भगवान विष्णु का कार्तिक मास के एकादशी का माहात्म्य तथा शालिग्राम व तुलसी का विवाह शास्त्रों में स्वयं सिद्ध है । ऐसी मान्यता है कि कार्तिक मास में जो मनुष्य तुलसी विवाह करते हैं उनके पूर्व जन्मों के समस्त प्रकार के पाप नष्ट हो जाते हैं। कार्तिक में स्नान करने वाली स्त्रियां एकादशी को तुलसी जी तथा शालिग्राम का विवाह सम्पन्न करवाती हैं।
पूर्ण विधिविधान से खूब गाजे बाजे के साथ तुलसी की बिरवे से शालिग्राम के फेरे एक सुन्दर मण्डप के नीचे किए जाते हैं। विवाह में कई गीत, भजन व तुलसी नामाष्टक सहित विष्णु पुराण के पाठ किए जाने का विधान है । धर्म सिन्धु के अनुसार जिन दम्पत्तियों के सन्तान नहीं होती, वे जीवन में एक बार तुलसी का विवाह करके इस महादान में अपनी आहुति अवश्य देवें।
तुलसी रूपी दान से बढ़कर कार्तिक मास में कोई महादान नहीं है। पृथ्वी लोक में देवी तुलसी आठ नामों, वृंदावनी, वृंदा, विश्वपूजिता, विश्वपावनी, पुष्पसारा, नंदिनी, कृष्णजीवनी और तुलसी नाम से विख्यात हुई हैं। भगवान के भोग, माला और चरणों में तुलसी चढ़ाई जाती है। तुलसीदल को सदैव तुलस्यमृतजन्मासि सदा त्वं केशव प्रिया। चिनोमि केशवस्यार्थे वरदा भव शोभने।। मंत्र के साथ उतारना (तोड़ना) चाहिए।