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शारदीय नवरात्रि में अष्टमी के दिन लहर की देवी मंदिर में होती है विशेष आरती

ज्योतिष : झांसी के सीपरी में स्‍थापित है लहर की देवी मंदिर। इस मंदिर में शारदीय नवरात्रि के अष्टमी को विशेष आरती होती है। मान्‍यता है क‍ि इस आरती में शाम‍िल होने से भक्‍तों की सभी कामनाएं पूरी हो जाती हैं। इस मंद‍िर का निर्माण बुंदेलखंड के शक्तिशाली चंदेल राज के समय हुआ। प्राचीन काल में बुंदेलखंड को जेजाक भुक्ति प्रदेश के नाम से जाना जाता था।

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इस प्रदेश का राजा परमाल देव था। राजा के दो भाई थे, जिन्हें आल्हा-उदल के रूप में जाना जाता था। महोबा की रानी मछला को पथरीगढ़ का राजा ज्वाला सिंह अपह्त कर ले गया था। रानी को वापस लाने व राजा ज्वाला सिंह से पार पाने के लिए आल्हा ने इसी मंदिर में अपने भाई उदल के सामने अपने पुत्र की बलि चढ़ा दी थी। लेकिन देवी ने चढ़ाई गई इस बलि को नहीं स्वीकार क‍िया और बलि चढ़ाने के कुछ देर बाद ही बालक जिंदा हो गया।

आल्हा ने जिस पत्थर पर पुत्र की बलि दी थी, वह आज भी मंदिर परिसर में सुरक्षित है। लहर की देवी को मनिया देवी’ के रूप में भी जाना जाता है। जानकारों का कहना है कि मनिया देवी मैहर की मां शारदा की बहन हैं। यह मंद‍िर 8 शिला स्तंभों पर खड़ा हुआ है। प्रत्येक स्तंभ पर आठ योगिनी अंकित हैं। इस प्रकार कुल चौसठ योगिनी के स्‍तंभों पर मंद‍िर टिका हुआ है। सभी स्‍तंभ गहरे लाल स‍िंदूरी रंग में रंगे हैं। मंद‍िर परिसर में भगवान सिद्धिविनायक, शंकर, शीतला माता, अन्नपूर्णा माता, भगवान दत्तात्रेय, हनुमानजी और काल भैरव का भी मंद‍िर है।

लहर की देवी की प्रत‍िमा द‍िन में तीन बार रंग बदलती है। प्रात:काल में बाल्‍यावस्‍था में, दोपहर में युवावस्‍था में और सायंकाल में देवी मां प्रौढ़ा अवस्‍था में नजर आती हैं। तीनों ही पहर में मां का अलग-अलग श्रृंगार क‍िया जाता है। बता दें क‍ि कालांतर में पहूज नदी का पानी पूरे क्षेत्र में पहुंच जाता था। नदी की लहरें माता के चरणों को स्पर्श करती थी इसलिए इसका नाम ‘लहर की देवी’ पड़ गया। मंद‍िर में विराजमान देवी तांत्रिक हैं, इसलिए यहां अनेक तान्त्रिक क्रियाएं भी होती हैं। यूं तो यहां वर्षभर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। लेक‍िन नवरात्रि में व‍िशेष भीड़ होती है। नवरात्रि की अष्‍टमी को रात्रि में भव्‍य आरती का आयोजन क‍िया जाता है।

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