देश में बढ़ती असहनशीलता को लेकर बेशक चर्चा हो, लेकिन गृहमंत्रालय उनसे सहमत नहीं है। संसदीय बोर्ड में पेश की गई रिपोर्ट के मुताबिक, इस साल देश में सांप्रदायिक वारदातों में कमी आई है।
दादरी में अखलाक की मौत, फरीदाबाद के अटाली में दंगा, ये वे मुद्दे हैं, जिन्हें लेकर देशभर में असहनशीलता पर चर्चा हो रही है, लेकिन देश के आंकड़े कुछ ओर तस्वीर पेश कर रहे हैं। एनडीटीवी के पास संसदीय बोर्ड की ताजा रिपोर्ट है, जिसके मुताबिक, 2015 अक्टूबर तक 630 सांप्रदायिक वारदातें सामने आईं, जिनमें 86 लोग मारे गए और 1899 लोग घायल हुए।
-2014 में 644 वारदातें सामने आईं, जिनमें 95 लोग मारे गए और 1921 लोग घायल हुए।
-जबकि 2013 में जब UPA-2 थी, तब 823 वारदातें हुईं, जिनमें 133 लोग मारे गए और 2269 लोग घायल हुए।
क्या कहते हैं आंकड़े
गृह मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, 2013 में महाराष्ट्र के धुले और उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में ही 70 लोग मारे गए थे और 100 से ज्यादा घायल हुए जबकि जुलाई 2014 के बाद यानी जबसे बीजेपी सत्ता में आई है तबसे 2014 में सिर्फ एक वारदात सहारनपुर में हुई, जिसमें तीन लोग मारे गए और 23 घायल हुए जबकि 2015 में अब तक कोई बड़ी सांप्रदायिक वारदात नहीं हुई है।
दादरी और अटाली बड़ी वारदात नहीं
दरअसल, बड़ी वारदात तब मानी जाती है जब पांच या फिर उससे ज्यादा लोग मारे जाते हैं और 10 या फिर उससे ज्यादा घायल होते हैं। मंत्रालय ने जो रिपोर्ट संसदीय बोर्ड को दी है उसमें दादरी और अटाली को बड़ी वारदात नहीं, महत्वपूर्ण की श्रेणी में डाला गया है। वैसे मंत्रालय ने माना है कि जब बिहार चुनाव हो रहे थे तब सिर्फ अक्टूबर में 56 वारदातें हुईं, जिनमें 11 लोग मारे गए और 126 घायल हुए थे।
मामलों में सोशल मीडिया का इस्तेमाल
मंत्रालय ने संसदीय बोर्ड को यह भी बताया है कि ज्यादातर मामलों मे सोशल मीडिया का ही इस्तेमाल हो रहा है, हालांकि कुछ मामलों मे धार्मिक ओर राजनीतिक कारण भी सामने आए हैं। मोबाइल फ़ोन का इस्तेमाल दंगे भड़काने में देखा गया है। रिपोर्ट में आखिर में कहा गया है कि कानून-व्यवस्था राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है इसलिए उन्हें हर घटना पर ध्यान देना होगा।