यूपी: परत-दर-परत अनंत कथा है पशुधन फर्जीवाड़ा
- जालसाजों पर दर्ज हो सकती है एक और एफआईआर
- पूर्व में की गयी ठगी के दो और मामले आये सामने
- गुजरात और राजस्थान से जुड़े हैं पुरानी ठगी के तार
- फर्जीवाड़े में आरोपी सिपाही दिलबहार सिंह यादव है अबतक फरार
लखनऊ: उत्तर प्रदेश के पशुपालन विभाग किये गए फर्जीवाड़े के आरोपियों की जैसे-जैसे पड़ताल हो रही है, इनकी ठगी के नए-नए मामले सामने आ रहे हैं। अबतक एसटीएफ की जांच में इस फर्जीवाड़े के अलावा आरोपियों द्वारा ठगी कर करोड़ों रुपये हड़पने के दो और मामले सामने आ चुके हैं। गुजरात और राजस्थान प्रदेश से सम्बंधित इन दो मामलों में से एक के पीड़ित ने अपनी एफआईआर दर्ज करवाने के लिए कहा है। पुलिस ठगे गए व्यापारी की तहरीर का इंतजार कर रही है।
ऐसा माना जा रहा है कि अगर ठगी का यह मामला लखनऊ से सम्बन्धित हुआ तो इसकी एफआईआर यहीं दर्ज होगी। उस स्थति में मामले की विवेचना भी लखनऊ से ही की जाएगी। इसके उलट अगर मामले का सम्बन्ध किसी और स्थान से हुआ और दूसरी जगह एफआईआर दर्ज हुई तो आरोपियों की मुश्किलें और बढ़ेगी। फिलहाल यूपी पुलिस और एसटीएफ जेल में बंद ठगी के सभी जालसाजों के खिलाफ पूरी मजबूती से जांच -पड़ताल कर रही है, पुलिस सारे पुख्ता सबूतइकट्ठा कर इस तैयारी में लगी है किजब मामला कोर्ट में पहुंचे तो जालसाजों के खिलाफ कड़ी पैरवी में कोई कमी न रहे।
मामले में चल रही दो आईपीएस की जांच भी
इस ‘टोटल फ्राड-डॉट-कॉम’ में अब दो आईपीएस अफसरों की गर्दन भी फंसी है। इनमें से एक आईपीएस अफसर अरविन्द सेन हैं, जो कि तत्कालीन सीबीसीआडी के एसपी थे। फर्जीवाड़े में इनकी सीधे संलिप्तता पायी गयी है। मामले में फंसे दूसरे आईपीएस अधिकारी डीसी दुबे की हालांकि सीधे पशुपालन विभाग के फर्जीवाड़े में कोई भूमिका नहीं मिली है, परन्तु जालसाजी के आरोपियों की अन्य कई मामलों में मदद करने और ठेके आदि दिलाने में उनकी भूमिका पायी गयी है। जैसे-जैसे मामले की परतें खुल रही हैं ऐसा लग रहा है कि इस फर्जीवाड़े में अभी कई रसूखबदारों के नाम सामने आएंगे।
पुलिस के हाथ लगे हैं कुछ नए तथ्य और दस्तावेज
यूपी एसटीएफ की इस कार्रवाई के बाद विवेचना एसीपी गोमतीनगर संतोष कुमार सिंह को दी गई थी। एसीपी ने दो दिन तक सचिवालय, सीबीसीआईडी के दफ्तर और नाका कोतवाली जाकर पड़ताल की। इस दौरान कई नए तथ्य सामने आये। इस पर ही शनिवार को एसीपी ने अपनी टीम के साथ सामने आये सभी दस्तोवजों की पड़ताल की। इस दौरान भी कुछ नए तथ्य हाथ लगे जिन पर कुछ और जानकारियां सचिवालय प्रशासन से मांगने की बात कही गई।
आगे की जांच के लिए बनी हैं पुलिस की तीन टीम
यूपी के पशुपालन राज्यमंत्री जय प्रकाश निषाद के विधानभवन स्थित सचिवालय में बने दफ्तर में किस तरह से फर्जीवाड़ा हो रहा था। कौन कब और कैसे अंदर पहुंचा और किसने किस स्तर पर मदद की। ऐसे ही अधिकतर सवालों का जवाब तैयार कर पुलिस ने अपनी कार्रवाई के लिये पूरा खाका तैयार कर लिया है। यह सब कुछ छह लोगों के बयान पर किया गया है। इसके अलावा कुछ और तथ्य जुटाने तथा फरार लोगों की तलाश के लिये लखनऊ पुलिस की तीन टीमें बनायी गई है।
विभाग पर भारी पड़ रहा नामजद पुलिस हेड कांस्टेबल, अब तक है फरार
फर्जीवाड़े में नामजद पुलिस हेड कांस्टेबल दिलबहार सिंह यादव हफ्ते भर से वांटेड है पर उसके खिलाफ कार्रवाई लखनऊ और बाराबंकी पुलिस के बीच लिखापढ़ी में फंसी है। इस लिखापढ़ी के दौरान ही यह भी सामने आ गया कि दिलबहार का जब भी लखनऊ से ट्रांसफर हुआ, तब तब उसने खुद को लखनऊ से सम्बद्ध करा लिया। अब महकमे में ही चर्चा है कि आखिर दिलबहार और उसके ऐसे कई अन्य सिपाही आखिर कैसे अफसरों पर भारी पड़ जा रहे हैं।
बाराबंकी में हुआ था ट्रांसफर, लखनऊ सर्विलांस सेल में था अटैच
मार्च में शुरू हुयी इस फर्जीवाड़े की जांच शुरुआत में ही दिलबहार का नाम सामने आ गया था। उस समय वह लखनऊ में सर्विलांस सेल में था। एसटीएफ ने उसी दौरान लखनऊ पुलिस को उसे सर्विलांस सेल से हटाने के लिए कहा था, जांच के दौरान उसकी संलिप्तता साफ़ दिखाई पड़ रही थी। इसके बावजूद दिलबहार के खिलाफ कार्रवाई नहीं हो पायी। जांच में पाया गया है कि हेड कांस्टेबल दिलबहार ने ही अन्य सिपाहियों के साथ मिलकर 31 मार्च को पीड़ित को नाका कोतवाली लाकर खूब धमकाया था।
दो जिलों की पुलिस के फंसी है आरोपी सिपाही के खिलाफ कार्रवाई
मामले की एफआईआर में उक्त हेड कांस्टेबल का नाम आने के बाद अफसरों द्वारा पहले तो कहा गया कि उसे निलम्बित किया जा रहा है। इसके बाद अफसरों ने कहा कि उसका ट्रांसफर वर्ष 2018 में बाराबंकी हुआ था पर जनवरी, 2019 में उसने खुद को लखनऊ पुलिस से सम्बद्ध करा लिया था। इस आधार पर उसका निलम्बन बाराबंकी एसपी करेंगे।
कहा जा रहा है कि उसके निलम्बन की संस्तुति कर दी गई है। परन्तु बाराबंकी पुलिस के अनुसार अभी वहां यह निलंबन का संस्तुति आदेश नहीं पहुंचा है। लखनऊ पुलिस के अनुसार फर्जीवाड़ा में संलिप्तता की सूचना मिलने के बाद जब फर्जीवाड़ा सामने आया तो 15 जून को उसे बाराबंकी के लिये कार्यमुक्त कर दिया गया। दो जनपदों की पुलिस की इस लिखापढ़ी के बीच आरोपी दिलबहार लगातार फरार है और पुलिस के हाथ नहीं आ रहा है।