इस सर्दी घूमने जाएं दुधवा नेशनल पार्क
दस्तक टाइम्स/एजेंसी- पर्यटकों के लिए खासी दिलचस्पी का केंद्र दुधवा नेशनल पार्क 15 नवंबर से एक बार पिफर उनके लिए खुल गया। इस पर्यटन सीजन में इस पार्क में बहुत सारी नई सुविधाएं शुरू की गई हैं। आइए जानते हैं सैलानियों की पसंद के इस पार्क में क्या-क्या खासियतें हैं जो उन्हें यहां ले आती हैं।
दुधवा देश में तराई वन्य क्षेत्रों में शामिल है जहां विभिन्न वनस्पति और वन्य जीवों की प्रजातियाँ प्राकृतिक रूप से पाई जाती हैं। इस जंगल का उत्तरी किनारा नेपाल की अंतरराष्ट्रीय सीमा से लगा हुआ है और इसके दक्षिण में सुहेली नदी बहती है। यहाँ के वन्य क्षेत्र में घने हरे जंगल, लम्बी घास और अन्य पेड़ पाए जाते हैं, और हिरनों की कई प्रजातियों के अलावा बाघ, तेंदुआ, बारहसिंघा, हाथी, सियार, लकडबग्घा और एक सींग वाले गेंडे निवास करते हैं।
यह नेशनल पार्क हिरण, हाथी और पंछियों समेत बाघ, तेंदुएं और विभिन्न विभिन्न पक्षियों के लिए घर है। शहरो की भागदौड़ से दूर तराई तलहटी में प्राकृतिक शांति के साथ कुछ समय बिताने के लिए यह उपयुक्त स्थान है। गहरे हरे जंगलों के बीच बहने वाली नदियां आपको जंगल का पूर्ण अनुभव देती है। यह देश के सबसे उम्दा इको-सिस्टम वाले तराई क्षेत्रों में से माना जाता है। यही वजह है यहां वन्य जीवन बेहद विशाल और खूबसूरत है।
दुधवा घूमने के नजरिए से जितना रोमांचक है, उतना ही मजेदार है इसके बारे में जानना। आपको शायद ही पता हो दुधवा टाइगर रिजर्व की नींव 1958 में पड़ी थी, लेकिन उस समय लक्ष्य था लुप्त होते बारासिंघा को बचाना। जगह का नाम भी सोनारीपुर अभ्यारण्य था। कुछ वक्त बाद इसका क्षेत्रफल बढ़ाकर 212 वर्ग किलोमीटर कर दिया गया और नाम पड़ गया दुधवा अभ्यारण्य। 1977 में क्षेत्रफल बढ़ाकर 614 वर्ग किलोमीटर किया गया और इसे राष्ट्रीय पार्क का दर्जा मिल गया। फिर, 1988 में लखीमपुर से 30 किलोमीटर दूर स्थित किशनपुर अभ्यारण्य को भी इसमें शामिल करते हुए इसे दुधवा टाइगर रिजर्व घोषित कर दिया गया। उत्तर प्रदेश पर्यटन विभाग के मुताबिक, यहां के सथानिया और ककरहा इलाकों में करीब 1800 बारासिंघा मौजूद हैं।
‘हिस्पिड हेयर’ को किया जाता है पसंद
यहां बाघ की तमाम प्रजातियों के साथ तीथल, हॉग डीयर और बार्किंग डीयर भी खासी तादाद में हैं। यहां कई ऐसे जानवर भी देखे गए हैं, जिनके बारे में विलुप्त होने का शक जताया जा रहा था। उनमें से ही एक है हिस्पिड हेयर। गाढ़े भूरे रंग का यह जानवर अपने शानदार फर के लिए काफी पसंद किया जाता है। इतना ही नहीं, पंछियों के लिए भी यह स्वर्ग सरीखा है। यहां पंछियों की कम से कम 400 प्रजातिया मौजूद हैं।
कब जाएं
दुधवा नेशनल पार्क जाने के लिए सबसे सही समय 16 नवंबर से 14 जून तक है।
कहां रुकें
दुधवा में आधुनिक शैली में थारू हट उपलब्ध हैं। रेस्ट हाउस-प्राचीन इण्डों-ब्रिटिश शैली की इमारतें पर्यटकों को इस घने जंगल में आवास प्रदान करती है, जहाँ प्राकृतिक सौंदर्य दोगुना हो जाता हैं। यहां जंगलों के बीच करीब 50 फीट ऊंचाई पर ट्री हाउस बनाए गए हैं, जहां आप असली रोमांच का अहसास कर सकते हैं। इसके अलावा, यहां सरकारी व निजी कई गेस्ट हाउस मौजूद हैं।
यहां कर सकते हैं प्री-बुकिंग-
1- होटल शारदा, पलिया, 05871-233444.
2- होटल पुष्पांजलि, निघासन रोड, पलिया, 05871-233172.
3- होटल राय पैलेस, पलिया, 05871-235233, 298098.
4- होटल महेंद्र, दुधवा रोड, पलिया, 05871-233247.
क्या है खास
दुधवा के जंगलों में ब्रिटिश राज से लेकर भारत में बनवाए गए लकड़ी के मचान रोमांच को बढ़ा देते हैं। इसके अलावा, यहां राजस्थान की थारू सभ्यता से भी रू-ब-रू होने का मौका मिलता है। इस जाति के लोगों के आभूषण, नृत्य, त्योहार व पारंपरिक ज्ञान बेमिसाल हैं। खुद को राणा प्रताप का वंशज बताने वाले इस समुदाय के लोग नेपाल बॉर्डर पर रहते हैं। शायद यही वजह है कि यहां नेपाली संस्कृति की झलक भी मिलती है।
कैसे पहुंचें
लखनऊ सिधौली, सीतापुर, हरगांव, लखीमपुर और भीरा से पलिया होते हुए दुधवा नेशनल पार्क पहुंच सकते हैं। दुधवा नेशनल पार्क के सबसे पास रेलवे स्टेशन दुधवा, पलिया और मैलानी हैं।