अगर आता है बहुत गुस्सा तो आपके लिए है ये कहानी
एक किसान अपने खेतों में बहुत मेहनत करता था। सब लोग उसके मेहनती स्वभाव की तारीफ करते थे लेकिन उसमें एक बड़ी कमी भी थी।
उसे गुस्सा बहुत आता था। गुस्से में वह अपनी पत्नी, बेटी आैर पड़ोसी को दुर्वचन कहने से नहीं हिचकता था। एक दिन किसान को अहसास हुआ कि उसे खुद में बदलाव करने चाहिए। इतना गुस्सा अच्छा नहीं है।
यह सोचकर वह एक संन्यासी के पास गया। संन्यासी ने उसकी पूरी बात सुनी आैर बोले- कल फिर यहां आआे लेकिन अपने साथ एक टोकरी में ढेर सारे पंख भी लाना।
किसान ने संन्यासी की बात मान ली। दूसरे दिन वह एक टोकरी में पंख लेकर आ गया। संन्यासी ने कहा, इन पंखों को रास्ते में बिखेर दो।
किसान ने वैसा ही किया। उसने सभी पंख रास्ते में बिखेर दिए। तब संन्यासी ने कहा- जाआे आैर सभी पंख वापस एकत्रित कर लाआे।
यह आदेश सुनकर किसान हैरान रह गया। वह रास्ते में जाकर पंख एकत्रित करने लगा। उसे यह काम करने में पूरा दिन लग गया लेकिन सभी पंख वह लेकर नहीं आ सका।
आखिरकार शाम को वह आधी टोकरी पंख लेकर आया आैर संन्यासी के सामने रखते हुए बोला- महाराज, क्षमा कीजिए। आपने जिस काम की जिम्मेदारी मुझे दी थी वह मैं ठीक तरह से नहीं निभा सका। मेरे पास सिर्फ आधा टोकरी पंख ही हैं।
संन्यासी ने कहा, जिस तरह पंखों को बिखेरना आसान है, उसी प्रकार किसी को दुर्वचन कहना आसान है लेकिन ये वचन उन बिखरे हुए पंखों की तरह हैं जिन्हें समेटना बहुत मुश्किल है, इसलिए जो भी बात कहो उससे पहले सोच लेना चाहिए कि उसका परिणाम क्या होगा।