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पीएम ओली पर चला कोर्ट का डंडा, 13 दिनों में करें बहुमत साबित

पीएम ओली पर चला कोर्ट का डंडा, 13 दिनों में करें बहुमत साबित

काठमांडू : नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को वहां की सर्वोच्च अदालत ने बड़ा झटका दिया है। अदालत ने अपने फैसले में प्रधानमंत्री ओली के संसद भंग करने के फैसले को असंवैधानिक ठहराया। साथ ही अगले 13 दिनों के भीतर प्रतिनिधि सभा का सत्र बुलाने के निर्देश दिए हैं।

संवैधानिक पीठ ने कहा है

मुख्य न्यायाधीश चोलेंद्र शमशेर राण के नेतृत्व में पांच सदस्यों वाली संवैधानिक पीठ ने कहा है कि प्रधानमंत्री ओली का फैसला असंवैधानिक है। सरकार अगले 13 दिनों के भीतर सदन के सत्र को बुलाए। सर्वोच्च अदालत में ओली के फैसले के खिलाफ 13 रिट याचिकाएं दायर की गई थीं। उन याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए अदालत ने फैसला सुनाया है।

इसके अतिरिक्त सर्वोच्च अदालत ने संसद भंग होने के बाद प्रधानमंत्री ओली द्वारा विभिन्न संवैधानिक निकायों की सभी नियुक्तियों को रद्द कर दिया है। न्यायालय ने उस अध्यादेश को ही रद्द कर दिया है, जिसे ओली ने इन नियुक्तियों के लिए पारित किया था। फिलहाल ओली कार्यवाहक प्रधानमंत्री की भूमिका में पद पर बने हैं।

गौरतलब है कि 20 दिसंबर, 2020 को राष्ट्रपति बिद्या देव भंडारी ने प्रधानमंत्री ओली की सिफारिश पर संसद को भंग किया था। तब इसके पक्ष में तर्क देते हुए ओली ने कहा था कि उन्हें संसद भंग करने के लिए मजबूर किया गया था।

प्रधानमंत्री ओली को बड़ा झटका लगा

इस फैसले पर नेपाल के प्रत्येक नागरिक की नजर थी। सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्णय से प्रधानमंत्री ओली को बड़ा झटका लगा है। उनकी कुर्सी खतरे में है। यहां तक कि उन्हें प्रधानमंत्री पद से त्याग-पत्र देना पड़ सकता है। अब वे प्रधानमंत्री पद पर तभी बने रह सकते हैं, जब संसद में अपना बहुमत साबित कर देंगे।

बताया जा रहा है कि पार्टी के आंतरिक कलह के कारण उनके पास बहुमत नहीं है। स्थानीय पत्रकार के हवाले से मीडिया में खबर आई है कि अब ओली के दो विकल्प हैं। एक यह कि वे अविश्वास प्रस्ताव का सामना करें। दूसरा कि वे पद छोड़ें। नेपाली मीडिया में सर्वोच्च न्यायालय को फैसले को साहसिक माना जा रहा है।

नेपाल के एक पत्रकार एवं शोधार्थी ने बातचीत क्रम में कहा कि सत्तारूढ़ नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी स्वयं कैबिनेट के इस फैसले का विरोध कर रही थी। पार्टी प्रवक्ता नारायणजी श्रेष्ठ के हवाले से उन्होंने स्मरण बताया कि यह निर्णय जल्दबाजी में किया गया है। यह लोकतांत्रिक मानदंडों के खिलाफ है। इससे राष्ट्र पीछे जाएगा।

नेपाल के घटनाक्रम को नजदीक से देखने वाले मानते हैं कि प्रधानमंत्री ओली पर संवैधानिक परिषद अधिनियम से संबंधित एक अध्यादेश को वापस लेने का भारी दबाव था। इससे बचने के लिए ही उन्होंने संसद भंग करने का फैसला किया।

इसके साथ प्रधानमंत्री ओली और नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के चेयरमैन पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’ के बीच कई बिंदुओं पर तीखे मतभेद थे। मंत्रिमंडल के बंटवारे को लेकर भी उनके बीच खींचतान थी। पार्टी के इन दोनों नेताओं के बीच चलने वाले विवाद से नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी के अस्तित्व पर ही खतरा मंडराने लगा था। जानकार मानते हैं कि इन्हीं कारणों से प्रधानमंत्री ओली ने संसद को भंग करने का निर्णय लिया था।

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