सारी दुनिया का बोझ हम उठाते है
राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस पर विशेष
उमेश यादव/ रामसरन मौर्या: चिकित्सक को धरती का भगवान कहा जाता है।क्योंकि मानव हो या जीव जंतु जब बीमार होते है तो उनके प्राण बचाने का कार्य चिकित्सक ही करते हैं।विश्व में चिकित्सकों की सेवाओं का स्मरण करने एवं सम्मान प्रदर्शित करने के लिए अलग-अलग देशों में विभिन्न तिथियों में चिकित्सक दिवस (डॉक्टर्स डे) का आयोजन किया जाता है।
भारत में हर साल 1 जुलाई को राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस मनाया जाता है। यह दिन सभी डॉक्टरों को उनकी सेवा के प्रति धन्यवाद देने के लिए मनाया जाता है। भारत में नेशनल डॉक्टर्स डे मनाने का इतिहास काफी गौरवमय है। जिंदगी में डॉक्टर का कितना महत्व है, हम यह अच्छी तरह से जानते हैं। डॉक्टर को इंसान के रूप में भगवान के समान माना जाता है। यह आज के संदर्भ में एकदम सटीक हो सकता है जब पूरी दुनिया कोरोना वायरस महामारी से पीड़ित है।ऐसे में डॉक्टर्स अपनी जान की परवाह किये बगैर दूसरों के जीवन की रक्षा कर रहे हैं।
क्यों मनाया जाता है डॉक्टर्स डे:
भारत में 01 जुलाई को डॉक्टर्स डे मनाने का उद्देश्य यह है कि इस दिन देश के महान डॉक्टर और पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्य मंत्री बिधानचंद्र रॉय का जन्म हुआ था।हालांकि डॉक्टर बिधानचंद्र की इसी दिन पुण्यतिथि भी होती है। डॉ बिधानचंद्र रॉय का जन्म 1 जुलाई 1882 को बिहार के पटना के में हुआ था। उन्हीं के सम्मान में नेशनल डॉक्टर्स डे मनाया जाता है।
कौन थे डॉक्टर बिधान चंद्र रॉय?
महान भारतीय चिकित्सक डॉ. बिधान चंद्र राय का जन्म दिवस एक जुलाई को मनाया जाता है।बताया जाता है कि उनका जन्म 1882 में बिहार के पटना जिले में हुआ था। कोलकाता में चिकित्सा शिक्षा पूर्ण करने के बाद डॉ. राय ने एमआरसीपी और एफआरसीएस की उपाधि लंदन से प्राप्त की, 1911में उन्होंने भारत में चिकित्सकीय जीवन की शुरुआत की।
इसके बाद वे कोलकाता मेडिकल कॉलेज में व्याख्याता बने। वहाँ से वे कैंपबैल मेडिकल स्कूल और फिर कारमिकेल मेडिकल कॉलेज गए।उनकी ख्याति शिक्षक एवं चिकित्सक के रूप में ही नहीं बल्कि, स्वतंत्रता सेनानी के रूप में महात्मा गांधी के साथ असहयोग आंदोलन में शामिल होने के कारण बढ़ी। भारतीय जनमानस के लिए प्रेम और सामाजिक उत्थान की भावना डॉ. राय को राजनीति में ले आई।वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य बने और बाद में पश्चिम बंगाल के द्वितीय मुख्यमंत्री बने। डॉ. राय को भारत रत्न से भी सम्मानित किया गया था।उनके जन्म दिवस को डॉक्टर्स डे के रूप में मनाया जाता है।
वरिष्ठ होम्योपैथिक चिकित्सक डॉ अनुरूद्व वर्मा बताते है कि इस वर्ष डॉक्टर्स डे दिवस का महत्व और अधिक बढ़ जाता है। क्योंकि पूरी दुनिया कोविड 19 के संक्रमण से परेशान है और इसके बचाव एवं उपचार में चिकित्सक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।देश में अब तक लगभग साढ़े पांच लाख लोग कोविड 19 से संक्रमित हो चुके हैं। लगभग 16 हजार से अधिक लोग असमय मौत का शिकार हो चुके हैं और अभी संक्रमण की तेज रफ्तार जारी है।
इस वैश्विक महामारी से निपटने के लिए चिकित्सक एवं स्वास्थ्यकर्मी अपना जीवन दांव पर लगा कर अपनी सेवाएं दे रहें हैं। यहां तक कि उन्हें अपने परिवार से भी दूर रहना पड़ता है। इस बीमारी से निपटने के लिए अपनी सेवाएं दे रहे चिकित्सक आम लोगों की अपेक्षा 4 गुना ज्यादा संक्रमण के खतरे में रहते हैं।दुनिया के आंकड़े देखें तो सैकडों चिकित्सक ऐसे हैं जो मरीजों की सेवा करते हुए संक्रमण का शिकार हो गये और अपनी जान गवां चुके हैं। सभी चिकित्सकों का केवल एक ही मकसद है, कोरोना को हराना और जिंदगी को बचाना। “
इस महामारी में चिकित्सक भगवान का रूप बनकर प्रकट हुये हैं। तमाम विपरीत परिस्थितियों में काम करते वक्त चिकित्सक शारीरिक तौर पर भी मुश्किल स्थितियों से गुजर रहे हैं। क्योंकि इस दौरान उनकी जिंदगी काफी थकान भरी रहती है। पी पी ई किट पहनने एवं उतारने में ही लगभग आधा घंटा लगता है तथा यह उपकरण केवल एक बार ही प्रयोग किया जा सकता है।
सबसे मुश्किल तब आती है जब शरीर में एकदम चुस्त हो जाने वाली किट के पहनने के बाद सांस लेने में भी मुश्किल होती है ,घुटन महसूस होने लगती है । स्थिति यह है कि चिकित्सक 6 घंटे की ड्यूटी के दौरान भोजन ,पानी ताजी हवा और यहां तक की वाशरूम का प्रयोग भी नहीं कर पाते हैं।आपात स्थिति के दौरान चिकित्सकों को और अधिक सतर्क रहने की जरूरत पड़ती है। क्योंकि एक छोटी सी गलती भी जिंदगी के लिये भारी पड़ सकती है और जानलेवा साबित हो सकती है ।
कोरोना ड्यूटी के दौरान चिकित्सकों को अनेक स्थानों पर जनता के तीव्र विरोध का भी सामना करना पड़ा है।कुछ स्थानों पर उनके ऊपर जानलेवा हमला भी किया गया तथा उन्हें जान जोखिम में डालकर अपना कार्य करना पड़ा।चिकित्सकों के साथ कई जगहों पर क्वारंटाइन किये गये लोगों द्वारा अभद्रता एवं मारपीट की शिकायतें आने पर चिकित्सकों को पुलिस की मदद भी लेनी पड़ी। चिकित्सकों तथा चिकित्साकर्मियों के साथ मारपीट एवं हिंसा की घटनाओं को देखते हुये उसे रोकने के लिए सरकार को चिकित्सकों की हिंसा के विरुद्ध कानून बनाना पड़ा और अनेक जगहों पर पुलिस को कार्यवाही भी करनी पड़ी।
क्वारंटाइन एवं आइसोलेशन किये गये मरीजों की उपचार एवं देख-रेख करना भी बहुत कठिन है। क्योंकि इस दौरान भी संक्रमण का खतरा लगातार बना रहता है। सबसे बड़ी परेशानी तो तब होती है जब लगातार आइसोलेशन की ड्यूटी करने के बाद उसे खुद 14 दिन क्वारंटाइन रहना पड़ता है। इस अवधि में वह अपने परिवार वालों से भी नहीं मिल पातें है। उन्हें लगातार डर बना रहता है कि कहीं उनके परिवार के लोगों को संक्रमण न हो जाये। इसलिए इन विकट परिस्थितियों में चिकित्सकों को अनेक मानसिक परेशानियों से भी जूझना पड़ता है ।
कोरोना ड्यूटी के दौरान उन्हें संसाधनों जैसे उपकरणों ,दवाइयों एवं अन्य सुविधाओं के अभाव का भी सामना करना पड़ता है। क्योंकि देश के अस्पतालों की दुर्दशा किसी से छुपी नहीं है। ऐसी विपरीत स्थितियों में भी चिकित्सक को अपने कार्यों का पूरी निष्ठा के साथ संपादन करना पड़ता है।चिकित्सक को हर कीमत में अपने रोगी के स्वास्थ्य की देखभाल करनी है यही उनका उद्देश्य होता है।कोरोना ड्यूटी के कारण अनेक स्थानों पर सामाजिक तिरस्कार का भी सामना करना पड़ता है। लोगों को डर लगा रहता है कि कहीं इनसे वह भी संक्रमित न हो जाए।यहाँ तक की उनसे किराये के मकान भी खाली कराये जाने की घटनाएं सामने आयीं हैं।
के जी एम यू लखनऊ में दन्त विज्ञान संकाय के डा॰ राघवेन्द्र पटेल का कहना है कि इस महामारी के समय मरीजों का उपचार के साथ हमें अपना भी ध्यान रखने की जरूरत है तभी हम वेहतर चिकित्सा उपलब्ध करा सकते हैं कोरोना के इस काल के दौरान सभी चिकित्सा पद्धतियों के चिकित्सक कोरोना को हराने के अभियान में कंधे से कंधा मिलाकर कार्य कर रहें हैं। कोरोना के संकट के दौरान चिकित्सक जिस साहस ,लगन, मेहनत ,निष्ठा और बिना जान की परवाह किये कार्य रहे है उसकी किसी से तुलना नहीं कि जा सकती है। कोरोना योद्धा के रूप में कार्य करने वाले चिकित्सकों के प्रति समाज को भी अपना नजरिया बदलना होगा।