‘उस रात मैंने कसाब से मदद मांगी लेकिन…’ 26/11 का मंज़र एक ‘चायवाले’ की ज़बानी
2008 में 26 नवंबर की रात मुबंई के आठ ठिकानों पर हमला हुआ था जिसने पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया था। उस रात को सात साल गुज़र चुके हैं, जिंदगी धीरे धीरे पटरी पर लौट रही है लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं जिनके ज़हन में उस रात का मंज़र हमेशा के लिए कैद हो चुका है। फेसबुक पेज ‘Humans of Bombay’ ने ऐसे ही कुछ बहादुर लोगों के अनुभव साझा किए हैं जिन्होंने 26/11 के हमले का जान पर खेलकर सामना किया था। पढ़िए ऐसे ही एक शख़्स की आपबीती –
मैंने खिड़की से कसाब को देखा और मुझे लगा कि वह कोई कमांडो है जिसके हाथ में दो एके 47 गन हैं। मैंने चिल्लाकर उससे मदद मांगी लेकिन उसने मुझे ऐसी गालियां दी जो मैं बता भी नहीं सकता। इसके बाद कसाब ने टिकटिंग काउंटर के अंदर गोलियां बरसानी शुरू कर दी। रेल्वे मास्टर को गोली लगी, मुझे भी कांच के टुकड़े घुसने से चोट लग गई, बाकी के 7-8 लोग भी घायल हो गए।
कुछ देर बाद, गोलियों की आवाज़ थोड़ी दूर से आने लगी, मैं थोड़ा घसीटते हुए बाहर गया और नीचे पड़ी अनगिनत लाशों को देखने लगा, उनमें से कुछ ऐसे भी थे जिनमें अभी भी जान थी। मैंने अपनी पत्नी को फोन किया और कहा कि शायद मैं बच नहीं पाऊंगा क्योंकि स्टेशन पर अभी भी बम हैं। उसने मुझे घर लौटने को कहा लेकिन मैंने कहा कि अभी मुझे लोगों को बचाना है।
मैंने सीएसटी पर लगभग हर एक बॉडी को चेक किया कि कहीं कोई ज़िंदा हो, जिनकी सांस चल रही थी उन्हें हाथ गाड़ी, स्टील के पट्टों और टैक्सी में बैठाया ताकि उन्हें अस्पताल ले जाया जा सके। रेल्वे मास्टर और कुछ लोगों को तो मैं खुद ही बायकुला के अस्पताल ले गया, क्योंकि ऐसी खबरें आ रही थीं कि साउथ बॉम्बे के कामा अस्पताल पर भी हमला हुआ है। मैं पूरी रात एक पुलिस अफसर के साथ सीएसटी पर रुका रहा।
मैंने कुछ भी पुरस्कार या सम्मान पाने के लिए नहीं किया था लेकिन मुझे 28 अवार्ड मिले और मुझसे रेल्वे में नौकरी का वादा किया गया, एक वादा जो 7 साल बाद भी पूरा नहीं हुआ है। अगर मेरी जगह यही काम किसी मंत्री या नेता का बेटा करता तो पता नहीं उसके लिए क्या क्या किया जाता लेकिन खैर, मैं एक गरीब चायवाला हूं और मुझे कोई अफसोस नहीं है, मैं यह सब कुछ दोबारा कर सकता हूं।’