क्यों किया जाता है हिन्दू देवी-देवताओं का अपमान
आर.के. सिन्हा : कुछ दिन पहले तक किसी ने मुनव्वर फारुकी का नाम तक नहीं सुना था। वह एक अदना-सा स्टैंडअप कॉमेडियन है। वह अब चित्रकार एम.एफ. हुसैन के नक्शे कदम पर चल पड़ा है। जैसे एमएफ हुसैन ने हिन्दू-देवताओं के नग्न चित्र बनाकर हिन्दुओं की धार्मिक भावनाओं को आहत किया था। फारुकी भी अब हिन्दू देवी-देवताओं पर तंज कस रहा है। उसे इंदौर में गिरफ्तार कर लिया गया है। अब कुछ अपने को प्रगतिशील सेक्युलरवादी इसे अन्याय बता रहे हैं और सोशल मीडिया पर अनाप-शनाप लिख भी रहे हैं। कुछ यह भी दावा कर रहे हैं कि फारुकी ने कुछ गलत नहीं किया। लेकिन उसे पीटा क्यों गया, ये लोग यह नहीं बता रहे। उसके वह वीडियो नहीं दिखा रहे जिस कारण उसे पीटा गया। किसी को पीटना गलत है। कुछ तो रहा ही होगा। तभी तो उसे न्यायिक हिरासत में भेजा गया है।
मतलब यह कि उसे पहले कोर्ट में पेश किया गया, जहां से उसे न्यायिक हिरासत में रखने के लिए कहा गया है। फारुकी पर धारा 295ए (धार्मिक भावनाएं आहत करना) के तहत मामला दर्ज किया गया। अब यदि उसे तुरंत छोड़ दिया जाता तो सेक्यूलरवादियों के निगाह में हमारी न्यायिक व्यवस्था, हमारा संविधान अच्छा होता। अब जब उसे बेल नहीं मिली तो वे यह सिद्ध करने में लगे हैं कि सब बिके हुए हैं। यह सब गलत है। जमानत मिल जाती तो यही लोग लिखते कि हमें हमारे संविधान पर विश्वास है। लेकिन उनके मन का नहीं हुआ तो लोकतंत्र की हत्या हो गयी। हद है इस दोहरी मानसिकता की। बड़ा सवाल यह है कि फारुकी या हुसैन ने कभी अपने मजहब के आराध्यों को अपमानित क्यों नहीं किया? जरा वह भी तो करके दिखायें? उन्हें हिन्दू धर्म के देवी-देवताओं का अपमान करने का अधिकार किसने और कब दिया? फारुकी से जांच एजेंसियों को पूछना चाहिए कि वे किसके इशारे पर अपना पागलपन दिखा रहे थे? उससे यह भी पूछा जाए कि क्या वे अपने माता-पिता और अपने पैगम्बर का भी मजाक उड़ाते हैं?
चित्रकार हुसैन अपनी चित्रकारी के लिए दुनियाभर में मशहूर थे। पर उस कूची के जादूगर ने देवी-देवताओं की नग्न तस्वीरें बनाकर अपनी छवि को धूल में मिला लिया। हुसैन ने यह पतित काम करते हुए नहीं सोचा था कि वे भारत के ही एक अति सम्मानित इंसान है। उन्हें एक अच्छे कलाकार की हैसियत से साल 1973 में पद्म भूषण और साल 1991 में पद्म विभूषण से भी सम्मानित किया गया था। पर उनकी एक हरकत से उनकी तमाम उपलब्धियां खाक में मिल गईं। लेकिन, जरा देखिए कि हुसैन साहब के हक में भी उस समय बोलने वाले खड़े हो गए थे। उनपर साल 2006 में आरोप लगे थे कि उन्होंने हिंदू धर्म को मानने वालों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ की। जब उनपर हिन्दू देवियों के नग्न चित्र बनाने का केस दर्ज हुआ तो वे भारत से ही भाग गए। यही तो ज़ाकिर नाईक ने भी किया था। नाईक घनघोर साम्प्रदायिक इंसान है। हालांकि वह दावा यह करता है कि वह तो इस्लाम धर्म का महा ज्ञानी है। क्या इस्लाम धर्म यही सिखाता है कि मंदिरों को तोड़ो? हिन्दू देवियों के नग्न चित्र बनाओ। देवताओं का उपहास उड़ाओ। कदाचित नहीं सिखाया जाता है।
वयोवद्ध इस्लामिक चिंतक मौलाना वहीदुद्दीन खान तो वह कभी नहीं कहते जो नाईक कहता है। मौलाना वहीदुद्दीन खान का हमारे बीच होना सुकून देता है। गांधीवादी मौलाना लगभग 70 साल पहले आजमगढ़ से दिल्ली आए थे। अमेरिका की जॉर्जटाउन यूनिर्वसिटी ने उन्हें दुनिया के 500 सबसे असरदार इस्लाम के आध्यात्मिक नेताओं की श्रेणी में रखा है। मौलाना वहीदुद्दीन खान पीस एक्टिविस्ट हैं। वे लगातार इस्लाम की महत्वपूर्ण शिक्षाओं पर लिखते-बोलते हैं। जबकि नाईक शातिर किस्म का शख्स है। उसने हाल ही में ही पाकिस्तान में मंदिरों को तोड़ने का समर्थन किया था। दरअसल उसका एक ताजा वीडियो भी वायरल हुआ है। उस वीडियो में वह कह रहा है कि पाकिस्तान में मंदिर को तोड़ा जाना सही था।
आपको पता ही होगा कि पाकिस्तान के पख्तूनख्वा प्रांत में कट्टरपंथी मुसलमानों ने एक हिंदू मंदिर में भारी तोड़फोड़ के बाद आग लगा दी थी। मंदिर की दशकों पुरानी इमारत के जीर्णोद्धार के लिए हिंदू समुदाय ने स्थानीय अधिकारियों से बाकायदा पूर्व अनुमति ली थी। सच में मन बहुत क्षुब्ध हो जाता है कि भारत जैसे लोकतांत्रिक देश के कुछ नागरिक करोड़ों हिन्दुओं के आराध्य देवी-देवताओं का बेशर्मी से अनादर कर रहे हैं। किसी भी इंसान को किसी धर्म विशेष के आराध्यों का मजाक उड़ाने या अनादर करने का अधिकार नहीं दिया जा सकता। अगर कोई हिन्दू किसी अन्य धर्म के आराध्य का अपमान करता है, तो वह भी उतना ही गलत है।
कथित उपदेशक ज़ाकिर नाईक मलेशिया के शहर पुत्राजया में रहता है। वह बहुत जहरीला इंसान है। वह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और हिन्दू समाज की बिला वजह दिन-रात मीनमेख निकालता रहता है। नाईक ने मलेशिया के हिंदुओं को लेकर भी तमाम घटिया बातें कही हैं। दरअसल अफसोस तब होता है जब कुछ कथित प्रगतिशील तत्व और सेक्युलरवादी ही एमएफ हुसैन, नाईक और मुनव्वर फारुकी जैसे खुराफाती लोगों के हक में बचाव और बकवास चालू कर देते हैं। ये कहने लगते हैं कि अभिव्यक्ति की आजादी का सम्मान होना चाहिए। क्या होती है अभिव्यक्ति की आजादी ? क्या है इसकी सीमा?
मुनव्वर फारुकी की हरकतों को देखकर लगता है कि उसने फटाफट फेमस होने के लिए हिन्दू देवी-देवताओं पर ओछी टिप्पणियां की। मतलब कि वह समझता है कि बदनाम होंगे तो क्या नाम न होगा।
नाईक के बारे में लगता है कि वह हिन्दुओं और हिन्दू धर्म पर इसलिए बयानबाजी करता रहता है ताकि अगर उसे कभी मलेशिया से निकाला गया तो वह पाकिस्तान में जाकर बस जाएगा। पाकिस्तान को वे भारतीय ही पसंद आते हैं जो भारत को नीचा देखाने की फिराक में लगे रहते हैं। पाकिस्तान उन्हें अपना हितैषी भी मानता है। देखिए पाकिस्तान ने दाऊद इब्राहिम जैसे खूंखार आतंकी को अपने यहां शरण दे ही रखी है। दाऊद के इशारों पर ही 1993 में मुंबई में भयानक धमाके हुए थे। उसने मुंबई को एक तरह से सदा के लिए बदल ही दिया था। पाकिस्तान के मीडिया और दानिशमंदों की कभी अरुधति राय को लेकर राय जानने की कोशिश करें। आप हैरान हो जाएँगे कि उन्हें पाकिस्तान संसार की श्रेष्ठतम लेखिका और मानवाधिकारों का सबसे बड़ा नाम मानता है। वजह साफ है। वह भारत को नीचा दिखाने का कोई भी अवसर नहीं छोड़ती।
दरअसल भारतीय समाज का चरित्र मूलत: और अंतत: सेक्युलर है। पर अफसोस कि हमारे यहां कुछ शक्तियां सेक्युलर शब्द का इस्तेमाल देश और हिन्दू धर्म विरोधी कृत्यों के लिये करने से बाज नहीं आती।
(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं।)