आर.के. सिन्हा : आज भारत को सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में दुनिया में सबसे खास माना जाता है और भारत का आईटी सेक्टर का व्यापार यदि 190 अरब डॉलर तक पहुंच गया है, तो इसका श्रेय कुछ हद तक फकीरचंद कोहली जी को देना होगा। आप कह सकते हैं कि कोहली जी ने ही देश के आईटी की नींव रखी। उनका हाल ही में निधन हो गया है। वे 96 साल के थे और अंत तक स्वस्थ रहे। उनका हमारे बीच होना बहुत सुकून देता था।
कोहली जी प्रौद्योगिकी जगत में नवोन्मेष और उत्कृष्टता की संस्कृति को संस्थागत स्वरूप देने वालों में सबसे आगे रहे। अगर उन्होंने देश के आईटी सेक्टर की नींव रखी तो टाटा समूह के आध्य पुरुष जेआरडी टाटा को क्रेडिट देना होगा कि उन्होंने कोहली जी को टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेस (टीसीएस) को स्थापित करने और आगे चलकर उसे चलाने का भी जिम्मा सौंपा था। जेआरडी टाटा में यह अद्भुत गुण था। उनपर ईश्वरीय कृपा थी कि वे चुन-चुनकर एक से बढ़कर एक कुशल मैनेजरों को अपने साथ जोड़ लेते थे।
टाटा ने अपने समूह की सहयोगी कंपनियों में अजित केरकर (ताज होटल), प्रख्यात विधिवेत्ता ननी पालकीवाला (एसीसी सीमेंट), रूसी मोदी (टाटा स्टील) वगैरह को जोड़ा था। ये सब आगे चलकर अपने आप में बड़े ब्रांड बने। टाटा अपने मैनेजरों-सीईओज को स्वतंत्रतापूर्वक काम करने की पूरी छूट देते थे। हालांकि उनपर नजर भी रखते थे। उन्हें सलाह-मशविरा भी देते रहते थे। इन पॉजिटिव स्थितियों में उनके समूह की कंपनियां आगे निकलती रहीं।
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दरअसलफकीरचंद कोहली जी एक महान भविष्यदृष्टा थे, जिन्होंने देश में सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग को खड़ा करने में नेतृत्व की भूमिका निभाई। उन्होंने देश में सूचना प्रौद्योगिकी क्रांति की नींव रखी। उन्हें भारतीय सॉफ्टवेयर उद्योग का ‘भीष्म पितामह’ भी कहा जा सकता है। कोहली जी भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग के सच्चे पथ प्रवर्तक थे। उनके पदचिन्हों का अनुसरण करके देश की अनेक आईटी कंपनियों को भी खूब सफलता मिली। कुछ समय पहले इंफोसिस के संस्थापक चेयरमेन एन.आर. नारायण मूर्ति ने एक सार्वजनिक कार्यक्रम में कोहली जी के पैर छूकर उनके प्रति अपना गहरा सम्मान जताया था। सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि सॉफ्टवेयर उद्योग में कोहली जी का कद कितना बड़ा था।
दरअसल फकीरचंद कोहली जी ने ही प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अवसरों को पहचाना और टीसीएस जैसी महान कंपनी का निर्माण किया। कोहली जी के कुशल नेतृत्व में टीसीएस हमेशा अविजित बनी रही। उन्होंने न सिर्फ इसे एक मजबूत कंपनी के रूप में गढ़ा बल्कि उससे भी बड़ा कार्य यह किया कि ऐसे नेतृत्वकर्ताओं को भी तैयार किया जो उनके काम को कुशलतापूर्वक और आगे बढ़ा सकें।
पीछे मुड़कर देखें तो टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेस की स्थापना सन् 1968 में हुई थी। तब इसका नाम टाटा कंप्यूटर सेंटर हुआ करता था। कुछ ही समय बाद कंपनी का नाम हो गया “टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेस।” टीसीएस ने अपना पहला सॉफ्टवेयर एक्सपोर्ट प्रोजेक्ट 1974 में पूरा किया। उसके बाद इसने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। टीसीएस का 1980 में भारतीय सॉफ्टवेयर उद्योग के कुल निर्यात में 63 फीसद योगदान रहा।
टीसीएस ने 1984 में मुंबई के सान्ताक्रुज़ इलेक्ट्रोनिक्स एक्सपोर्ट प्रोसेसिंग ज़ोन में अपना एक विशाल दफ्तर स्थापित किया। 1990 के दशक में टीसीएस के कारोबार में जबरदस्त बढ़ोत्तरी हुयी, जिसके परिणामस्वरुप कंपनी ने बड़े पैमाने पर भर्तियाँ कीं। 1990 के दशक के आरंभिक एवं मध्य के वर्षों में, टीसीएस ने खुद को शीर्ष सॉफ्टवेयर उत्पाद निर्माता कंपनी के तौर पर स्थापित किया।
आज टीसीएस में करीब साढ़े चार लाख से अधिक कर्मी हैं। उसके लगभग एक लाख कर्मी तो दुनिया के विभिन्न देशों में हैं और यह जरूरी नहीं है कि वे सभी भारतीय ही हों। मतलब कि वे किसी भी अन्य देशों के भी हो सकते हैं। इसमें कुछ भी बुरी बात नहीं है। आज के दिन टीसीएस के 44 देशों में कर्मचारी हैं।
एक बात यह भी लगती है कि फकीरचंद कोहली इसीलिए टीसीएस को बुलंदी पर ले जाने में सफल रहे, क्योंकि उन्हें जेआरडी टाटा जैसा समझदार और ज्ञानी प्रमोटर मिला। अगर प्रमोटर के पास दूरदृष्टि नहीं होगी और वह अपने सीईओ पर भरोसा नहीं करेगा तो बड़ी सफलता की उम्मीद व्यर्थ ही है। अब रैनबैक्सी फार्मा को ही ले लीजिए।
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इसका कुछ साल पहले तक देश के दवा निर्माताओं के सेक्टर में दबदबा था। यह देश की चोटी की फार्मा कंपनियों में से एक थी। लेकिन, आज यह देखते-देखते ही बिखर गई। कारण इसके शिखर पदों पर बौने और संदिग्ध छवि के लोग आ गए। उनके होते हुए आप सीईओ से कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि वह कोई बेहतर कार्य करके दिखाएगा। जेआरडी टाटा ने कोहली को टीसीएस की जिम्मेदारी देते हुए अपना विजन तो जरूर बता दिया होगा। फिर काम होता है कोहली जैसे सीईओ का कि वह उस विजन को अमली जामा पहनाए और उससे भी आगे जाए और सोचे।
जेआरडी के विजन का एक उदहारण देना चाहता हूँ। स्वामी विवेकानंद जी 1893 में जब मद्रास से पानी के जहाज से शिकागो के विश्व धर्म सम्मेलन में भाग लेने के लिये निकले तब उनकी अंतरात्मा इस वजह से दु:खी थी कि पूरे दक्षिण भारत में साइंस की उच्च शिक्षा का कोई प्रतिष्ठित केंद्र नहीं है। उन्होंने दु:खी मन से जेआरडी टाटा को पत्र लिखकर अपनी व्यथा व्यक्त की। यह पत्र “माई डियर जेआरडी” के नाम से प्रसिद्ध है। स्वामी जी ने लिखा कि तुम पैसे तो पूर्वी भारत के जमशेदपुर से कमा रहे हो और मेरा आशीर्वाद है कि और खूब पैसे कमाओ पर दक्षिण भारत में साइंस की उच्च शिक्षा की व्यवस्था करो। जेआरडी ने तुरंत बेंगलूर में “इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ साइंस” स्थापित किया।
कोहली जी की बात हो रही है तो यहां एचसीएल टेक्नोलॉजीज जैसी महान सॉफ्टवेयर कंपनी खड़ा करने वाले शिव नाडार की चर्चा को लाना भी समीचिन रहेगा। उनके बारे में कहते हैं कि वे अपने सीईओज और मैनेजरों से यह अपेक्षा करते हैं कि वे कुछ हटकर करें। नाडार सदा अपने अफसरों के साथ खड़े रहते हैं। वे असफलता में उनका साथ नहीं छोड़ते। इसलिए उनके मैनेजर बेहतरीन नतीजे लाकर देते हैं। शिव नाडार जी ने एचसीएल टेक्नोलॉजीज की स्थापना की। अब करीब आधा दर्जन देशों में, 100 से ज्यादा कार्यालय, करीब एक लाख पेशेवर इंजीनियर उनके साथ जुड़े हैं। नोएडा में तो शिव नाडार के दफ्तरों और विद्यालयों की भरमार है।
नाडार जी में जेआरडी टाटा का प्रतिबिम्ब देखा जा सकता है। दोनों की शिक्षा और राष्ट्र निर्माण के प्रति सोच एक-सी है। फकीरचंद कोहली जी के बहाने पंजाब के खुखरायण खत्री समाज की भी बात करने में कोई बुराई नहीं है। खुशवंत सिंह कहते थे कि “खुखरायण पंजाबी खत्रियों का एक जाति समूह है, इसमें कोहली भी शामिल हैं। इसमें साहनी, घई, चंडोक, चड्ढा, आनंद, सब्बरवाल, सूरी, भसीन व ऐसी अन्य जातियां व उपजातियां भी हैं जो एक-दूसरे से वैवाहिक रिश्ते कायम करने को प्राथमिकता देती हैं। “खुखरायण समाज में हिन्दू और सिख दोनों हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि खुखरायण समाज के लोग बिजनेस करना ही पसंद करते हैं। इनमें नेतृत्व के गुण भरपूर होते हैं। फकीरचंद कोहली जी ने यह साबित कर दिखाया।
(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं।)
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