मिशन 2022 में भाजपा-सपा को मात देने के लिए बसपा ने बनाया नया मास्टर प्लान…
लखनऊ: बहुजन समाज पार्टी साल 2007 में पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आई थी परंतु अगले चुनावों में ही उसे सत्ता का सिंहासन त्यागना पड़ गया था। जनता ने पार्टी के विरोध में 2012 में पार्टी को सत्ता से बेदखल कर दिया था।
उसके बाद से ही बसपा सत्ता में आने के लिए लगातार एड़ी-चोटी का बल लगा रही है। लेकिन 2007 के बाद उससे समाजवादी पार्टी ने सत्ता छीन ली और उसके अगले चुनावों यानी 2017 में सपा से भाजपा ने सत्ता छीनकर उसे भी विपक्ष में बैठने को मजबूर कर दिया।
बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती ने यूपी विधानसभा उप चुनाव में मिली करारी हार और मिशन 2022 को देखते हुए संगठन को नए सिरे से ठीक करने का फैसला किया है। पार्टी से दलितों के साथ पिछड़ों को जोड़ने की दिशा में काम शुरू कर दिया है।
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पिछड़ों को जोड़ने के लिए उन्होंने प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी पर राजभर समाज के व्यक्ति को बैठाकर यह साफ संकेत दे दिया है कि वह वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में इसी जातीय समीकरण के आधार पर चुनावी मैदान में उनकी पार्टी ताल ठोकेगी। इसके पहले बसपा में पिछड़े वर्ग के रामअचल राजभर और आरएस कुशवाहा प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं।
खबर के मुताबिक मायावती ने मुसलमानों को भी अपनी पार्टी की तरफ आकर्षित करने के लिए तमाम राजनीतिक कदम उठाने का निर्णय लिया है। जिसके तहत मायावती ने एनआरसी और अनुच्छेद 370 के मामले में भाजपा की खिलाफत करते हुए मुसलमानों को साधने की कोशिश की।
इसके लिए मुस्लिम समाज के तीन नेताओं मुनकाद अली, समशुद्दीन राइन और कुंवर दानिश अली को आगे बढ़ाया गया। मुनकाद अली को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर यह संदेश देने कोशिश की है कि बसपा इस समाज की हितैषी है और मुस्लिम समाज के साथ खड़ी है।
इसी रणनीति के तहत बहुजन समाज पार्टी ने विधानसभा की सात सीटों पर उप चुनाव में दो सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवार उतारा था लेकिन इन सबके बावजूद अपेक्षाकृत यह समाज बसपा के साथ जुड़ता हुआ नहीं दिखा।
बसपा सुप्रीमो विधानसभा उप चुनाव में मिली हार की इन दिनों दिल्ली में समीक्षा कर रही हैं। समीक्षा के बाद ही बसपा प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी पर पिछड़े वर्ग के नेता को बैठाया गया है। इस तरह मायावती ने दलितों के साथ पिछड़ों को भी साधने की कोशश की है।
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