उत्तर प्रदेश

हम गाय का आदर करें, आप सूअर और शराब दूर रखें: आजम

azam-khan-5631047d56cad_exlstदस्तक टाइम्स/एजेंसी-उत्तर प्रदेश: गौमांस को लेकर पूरे देश में चल रहे विवादों के बीच प्रदेश के नगर विकास एवं अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री मो.आजम खान ने कहा है कि गाय आपकी आस्था से जुड़ी है और हमारे लिए काबिले एहतराम है लेकिन जिनसे हमारी आस्था जुड़ी है वे देश में काबिले एहतराम क्यों नहीं हैं? दस्तूर सबके लिए बराबर होने चाहिए।

उन्होंने कहा कि हम आपकी गाय का एहतराम करें लेकिन आपको भी चाहिए कि आप सूअर को हमसे दूर रखें, शराब की दुकानों को इबादतगाहों से दूर करें।

आजम खान ने बुधवार को पर्यटन भवन में आयोजित स्वतंत्रता संग्राम में उर्दू समाचार पत्रों की भूमिका पर आयोजित विषयक सेमिनार में खूब सियासी बातें कीं। उन्होंने कहा कि गाय हमारे लिए कल भी काबिले एहतराम थी। बाबर के जमाने में पूरी पाबन्दी थी।

सुल्तान टीपू के जमाने में पूरी पाबन्दी और सख्त सजा थी और सजा-ए-मौत किसी ने तय की थी तो बहादुर शाह जफर ने तय की थी। लेकिन हम यह नहीं चाहते कि मेम साहब के बिस्तर पर कुत्ता तो साथ में सोए लेकिन गाय लू में खड़ी हो और पालीथिन खा रही हो। यह धोखा देने वाली बात है।

आजम खान ने कहा कि वध रोकना है तो इंसान से लेकर जानवर तक कोई नहीं मारा जाना चाहिए। फिर मुर्गा भी क्यों कटे, बकरा भी क्यों कटे? लेकिन मेरे रामपुर के एक मित्र ने जब होटल खोली और रोस्टेड मुर्गा बेचने लगे तो वे बताते थे कि अपना भाई आता है तो 250 ग्राम मांगता है, जब दूसरे आते हैं तो कम से कम पांच किलो या दस किलो लेने आते हैं, मोटरसाइकिल स्टार्ट रखते हैं और देखते रहते हैं कि कोई देखता न हो, हम गर्दन डाले या पंजा डाले, टांग डाले या सीना डालें उन्हें कोई मतलब नहीं।

आजम ने कहा कि जस्टिस मार्कण्डेय काटजू और शोभा डे के यह कहने पर कि वे बीफ खाते हैं, कोई हमला नहीं होता क्योंकि ऐसा करने वालों को मालूम है कि इससे डण्डे पड़ेंगे और दुनिया में बदनामी होगी लेकिन केरला हाउस पर चढाई हो जाती है और बिहार में 10-20 वोट बढ़ जाते हैं।

दादरी की घटना के आधार पर उन्होंने कहा कि गुमान के आधार पर किसी कमजोर को, किसी लाचार को मार देना कहां का इंसाफ है और उसे जिसके यहां दो महीने पहले आपने सेवइयां खाई थीं।

आजम ने कहा कि इन सबके बावजूद आज देश में बड़ी संख्या ऐसे लोगों की है जो चाहते हैं कि अमन रहे। यही कारण है कि 2002 में गुजरात के दंगे के बाद भाजपा की सरकार नहीं आई, उसके बाद भी नही आई। देश का आम आदमी किसी की जान और किसी की आबरू लेने, किसी का घर जलाने, कर्फ्यू-दंगा को अच्छा नहीं समझता।

इसे अच्छा समझते हैं साक्षी महाराज जैसे लोग जो अपनी शिष्या के बलात्कारी हैं। उन्होंने कहा कि सियासतदानों ने लोगों में मजहब को अच्छा बुरा बताया है। जिस दिन उनसे यह अधिकार ले लिया जाएगा मुल्क में अमन शान्ति हो जाएगी।

नगर विकास मंत्री ने कहा कि कहने वाले मुझे कभी पाकिस्तानी एजेण्ट कहते हैं, कभी गद्दार और आईएसआई का एजेण्ट बताते हैं लेकिन किसी माई के लाल में हिम्मत नहीं है कि हम पर गद्दारी का कोई इल्जाम लगा दे।

हराम, नाजायज या कमीशन का कोई दाग हमारे दामन पर नहीं है। हमारे खिलाफ सीबीआई जांच नहीं बैठ सकती, मोहल्ले में रहते हैं गली में घर है। अगर जांच होगी तो यही होगी कि विश्वविद्यालय कहां से बनाया, स्कूल कैसे बना और इसके लिए अगर जेल में रहना पड़े तो यह मेरी खुशनसीबी होगी।

उन्होंने कहा कि हम बहुत कड़वी बात कहते हैं लेकिन कहीं उसमें वतन के साथ दुश्मनी नहीं होती है,किसी के साथ नफरत नहीं होती। मुझे इस तरह पहचाने वाले भी बहुत हैं। जौहर विश्वविद्यालय में जो पैसा लगा है उसका 80 फीसदी हिस्सा उनका है जो मुसलमान नहीं हैं।

विक्टोरिया से अधिक जिक्र मिला हमारी भैंसों को
आजम खान ने अपनी भैंसों का जिक्र फिर खुद ही कर दिया। उन्होंने कहा कि मेरी भैंसें गुम हो गईं ये आप सबकी जानकारी में है। जकात का पैसा निकला हुआ था तो क्या शोहरत हासिल हुई इन भैंसोंको? आज के जमाने में मल्लिका विक्टोरिया का कोई इतना जिक्र नहीं करता होगा, जितना जिक्र मेरी भैंसों का किया जाता है, वजीरे आजम तक ने जिक्र किया।

एक सन्दर्भ में नगर विकास मंत्री ने कहा कि सियासी जलसे होते हैं तो कुछ नाचने गाने वालियां बुला ली जाती हैं। उन्होंने कहा कि हम तो इसके भुक्तभोगी हैं। इसी कारण पार्टी से निकाले गए। ले कर भी गए और निकाले भी गए।

मीसा की नहीं, औरत जान की तौहीन
बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव की बेटी मीसा पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की टिप्पणी के जिक्र में आजम खान ने कहा कि यह केवल मीसा की नहीं, औरत जात की तौहीन हुई है। औरतों के लिए इतनी ओछी, इतनी हल्की जबान के प्रयोग को पूरे देश को नोटिस लेना चाहिए।

पर्सनल ला बोर्ड अपनी राय रखे

पर्सनल लॉ के रिव्यू के मसले पर आजम खान ने पत्र-प्रतिनिधियों से कहा कि पर्सनल ला बोर्ड अपनी बैठक कर अपनी राय का इजहार जब तक न करे तब तक हमें इसे दखल नहीं मानना चाहिए। उन्होंने कहा कि रिव्यू का मतलब ऐसा नहीं होता कि आप उसमें कोई ऐसी तब्दीली कर दें जो इस्लामी भावना के खिलाफ हो।

अगर पर्सनल लॉ के खिलाफ कोई फैसला देना होता तो सुप्रीम कोर्ट उसमें सक्षम था लेकिन उसने रिव्यू करने को कहा है। उससे बेहतर कुछ कर सकते हैं तो करना चाहिए।

 

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