बुंदेलखंड के ऐतिहासिक कजली मेले पर कोरोना का ग्रहण
आल्हा और ऊदल की धरती पर संक्रमण बना बाधा
महोबा, 4 अगस्त, दस्तक टाइम्स (विजय प्रताप सिंह) : बुंदेलखंड के महोबा में आयोजित होने वाले ऐतिहासिक कजली मेला महोत्सव पर कोरोना काल का ग्रहण लग चुका है। यहां करीब 839 साल पुराने कजली मेला महोत्सव पर इस बार कोरोना वायरस ने लाखों दर्शकों के मनोरंजन पर बड़ी बाधा डाली है। रक्षाबंधन के दिन आयोजित होने वाले सदियों पुराने मेले का आयोजन नगर पालिका परिषद ओर जिला प्रशासन द्वारा कराया जाता था। जिनमें महोबा के वीर आल्हा, ऊदल, राजा परमार, राजकुमारी चंद्रावल सहित आल्हा ऊदल के गुरु ताला सैयद की भव्य आकर्षक झांकिया निकाली जाती थी। लेकिन कोविड-19 के दृष्टिगत डीएम-एसपी ने इस बार कजली मेला महोत्सव के आयोजन पर एकजुट होने वाली भीड़ के मद्देनजर कार्यक्रम पर पाबंदी लगा दी है।
आल्हा और ऊदल ने पृथ्वीराज की सेना को चटाई थी धूल
स्थानीय समाजसेवी तारा पाटकार ने दस्तक टाइम्स को बताया कि आज के दिन ने 839 सौ पुरानी याद ताजा कर दी है। जब नगर की हर गली में सन्नाटा पसरा हुआ था। हर एक व्यक्ति महोबा की आन-बान शान को लेकर ऐतिहासिक कीरत सागर के तट पर दिल्ली के शासक पृथ्वीराज चौहान की सेना से युध्द लड़ रहा था। महोबा के राजा परमार की बेटी राजकुमारी चंद्रावल अपनी सहेलियों के साथ सावन की कजलिया विर्सजित करने गयी थी तभी पृथ्वीराज चौहान की सेना ने चंद्रावल का अपहरण करने के उद्देश्य से आक्रमण कर दिया था। जिसको लेकर दोनों सेनाओं के मध्य भीषण युध्द हुआ था। युध्द में महोबा की ओर से वीर सेनापति आल्हा और ऊदल ने पृथ्वीराज की सेना को परास्त कर घुटने टेकने पर मजबूर कर वापिस खदेड़ दिया था। जिसको लेकर यहां रक्षाबन्धन के एक दिन बाद त्योहार मनाने की परंपरा 839 बर्षों से चली आ रही है|
वहीं वर्षों पुराने एतिहासिक मेले को लेकर डीएम अवधेश कुमार तिवारी ने बताया कि जनमानस की सुरक्षा के दृष्टिगत मेले के आयोजन पर पूरी तरह रोक लगाया गया है। उन्होंने बताया कि कोरोना महामारी के चलते किसी भी सामूहिक रुप से आयोजित होने वाले आयोजन पर पूरी तरह से पांबदी लागू है।