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विदेशियों को भी भाने लगा मां वैष्णो देवी तीर्थस्थल

विदेशियों को भी भाने लगा मां वैष्णो देवी तीर्थस्थल

योगेश कुमार सोनी : आस्था व स्वच्छता का प्रतीक बन रहा मां वैष्णो देवी तीर्थस्थल पर देश के अलावा विदेशी लोग भी जाने लगे हैं। हमारे लिए तो यह आस्था का स्थल है ही लेकिन वहां विदेशी लोग भी रुचि लेने लगे हैं।

बाहरी लोग इसे पर्यटक स्थल भी समझकर आते हैं। बीते रविवार वहां एक विदेशी समूह पहुंचा जिन्होंने दर्शन करने के बाद वहां की साफ-सफाई व व्यवस्था की प्रशंसा की। विदेशी नागरिकों के इस समूह का कहना है कि भारत के कई दूसरे तीर्थस्थलों पर भी गए हैं लेकिन जितनी साफ-सफाई व स्वच्छता यहां दिखाई देती है, उतनी कहीं और देखने को नहीं मिली। वैसे तो पूरे वर्ष वहां श्रद्धालुओं का जाना लगा रहता है लेकिन इन दिनों ज्यादा लोग जाते हैं चूंकि इस समय वहां भारी बर्फ पड़ती है।

ज्ञात हो कि बीते वर्ष राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने सफाई को लेकर श्री माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड को देश के सर्वश्रेष्ठ स्वच्छ प्रतिष्ठित स्थान के लिए पुरस्कार दिया था। पहाड़ों के बीच समाई मां वैष्णो देवी की यात्रा पहले बहुत कठिन मानी जाती थी लेकिन अब कई सुविधाओं के साथ स्वच्छता की ओर खास ध्यान दिया जाने लगा, जिससे वह देश का सबसे स्वच्छ तीर्थस्थल बन गया। इसका सारा श्रेय श्राइन बोर्ड को जाता है। पूरे यात्रा मार्ग और बोर्ड के भवनों में स्वच्छता और वर्षा जल पुन:प्रयोग के अलावा कई अन्य तरीकों से वैष्णो देवी तीर्थ ने स्वर्ण मंदिर के अलावा कई दूसरे तीर्थस्थलों को पछाड़ कर प्रथम स्थान प्राप्त किया था।

मां वैष्णो के दरबार में प्रतिवर्ष देश-विदेश से करीब सवा करोड़ श्रद्धालु दर्शन करने जाते हैं। श्राइन बोर्ड के करीब 1250 सफाई कर्मचारी दिन-रात लगे रहते हैं। यात्रा मार्ग पर जगह-जगह कूड़ेदान की सुविधा को बढ़ावा दिया जा रहा है। साथ ही हर छोटी बड़ी घटनाएं जिससे गंदगी या कूड़ा हो उसे गंभीरता से लेकर प्रतिबंधित किया जा रहा है।

आंकड़ों के अनुसार प्रतिदिन करीब पैंतीस हजार श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचते हैं। इस तीर्थस्थल को स्वच्छ बनाने में कई महत्वपूर्ण प्रक्रियाओं को अपनाया गया है। जैसा कि यहां भवन तक पहुंचने में पैदल के अलावा घुड़सवारी के द्वारा भी जाया जाता है जिससे जगह-जगह घोड़े की लीद से गंदगी व बदबू से लोगों को भारी परेशानी होती थी लेकिन पिछले कुछ समय से रास्ते को साफ करने के लिए 24 घंटे सफाईकर्मी खड़े रहते हैं। साथ ही लीद को इकठ्ठा कर उसका खाद बनाकर खेतीबाड़ी व पौधों के लिए प्रयोग किया जाने लगा।

जलरहित मूत्रालय बनाकर कई हजार लीटर पानी को व्यर्थ होने से बचाया जा रहा है। करीब 45 क्रश वेंडिंग मशीन लगाते हुए प्लास्टिक पूरी तरह के प्रतिबंधित की हुई है जिस वजह से यह सब हो पाया है। पूरे देश में आप चाहे किसी भी तीर्थस्थल पर जाएं, वहां गंदगी तो रहती है साथ में बुनियादी सुविधाएं भी नहीं मिलती। शौचालयों की बात करें तो कहीं है तो कई जगह नहीं है। महिला शौचालय की बात करें तो कहीं नहीं दिखता, जिसके चलते भारी परेशानी होती थी।

श्राइन बोर्ड से अन्य सफाई बोर्ड व संस्थाओं को प्रेरित होकर अपने आपको सुधारना चाहिए जिससे तीर्थस्थल पर आनेवालों को परेशानी न हो। इसके अलावा वैष्णो देवी स्थल की तरह भक्तों की लाइन को व्यवस्थित तरीके से संचालित किया जाना चाहिए व सभी तरह के सिस्टम अपटेड करने चाहिए। अक्सर देखा जाता है कि बड़े तीर्थस्थलों पर घटों लाइन लगी होती है यदि किसी को बीच में शौचालय जाना पड़ जाए तो समझो उसकी आफत आ जाती है क्योंकि वह लाइन से हट गया तो दोबारा लगने का कोई विकल्प नहीं होता था।

यदि किसी तरीके से चला भी जाए तो उसको परिसर में आसपास शौचालय नहीं मिलता। खासतौर पर महिलाओं के लिए बहुत बड़ी मुसीबत बन जाती है। कई जगह तो इतनी गंदगी होती है कि वहां खड़ा होना मुश्किल हो जाता है। जिस तरह वैष्णो देवी तीर्थस्थल पर व्यवस्था की गई है, यदि ऐसा ही अन्य स्थलों पर हो जाए तो बेहतर होगा। अभी भी तमाम ऐसे तीर्थस्थल हैं जहां भीड़ अनियंत्रित हो जाती है और कई श्रद्धालुओं को अपनी जान तक गंवानी पड़ती है। ऐसे हादसों की लंबी फेहरिस्त है। इसलिए राज्य सरकार व केंद्र सरकार के साथ मंदिर प्रबंधन को इसपर मंथन करने की जरूरत है।

बहराहल, श्री माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड को देश के ‘सर्वश्रेष्ठ स्वच्छ प्रतिष्ठित स्थान’ के लिए पुरस्कार दिया गया था जिसको श्राइन बोर्ड ने अबतक बरकरार रखा है। पहले यह खबर हमारे यहां तक सीमित थी लेकिन दूसरे देशों में भी इसकी चर्चा पहुंच रही है। देश-विदेश से तारीफ बटोर इस स्थल की वजह से देश के सम्मान में चार चांद लग गए। अब कोशिश यह होनी चाहिए कि ऐसी खबर हर तीर्थस्थल से आए जिससे हर श्रद्धालुओं की यात्रा सरल व सुगम बने।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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