यों में इसका मंचन हुआ। फरवरी 2017 में मुख्यमंत्री बनने की चाहत रखने वाली शशिकला ने अपने विधायकों को चेन्नई के निकट गोल्डन बे रिजॉर्ट रवाना कर दिया था। हालॉकि उन्हें इसी बीच कोर्ट से सजा होने के कारण सरकार बनाने का मौका नहीं मिला। तत्पश्चात् अगस्त 2017 में राज्यसभा चुनाव के समय कांग्रेस ने अपने 44 विधायकों को बंगलौर के ईगलटन गोल्फ रिजॉर्ट भेज दिया था।
आम तौर पर विभिन्न पार्टियॉ अपने द्वारा शासित राज्यों व दोस्ताना प्रदेशों में विधायकों के समूहों को भेजती हैं। मतलब साफ है। अपनी दोस्ताना सरकार से यह उम्मीद रहती है वह उनका पूरी तरह संरक्षण करेगी और आवश्यक वस्तु की तरह सुरक्षित रखेगी। यह भी उम्मीद की जाती है कि दोस्ताना सरकार की पुलिस भी इस काम में पूरी मदद देने को प्रस्तुत रहेगी।
पुलिस के राजनीतिक उपयोग की संभावनाएं रिजॉर्ट पालिटिक्स की जनक होती हैं। वैसे कहा यह भी जाता है कि राजनीतिक मारामारी, अपनी सरकार को बचाने, अपने उम्मीदवारों को जिताने और उसके लिए आवश्यक उठापटक सफलतापूर्वक कर ले जाने के लिए ‘रिजॉर्ट इज दि लास्ट रिजॉर्ट’ यानी रिजॉर्टों का सहारा लेना अंतिम विकल्प होता है।
लेकिन यह अंतिम विकल्प पिछले चार दशकों में मुख्य रिजॉर्ट या प्रथम व एकमात्र उपाय बनकर सामने आया है। सत्ता की होड़ की यह एक और मिसाल है जिसे राजनीतिक लोग संजोकर रखे हुए हैं।
और अंत में, अच्छी किताबें और अच्छे लोग, तुरंत समझ में
नहीं आते हैं, उन्हें पढ़ना पड़ता है।