कच्छ: गुजरात के कच्छ के खावड़ा इलाके के 15 गांव के लोग आजादी के बाद से आज तक पानी की किल्लत का लगातार सामना कर रहे हैं. भारत-पाकिस्तान सीमा पर बसा ये सूखा इलाका, सालों से पानी का प्यासा है और यहां बूंद-बूंद के लिए लोग तड़प रहे हैं. सरकार का दावा है कि सीमावर्ती इलाके तक पानी पहुंच गया है, लेकिन सरकार के दावे के उलट यहां हकीकत कुछ और ही है.
स्थानीय लोगों का आरोप है कि भुज विधायक ने आजतक इस इलाके और पानी की समस्या के बारे में कोई प्रयास नहीं किया ऐसा. खावड़ा इलाके का बांदा गांव जहां रहने और पीने के पानी को लेकर हमेशा जद्दोजहद रहा है. महिलाएं सुबह से दोपहर तक कुएं से पानी निकाल कर लाती हैं. भीषण गर्मी के बीच पानी की ये किल्लत लोगों को पलायन करने पर मजबूर करती हैं. पढ़ने के उम्र में यहां के बच्चों को पानी लाने के लिए गांव से दूर कई किलोमीटर पैदल जाना पड़ता है.
जिला पंचायत की सीट से सदस्य मोटा दिनारा के रशीद समा बताते हैं कि सीमावर्ती गांवों में लोगों की पानी की वजह से हालत बेहद खराब है. सीमावर्ती गांवों के 30 से 40 फीसदी लोग पानी की कमी से पलायन कर गए, पशुपालक अन्य जगहों पर चले गए, घास तो है लेकिन पानी नहीं, अधिकारियों ने सिर्फ बड़े-बड़े दावे किए कि हम पानी पहुंचाएंगे. गांव में टैंकर से पानी देंगे, नर्मदा से पानी देंगे लेकिन अब तक पानी की सुविधा नहीं मिल रही. बांध भरने की बात कर रहे हैं लेकिन पीने का पानी नहीं मिल रहा है.
कुएं के पानी पर निर्भर गांव वालों का कहना है कि कुएं का पानी प्रदूषित है लेकिन फिर भी गांव के लोग इसी पानी से अपनी प्यास बुझा रहे हैं, ऐसा ही नजारा खावड़ा के सभी गांवों में देखने को मिलता है, पूरे साल पानी की समस्या रहती है. कई सरकारें आईं और चली गईं लेकिन इन सीमावर्ती गांवों के क्षेत्र में पानी की समस्या ऐसी ही है, अब तक कोई सुधार नहीं हुआ.
पानी के लिए 10 किमी का चक्कर
गांव के स्थानीय नागरिक शकूर समा का कहना है कि आसपास के हर गांव में यही हालत है महिलाएं 10 किमी दूर कुएं में पानी भरने के लिए जाती हैं. कई बार उन्होंने सरकार को आवेदन दिया लेकिन समस्या का समाधान नहीं हुआ. अब किसी निजी बोरवेल से 500 रुपये देकर पानी का टैंकर मंगवाते हैं. उन्होंने कहा कि अगर सरकार पानी नहीं दे सकती, तो क्या उम्मीद रखी जाए सरकार से, गंभीर स्थिति है, गांवों में पानी के बिना मवेशी मर रहे हैं. अगर हमें खुद पीने का पानी नहीं मिल रहा तो हम मवेशियों को पानी कहां से दें?
इस सीमावर्ती क्षेत्र में मवेशियों की संख्या इंसानों की संख्या से ज्यादा है और यहां के लोगों का प्रमुख व्यवसाय पशुपालन पर टिका हुआ है, ज्यादातर चरवाहे अपने परिवार के साथ इस इलाके से पलायन कर चुके हैं. गांव में बचे हुए पशुपालक भी मवेशियों को लेकर गांव से 10-15 किमी दूर आसपास के इलाकों पानी की तलाश में रहते हैं.
गर्मियों के मौसम में बन्नी-खावड़ा का ग्रास लैंड सूखा मरुस्थल बन गया है. बन्नी-खावड़ा इलाके में रहने वाले मालधारी के पास पीने का पानी नहीं है और मवेशी भी पानी की किल्लत से जूझ रहे हैं. लोग और मवेशी दोनों बूंद-बूंद पानी के लिए तड़प रहे हैं, और ज्यादातर मवेशियों के साथ काफी लोग गांव छोड़ पानी की तलाश में निकल पड़े हैं.