अमृत सर …….तुम्हे अलविदा कैसे कहूँ……….?
लखनऊ, 02 सितंबर, दस्तक टाइम्स : अमृत मोहन……सर….. आप नहीं रहे। इहलोक छोड़कर जाने तक आप लखनऊ में पीटीआई के लिए विशेष संवाददाता के रूप में काम कर रहे थे। जानकारी के अनुसार आप पिछले कुछ दिनों से बुखार से पीड़ित थे। यह भी कहा जा रहा है कि आप खुद ही अपना ट्रीटमेंट कर रहे थे। बुधवार सवेरे जब आप की नाक से खून आया तो आपने दोस्तों को बुलाया। दोस्तों के आने और आपको अस्पताल लेकर जाने में काफी समय लग गया।
आप जैसे वरिष्ठ और प्रतिष्ठित संस्थान में कार्यरत पत्रकार के लिए एम्बुलेंस तक समय पर न मिल पायी। स्वास्थ्य विभाग की निकृष्टम व्यवस्था ने अपना क्रूरतम रूप दिखाया और आपका इलाज नहीं हो सका। व्यवस्था की निकृष्टता के कारण आप काल के गाल में समाहित हो गए। निर्दयी डॉक्टर्स ने आपके बारे में घोषणा कर दी कि अब आप नहीं रहे।
जानकारी के अनुसार आप के निकटतम मित्र, राजीव तिवारी बाबा और पीटीआई में आपके साथी पत्रकार जफ़र इरशाद आदि ने लखनऊ के जिलाधिकारी से लेकर अपर मुख्य सचिव (गृह एवं सूचना) तक को फोन किया फिर भी एम्बुलेंस को आने में कई घंटे लग गए। इसी बीच आप की तबीयत इतनी खराब हो गयी कि आप बेहोश हो गए। येन-केन-प्रकारेण जब आपको लेकर साथी और परिजन अस्पताल पहुंचे तबतक शायद आप जीवित नहीं थे। अस्पताल वालों ने केवल आपके इस दुनिया से चले जाने की आधिकारिक घोषणा मात्र की। इतना ही नहीं कई इसके बाद घंटे तक आपके साथियों और परिजनों को डेथ सर्टिफिकेट लेने के मामले में भी घोर परेशानियां उठानी पड़ीं।
एक भद्दा मजाक बन चुकी इस निकृष्ट और घिनौनी व्यवस्था का शिकार बनकर आप चले गए। इलाज तो दूर आप इलाज करने वाले का दर्शन तक न कर पाए। यहां पर एक बात दिमाग में आती है कि अगर आपका जाना वाकई विधि का विधान ही था, तो शायद यह अच्छा ही रहा आपने उन निर्दयी चेहरों को नहीं देखा। वरना, शायद उनकी निर्दयता भरी गंदी सूरत आपकी आँखों में समा जाती जिसे न देखना ही बेहतर है।
आपका कोरोना का शुरुआती टेस्ट भी निगेटिव ही आया है। इससे साबित होता है कि यदि समय पर इलाज मिलता तो आप अभी हमारे बीच होते, परन्तु कोरोना के चलते भ्रष्टाचार और काली कमाई का अड्ड़ा बने अस्पतालों में अब किसी के जीवन के बचने की ज्यादा संभावना बची भी नहीं है। आपके साथ भी यही खेल हुआ। इस व्यवस्था में इन नीच और निर्दयी लोगों से आपकी मदद की उम्मीद भी कहां की जा सकती थी। वे अपना खेल खेलते रहे और आप काल कवलित हो गए।
अमृत……सर …..विश्वास नहीं हो रहा है कि आप इतने सस्ते में चले गए। सत्य बहुत कठोर है, सबको मालूम है कि आप अब नहीं रहे और मुझे भी। पत्रकार साथियों द्धारा आपके न रहने पर चारों और से घोर दुःख प्रकट किया जा रहा है। आपको थोड़ा भी जानने वाला प्रत्येक व्यक्ति विषाद में है, आप का साथ था ही कुछ ऐसा। प्रदेश के मुख्यमंत्री और सबसे प्रभावशाली अधिकारी की ओर से भी आपके न रहने पर शोक प्रकट किया जा चुका है।
इस सबके बाद भी अगर मै अपनी बात करूँ तो मेरी औकात, हैसियत और ताकत नहीं है कि मै आपको अलविदा कहूँ। आप मेरे सीनियर भी थे और साथी भी। पत्रकार के रूप में भी मैंने आपसे सीखा और मित्र के रूप में भी। आप ही थे जो इतने बड़े संस्थान में कार्यरत रहकर भी मेरी रिपोर्ट्स को पढ़ते थे। आपको अंगरेजी और हिंदी दोनों ही भाषाओं में पत्रकारिता का अनुभव था। फिर भी आप मेरे जैसे दोयम दर्जे के रिपोर्टर की प्रशंशा कर देते थे।
राष्ट्रीय राजधानी से लेकर लखनऊ तक आपने अपनी रिपोर्टिंग के दौरान न जाने कितनी ही बड़ी-बड़ी हस्तियों के इंटरव्यू किये। सत्ता-शासन में होने वाले न जाने कितने महत्वपूर्ण इवेंट्स में आपने मुख्यमंत्री से लेकर उनके उपमुख़्यमंत्रियों तक से सीधी बात की। हो भी क्यों ना, आप देश की शीर्ष न्यूज़ एजेंसी के लिए पूरी निष्ठा से काम जो करते थे। आपने अपनी उच्च शिक्षा भी लखनऊ में ही पाई, यहीं से करियर भी शुरू किया। शहर में आप के जानने वालों की भी बड़ी तादात है।
मेरा सवाल यह है कि जब आप के जैसे व्यक्ति के साथ जीवन संकट के समय ऐसा हो सकता है, तो फिर कौन व्यक्ति इस लचर व्यवस्था से आश्वस्त हो सकेगा? आप भले ही चले गए, परन्तु इस व्यवस्था के निकृष्टम होने का प्रमाण दे गए। कोई कुछ भी कहे, मै जानता हूँ कि आप कमजोर नहीं थे, लाचार नहीं थे, आप तो अवधूत थे, हुंकार और टंकार से भय पैदा करने वाले जीवट अवधूत, एक बेहद सौम्य और शिष्ट परन्तु साथ ही दृढ़ता से भरपूर जीवन सत्य थे आप, विषमतम परिस्थितियों से जूझने की क्षमता थी आप में, बस आप इस निकृष्ट व्यवस्था के हवाले थे। और इस व्यवस्था की निकृष्टता आपको निगल गयी।
मुझमे हिम्मत नहीं है कि मै आपको अलविदा कहूँ…….जब तक यह व्यवस्था, इसकी निकृष्टता और इस व्यवस्था के जिम्मेदारों की निर्दयता बनी हुयी है। आपके जैसे अच्छे लोगों को इसका शिकार होना है, आज आप गए कल मेरी और परसों किसी और की बारी है………मै आपको अलविदा नहीं कह सकूंगा…….बस….यदि आप कहीं हैं….तो मेरा चरण स्पर्श स्वीकारें…..अब मेरे पास शब्द शेष नहीं हैं…