यूरोपीय संघ ने यूरोप में अमेरिकी पर्यटकों के भ्रमण पर लगाई रोक
यूरोपीय देशों को ये स्पष्ट करना चाहिए कि कोरोना वायरस के वक़्त बने क़ानून स्थायी नहीं हैं। लेकिन हंगरी में जो हुआ वो यूरोपीय यूनियन के संस्थापक मूल्यों की अवहेलना करता है जिनमें लोकतंत्र और क़ानून का शासन की बात की गई थी। कमीशन चाहे तो हंगरी को दिया जाने वाला पैसा रोक सकता है जो एक सख़्त संदेश होगा।
नई दिल्ली, 30 जून : यूरोपीय संघ ने अमेरिका के पर्यटकों पर अपने सदस्य देशों में भ्रमण करने पर रोक लगा दिया है। यूरोपीय संघ ने जिन 15 देशों को अपने सदस्य राष्ट्रों में भ्रमण के लिए सुरक्षित माना है, उस सूची में अमेरिका का नाम नहीं है। यूरोपीय देश अमेरिका में कोरोनावायरस के बढ़ते मामलों को देखते हुए उससे दूरी बनाए रखना चाहते हैं ।
इस समय यूरोप का हर देश अपनी जनता, उनकी नौकरियाँ, उनकी सेहत और अपनी अर्थव्यवस्था को लेकर फ़िक्रमंद है। मगर यूरोपीय एकता के हिमायती समझे जाने वाले जर्मनी जैसे यूरोप के अमीर देशों ने अभी तक इटली और स्पेन जैसे आर्थिक मुश्किलों में घिरे देशों की मदद के बारे में चुप्पी साध रखी है। कोरोना वायरस संकट ने यूरोपीय संघ की सार्थकता को लेकर भी सवाल छेड़ दिया है।
बीबीसी के यूरोप संपादक कात्या ऐडलर का कहना है कि जर्मनी ने इटली को मास्क भेजे हैं, उसने फ़्रांस और इटली के कोरोना संक्रमित रोगियों को अपने अस्पतालों में भी भर्ती किया है। मगर उसने साथ ही इटली, स्पेन, फ़्रांस और दूसरे देशों की ये अपील ठुकरा दी कि कोरोना वायरस की वजह से जो कर्ज़ जन्मा है उसे बराबर बाँटा जाए।
इटली में कइयों को लगता है, उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया गया है। ठीक वैसा ही जैसा यूरो संकट और प्रवासी संकट के समय हुआ था। यूरोपीय कमिशन ने कोरोना संक्रमण की वजह से प्रभावित कामगारों की मदद के लिए 100 अरब यूरो की एक योजना प्रस्तावित की थी। उसने इटली को मेडिकल सामानों के लिए पाँच करोड़ यूरो देने का भी एलान किया था। यूरोपीय केंद्रीय बैंक ने भी यूरो मुद्रा वाले देशों में अर्थव्यवस्था को मज़बूती देने के लिए 750 अरब यूरो का पैकेज देने का वादा किया है।
कोरोना वायरस की महामारी के बीच यूरोप के देशों में नीतिगत स्तर पर कई विसंगतियां देखने को मिली हैं। हंगरी के प्रधानमंत्री ने संसद से एक क़ानून पास करवा लिया जिसके बाद वो जब तक चाहें तब तक सत्ता में रह सकते हैं। हंगरी के प्रधानमंत्री विक्टर ओर्बन अपनी अनुदारवादी लोकतंत्र की नीति के लिए जाने जाते हैं।
यूरोपीय कमीशन ने बस नाम के लिए सख़्त समझी जाने वाली प्रतिक्रिया दी और इस घटना पर चिंता जताते हुए कहा कि यूरोपीय देशों को ये स्पष्ट करना चाहिए कि कोरोना वायरस के वक़्त बने क़ानून स्थायी नहीं हैं। लेकिन हंगरी में जो हुआ वो यूरोपीय यूनियन के संस्थापक मूल्यों की अवहेलना करता है जिनमें लोकतंत्र और क़ानून का शासन की बात की गई थी। कमीशन चाहे तो हंगरी को दिया जाने वाला पैसा रोक सकता है जो एक सख़्त संदेश होगा।
(लेखक आंतरिक सुरक्षा एवं अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार हैं)