देशद्रोही ताकतों का ‘मुखौटा’ बनने को क्योें मजबूर हैं आंदोलनकारी किसान
नया कृषि कानून खारिज करने की जिद पर अड़े आंदोलनकारी किसान अब अपने बुने जाल में फंसते जा रहे हैं। यही वजह है कि मुट्ठी भर मोदी विरोधी विपक्ष को छोड़कर जो लोग कल तक किसानों के साथ खड़े नजर आ रहे थे, वह अब इस बात से आश्चर्यचकित हैं कि जब मोदी सरकार ने किसानों की तमाम मांगे मांगने के साथ कई मुद्दों पर स्पष्टीकरण दे दिया है तो फिर कृषि कानून वापस लिए जाने की बात क्यों उठाई जा रही है।
आंदोलनकारी किसानों को यह नहीं भूलना चाहिए कि वह न तो देश के 80-90 करोड़ किसानो का प्रतिनिधित्व करते हैं, न ही वह सड़क, चक्का या रेल मार्ग जाम करके आम जनता के लिए मुसीबत खड़ी करने का हक रखते है। आंदोलनकारी किसान यदि किसानों की समस्याओं और उनके हक की ही आवाज उठा रहे होते तो राजस्थान पंचायत चुनाव जिसे किसानों और गांव का चुनाव माना जाता है के नतीजे कुछ और होते। आंदोलनकारी किसानों को इस बात का ध्यान रखना होगा कि वह देश विरोधी ताकतों के हाथ का खिलौना न बनें। किसानों के आंदोलन में खालिस्तान समर्थको का क्या काम है ? किसानों के धरना स्थल पर दंगाइयों के पोस्टर लगाया जाने को किन्हीं भी तर्को के सहारे सही नहीं ठहराया जा सकता है।
टिकरी बॉर्डर पर धरने पर बैठे किसानों के मंच और महिला किसानों के हाथों में दिखे बैनर-पोस्टरों में दिल्ली दंगों के मास्टरमाइंड शरजील इमाम, उमर खालिद समेत अन्य आरोपियों और भीमा कोरेगांव के आरोपियों के लहराते पोस्टर और इनको छोड़ने की मांग से किसानों के आंदोलन का क्या लेना-देना है। इसी वजह से किसानों के आंदोलन पर संशय जताया जा रहा है। आरोप लग रहे हैं कि किसानों के आंदोलन को वामपंथियों और माक्र्सवादियों ने हाईजैक कर लिया है।
जिस कार्यक्रम में यह बैनर-पोस्टर दिखाई दिए उसका आयोजन किसानों के संगठन भारतीय किसान यूनियन एकता (उगराहां) ने किया था। कार्यक्रम में उगराहां ने जेल में बंद बुद्धिजीवियों और लोकतांत्रिक अधिकार कार्यकर्ताओं को तुरंत रिहा करने की भी मांग की । इतना ही नहीं गिरफ्तार कार्यकर्ताओं की तस्वीरों के साथ एक बड़ी रैली को संबोधित करते हुए संगठन के प्रदेश अध्यक्ष जोगिंदर सिंह उगराहां ने कहा कि आज इंटरनेशनल ह्यूमन राइट्स डे के मौके पर हमें जीवन का अधिकार, जीवन की बेहतरी के लिए लड़ने का अधिकार और मानवता की गरिमा के लिए संघर्ष करने का अधिकार है।
बहरहाल,मुददे पर आया जाए तो नये कृषि कानून को लेकर किसान आंदोलन के बीच राजस्थान पंचायत चुनाव में जहां कांगे्रस की सरकार है, वहां से भारतीय जनता पार्टी की शानदार जीत और कांगे्रस को करारी हार यह बताने के लिए काफी है कि सभी किसान नये कषि कानून से परेशान नहीं हैं। राजस्थान के किसानों ने पंचायत चुनाव में बीजेपी के पक्ष में जबर्दतस्त मतदान करके आंदोलनकारी किसानों को आइना दिखाने का काम किया है। यह बता जितनी जल्दी आंदोलनकारी समझ जाएंगें उतना अच्छा होगा। आंदोलनकारी किसानों के बीच नये कानून को लेकर अभी भी कोई दुविधा है तो वह इसे सरकार से बाचतीत करके ही दूर कर सकते हैं।
14 दिसंबर को आंदोलनकारी किसानों ने टोल प्लाजा खोलने सहित मॉल, रिलायंस के पंप, भाजपा नेताओं के दफ्तर और घरों के आगे धरना देने की घोषणा करके बात बनाने की बजाए बिगाड़ने का काम किया है। किसानोें को इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि वह विपक्ष की भाषा बोलने या उनका मोहरा बनने की बजाए अपने हितों का ध्यान रखें। किसानों को इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि उनके आंदोलन के चलते आम जनता को कोई परेशानी या उसके मौलिक अधिकारों का हनन न हो।
बात किसानोें के हित की कि जाए तो इससे पूर्व नये कृषि कानून के खिलाफ किसानों के ‘भारत बंद’ में मोदी विरोधी नेताओं ने जर्बदस्ती कूद कर अपनी सियासत भले चमका ली हो, लेकिन इससे किसानों का भला कुछ नही हुआ, उलटा किसानों का उनके नेताओं की हठधर्मी के चलते नुकसान होता साफ दिख रहा है, जो मोदी सरकार ‘भारत बंद’ से पूर्व तक किसानों की मांगों को लेकर गंभीर थी, अब उसी सरकार के कई नुमांइदे यह कहने से चूक नहीं रहें हैं,’यह किसानों का नहीं, विपक्ष का राजनैतिक बंद था। किसान तो विपक्ष की सियासत का मोहरा बन गए हैं।’ यह हकीकत भी है।
किसान लगातार कोशिश कर रहे थे कि उनके आंदोलन पर ‘सियासी रंग’ न चढ़ पाए, इसी लिए किसान नेता लगातार उनके आंदोलन को समर्थन कर रहे तमाम राजनैतिक दलों को आइना दिखा रहे थे कि किसानों के आंदोलन या फिर ‘भारत बंद के दौरान किसी भी राजनैतिक दल का कोई भी नेता या कार्यकर्ता पार्टी के झंडे-बैनर लेकर आंदोलन में शिरकत नहीं करेगा,लेकिन ‘चतुर भेड़िए’ की तरह कांगे्रसी, सपाई, बसपाई, वामपंथी, आकाली दल आदि पार्टी के नेतागण न सिर्फ किसान आंदोलन में कूदे बल्कि किसानों के आंदोलन को पूरी तरह से ‘हाईजैक’ भी कर लिया। जगह-जगह तमाम दलों के नेता और कार्यकर्ता अपने झंडे-बैनरों के साथ अपनी सियासत चमकाने के लिए सड़क से लेकर रेल पटरियों तक पर नजर आ रहे थेे।
इसमें से तमाम नेता और दल ऐसे थे जिनकी सियासी जमीन पूरी तरह से खिसक चुकी है और यह लोग समय-समय पर दूसरों के मंच और आंदोलन को हथियाने की साजिश रचते ही रहते हैं। अभी यह किसानों के साथ हुआ है। इससे पूर्व नागरिका संशोधन कानून हो या फिर एक बार में तीन तलाक,कश्मीर से धारा 370 हटाए जाने आदि का मसला सब जगह मोदी विरोधी नेता दूसरे का मंच हड़पने में लगे दिखाई दिए थे।
आश्चर्य होता है कि तमाम राजनैतिक दल और उनके नेता सकरात्मक राजनीति करने के बजाए। हर उस मुददे को हवा देने में लग जाते हैं जिससे मोदी सरकार असहज हो सकती है। वर्ना कोई कारण नहीं था जिस कृषि कानून में बदलाव के लिए कांगे्रस के गठबंधन वाली मनमोहन सरकार से लेकर शरद पवार, मुलायम सिंह यादव, अकाली दल, राष्ट्रीय जनता दल, आम आदमी पार्टी हामी भर रहे थे, वह आज मौकापरस्ती की सियासत में उलझ कर इस कानून की मुखालफत करने में लग गए हैं। किसानों को भड़का रहे हैं कि वह मोदी सरकार पर नया कृषि कानून वापस लेने के लए दबाव बनाए,जिसके लिए मोदी सरकार कभी तैयार नहीं होगी और विपक्ष इसी का फायदा उठाने की साजिश रच रहा है।
बहरहाल, मौजूदा हालात में किसानों के लिए यह जरूरी हो गया है कि वह सियासत में फंसने की बजाए अपने दूरगामी हितों की रक्षा को अधिक प्राथमिकता दें। हठ से काम नहीं चलने वाला है। आंदोलनकारी किसान नेताओं को यह नहीं भूलना चाहिए कि किसी भी क्षेत्र में किए जाने वाले सुधार प्रारंभ में कुछ कठिनाइयां जरूर पैदा करते हैं, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि किसी भी क्षेत्र में सुधार प्रकिृया को ही ठप कर दिया जाए।
यह भी पढ़े: स्वामित्व योजना का लाभ हर गरीब को मिलेः योगी आदित्यनाथ – Dastak Times
आखिर यह कौन बात हुई की किसान कृषि कानून की खामियों को दूर करने की बजाए इसको पूरी तरह से वापस लिए जाने की हठधर्मी करने लगें। किसान और उनके नेता जितनी जल्दी यह बात समझ जाएंगें कि मोदी विरोधी नेता और दल उनको समर्थन के नाम पर उनकी (किसानों की) पीठ में छुरा भोंकने का काम कर रहे हैं, उतना उनके लिए अच्छा होगा।
आश्चर्य होता है कि किसानों को अपनी मांगे सरकार के सामने रखने के लिए योगेन्द्र यादव जैसे तथाकथित किसान नेताओं का सहारा लेना पड़ता है जिनका वजूद ही मोदी विरोध पर ही टिका है। किसानों को इस बात पर भी ध्यान देना चाहिए कि नये कषि कानून को लेकर पंजाब और हरियाणा के ही किसान क्यांे ज्यादा उद्वेलित हैं। पिछले कुछ वर्षो का रिकार्ड उठाकर देखा जाए तो पंजाब में किसानों को लेकर जिस तरह की सियासत होती है,उसी के चलते कभी खेतीबाड़ी से समृद्धि के मामले में देश में अग्रणी रहने वाला पंजाब का किसान आज की तारीख में अन्य राज्यों के किसानों के मुकाबले पिछड़ता जा रहा है। कई राज्यों के किसानों की औसत आय पंजाब के किसानों से कहीं अच्छी हो गई है।
वैसे हकीकत यह भी है कि पिछले कु़छ दिनों में मोदी सरकार ने जिस तरह से नये कृषि कानून को लेकर किसानों में जागरूकता फैलाने की मुहिम शुरू की थी, उसके चलते बड़ी संख्या में किसानों की आंखों के सामने से झूठ का पर्दा हटने लगा है। किसानों की आंखें धीरे-धीरे खुलने लगी है।उधर, आंदोलनकारी किसानों से जबरन कराए गए ‘भारत बंद’ की विफलता के बाद किसान हितों की आड़ में अपनी राजनीतिक रोटियां सेंक रहे दलों को भी इस बात का आभास हो गया है कि जनता ही नहीं पूरी तरह से किसान भी उनके बहकावे में नहीं आए।
इसी लिए तो भारत बंद के दौरान हरियाणा के कैथल जिले में किसानों के बीच पहुंचे कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव रणदीप सुरजेवाला को किसानों के जबर्दस्त विरोध के चलते वहां से बैरंग लौटना पड़ गया। इससे पूर्व सुरजेवाला स्वयं ही वहां पहुंचकर धरना दे रहे किसानों के बीच बैठ गए थे, लेकिन किसानों को यह नागवार गुजरा। विशेष तौर पर युवाओं ने रणदीप सिंह सुरजेवाला से भी सवाल-जवाब शुरू कर दिए। थोड़ी ही देर में हंगामा होने लगा और किसानों ने रणदीप सुरजेवाला के खिलाफ नारेबाजी शुरू कर दी। कुछ देर तो सुरजेवाला किसानों के बीच जमीन पर ही बैठे रहे, लेकिन जब वे उठे तो हालात बेकाबू हो गए और उन्हें बेहद मुश्किल से वहां से बचाकर निकाला गया।
आखिर कांगे्रस का यह कौन सा तर्क है कि मोदी सरकार नए कृषि कानूनों को रद कर नए सिरे से कानून बनाए। क्या इसका यही मतलब नहीं हुआ कि एक तरफ तो कांग्रेस कृषि सुधारों की आवश्यकता महसूस कर रही है दूसरी ओर वह सियासी फायदा उठाने का मौका भी नहीं छोड़ना चाहती है। कांगे्रस यदि कृृषि कानून में बदलाव नहीं करना चाहती है तो उसने बीते लोकसभा चुनाव के घोषणा पत्र में कृृषि कानून में सुधार की बात क्यों कही थी।
कांग्रेस को मोदी सरकार के सूत्रों से आ रहे उन दावों की भी हकीकत बतानी चाहिए जिसमें कहा जा रहा है कि मोदी सरकार द्वारा लाए गए कृषि कानून में कांग्रेस कार्यकाल के दौरान की एक समिति के सुधार उपाय शामिल किए हैं। इस समिति की अध्यक्षता हरियाणा के तत्कालिक मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने की थी जो आज विपक्ष में रहते कृृषि कानून की मुखालफत करने में लगे हैं। बेहतर हो कि किसान संगठन कांग्रेस, राकांपा और तृणमूल कांग्रेस सरीखे मौकापरस्त दलों के असली चेहरे की पहचान करें और यह समझें कि इन दलोें का उद्देश्य उनकी आंखों में धूल झोंकना ही है।
यदि नए कृषि कानूनों में कहीं कोई खामी है तो उस पर बात करने में हर्ज नहीं। खुद सरकार भी इसके लिए तैयार है, लेकिन इसका कोई तुक नहीं कि कृषि कानूनों को रद करने की बात की जाए। इस तरह की बातें कुल मिलाकर किसानों का अहित ही करेंगी, क्योंकि खुद आंदोलनकारी किसान भी यह अच्छी तरह जान रहे हैं कि पुरानी व्यवस्था को अधिक दिनों तक नहीं ढोया जा सकता है। उचित यह होगा कि किसान संगठन कांग्रेस सरीखे तमाम दलों से पल्ला झाड़कर अपने हितों की चिंता करें और इस क्रम में यह देखें कि किसी भी क्षेत्र में सुधार एक सतत प्रक्रिया का हिस्सा होते हैं और समय के साथ व्यवस्था सही आकार लेती है।
विभिन्न क्षेत्रों में किए गए आर्थिक सुधार यही बयान भी कर रहे हैं। किसानोें को अपने हितों की चिंता करते समय इस पर भी गौर करना होगा कि उन्हें अपने दूरगामी हितों की रक्षा को अधिक प्राथमिकता देनी होगी। किसी भी क्षेत्र में किए जाने वाले सुधार प्रारंभ में कुछ कठिनाइयों को जन्म देते हैं, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि सुधारों को अपनाने से बचा जाए और अप्रासंगिक नियम-कानूनों और तौर-तरीकों को बनाए रखने की जिद पकड़ ली जाए।
(लेखक राजनीतिक चिंतक और विचारक हैं)
देश दुनिया की ताजातरीन सच्ची और अच्छी खबरों को जानने के लिए बनें रहें www.dastaktimes.org के साथ। हमें फेसबुक पर फॉलों करने के लिए https://www.facebook.com/dastak.times.9 और ट्विटर पर फॉलो करने के लिए @TimesDastak पर क्लिक करें। साथ ही देश और प्रदेश की बड़ी और चुनिंदा खबरों के ‘न्यूज़-वीडियो’ आप देख सकते हैं हमारे youtube चैनल https://www.youtube.com/c/DastakTimes/videos पर। तो फिर बने रहिये www.dastaktimes.org के साथ और खुद को रखिये लेटेस्ट खबरों से अपडेटेड।