यहां दुर्गा के रूप में पूजी जाती है महाभारत की एक राक्षसी
दस्तक टाइम्स/एजेंसी : पांचों पांडवों में सबसे बलशाली भीम की पत्नी हिडिम्बा को कुल्लू राजवंश की दादी के रूप में जाना जाता है। यहां में लोग हिडिम्बा को देवी मानते हैं और उनकी पूजा करते हैं। पगोड़ा शैली में बने इस मंदिर के आस-पास का दृश्य इतना सुंदर है कि मनाली में आने वाले पर्यटक यहां जरूर आते हैं। इसी कारण के इस मंदिर की गिनती हिमाचल प्रदेश के प्रमुख मंदिरों में की जाती है।
हिडिम्बा की देवी रूप में मान्यता
हिमाचल प्रदेश ते हर क्षेत्र के अपने-अपने देवी-देवता हैं, जिनकी मान्यता स्थानीय लोगों में भरपूर होती है। हिडिम्बा को स्थानीय लोग मां दुर्गा का अवतार मानते हैं और इसी रूप में उनकी पूजा भी करते हैं। कहा जाता है कि समय-समय पर हिडिम्बा ने यहां के लोगों को कई राक्षसों से मुक्ति दिलाई थी, जिसकी वजह से लोग उन्हें मां दुर्गा का अवतार मानने लगे। मंदिर में हिडिम्बा देवी की लगभग साठ सेंटीमीटर ऊंची पत्थर से बनी मूर्ति है। इस मंदिर में सिर्फ सुबह के समय ही पूजा की जाती है।
कहा जाता है कि 16वीं शताब्दी के मध्य राजा बहादुर सिंह ने यहां इस मंदिर का निर्माण करवाया था। यह प्राचीन मंदिर ऐतिहासिक पगोड़ा शैली में बनाया गया है। मंदिर की छत चार तलों में बंटी हुई है। साथ ही मंदिर की तीन दिशाओं में बरामदे हैं, जहां लकड़ी पर बहुत ही सुंदर नक्काशी की गई है। मंदिर के मुख्य दरवाजे के ठीक ऊपर नवग्रहों की प्रतिमा बनी हुई है।
हिमाचल प्रदेश के प्रसिद्ध कुल्लू दशहरे में भी देवी हिडिम्बा की इस प्रतिमा को शामिल किया जाता है। उत्सव में शामिल होने वाले सभी देवी-देवता और जनता भगवान रघुनाथ के साथ-साथ कुल्लू राजवंश की दादी हिडिम्बा देवी के भी दर्शन करते हैं।
प्रसंग के अनुसार, लाश्रागृह की घटना के बाद जब पांडव बच निकले तो वे माता कुंती के साथ घूमते हुए हिमालय क्षेत्र में पहुंचे। थकान के कारण माता कुंती और चार भाई सो गए, लेकिन भीम जागकर पहरा देता रहा। वहां से कुछ ही दूरी पर हिडिम्ब राक्षस का निवास था। मानवों की खुशबू आने पर राक्षस हिडिम्ब ने अपनी बहन हिडिम्बा से उन मानवों को मार कर, उसके लिए भोजन लेकर आने को कहा। अपने भाई के कहने पर हिडिम्बा पांडवों और कुंती का वध करने के लिए चली गई। जंगल में पहुंचने पर जब हिडिम्बा ने भीम को देखा तो वह उस पर मोहित हो गई और अपना राक्षसी रूप छोड़कर मानव रूप धारण करके भीम के सामने गई। भीम के सामने जाकर हिडिम्बा ने उसे अपने राक्षस होने की बात बता दी, साथ ही उससे विवाह करके की भी विनती की। विवाह करने के लिए भीम ने उसके सामने एक शर्त रखी। शर्त यह थी कि अगर वह राक्षसी प्रवृत्ति छोड़ दे तो भीम उससे विवाह कर लेगा। हिडिम्बा इस बात के लिए तैयार हो गई और कुंती ने भी इस बात के लिए अपनी सहमति देकर, उन दोनों को एक साल साथ में रहने की आज्ञा दे दी। तभी अचानक राक्षस हिडिम्ब वहां आ गया। हिडिम्ब और भीम के बीच युद्ध हुआ, जिसमें हिडिम्ब मारा गया। इसके बाद भीम और हिडिम्बा का विवाह कर दिया गया। भीम और हिडिम्बा का घटोत्कच नाम का एक पुत्र हुआ। पुत्र के बड़े होने पर हिडिम्बा ने अपना राज्य उसे सौंप दिया और खुद तपस्या में लीन हो गई। जिस जगह पर हिडिम्बा ने तपस्या की, आज उसी जगह पर हिडिम्बा का मंदिर है।