नई दिल्ली (एजेंसी)। एक किशोर का अपहरण कर उसके साथ दुराचार करने के मामले में निचली अदालत से पांच वर्ष कैद की सजा पाए व्यक्ति को राहत देने से इनकार करते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा कि यौन हमले के मामले में नरमी बरता जाना ‘अवांछित’ और ‘जनहित के विरुद्ध’ है। आरोपी द्वारा किए गए अपराध की गहराई को ध्यान में रखते हुए अदालत ने कहा कि यौन अपराध से ‘पीड़ित अपमानित और हीनता बोध’ का शिकार हो जाता है। अपने दूरगामी फैसले में न्यायमूर्ति एस. पी. गर्ग ने कहा ‘‘यौन हिंसा अमानवीय होने के साथ ही एक ऐसा अमानवीय कृत्य है जिससे पीड़ित की निजता और शुचिता के अधिकार का हनन भी होता है।’’21 मार्च 2०13 को निचली अदालत ने 16 वर्ष के एक किशोर का अपहरण कर उसके साथ दुराचार करने के लिए आरोपी गुलफाम को पांच वर्ष कैद की सजा सुनाई थी। इस अपराध में गुलफाम अकेला आरोपी नहीं था। गुलफाम की मदद एक दूसरे किशोर ने की थी। अपराध में उसका साथ देने वाले ने हालांकि फैसले को यह कहते हुए चुनौती दी कि अपराध के समय वह किशोर था। उसके बाद उसे मिली सजा निरस्त कर दी गई। न्यायमूर्ति गर्ग ने कहा कि यौन अपराध का शिकार पूरी जिंदगी एक त्रासद अनुभव से गुजरता रहता है। अदालत ने माना कि आरोपी के द्वारा किया गया अपराध ‘पूर्व नियोजित’ और अपनी वासना की तुष्टि के लिए जानबूझकर किया गया था। गुलफाम ने निचली अदालत से दोषी ठहराए जाने को चुनौती नहीं दी थी बल्कि उच्च न्यायालय से हिरासत के दौरान जेल में बिताए तीन वर्ष को ध्यान में रखते हुए रिहा करने की मांग की थी।