नई दिल्ली: वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के डेल्टा वेरिएंट ने दुनिया में अपना असर दिखाना शुरू कर दिया है। इसका खतरा इसलिए भी अधिक बढ़ रहा है क्योंकि जिन कोरोना वैक्सीन को सुरक्षा कवच के तौर पर देखा जा रहा था, वो भी कोरोना के नए वेरिएंट के सामने नाकाम साबित हो रही हैं। डेल्टा वेरिएंट की बढ़ती ताकत को देखते हुए अब कई देशों की सरकारों ने कोरोना वैक्सीन की बूस्टर डोज की पेशकश कर दी है। हालांकि अभी तक इस बात के कोई प्रमाण नहीं मिले हैं कि बूस्टर डोज कोरोना के डेल्टा वेरिएंट को कमजोर कर देगा।
कोरोना के डेल्टा वेरिएंट के बढ़ते मामलों को देखते हुए थाईलैंड, बहरीन और संयुक्त अरब अमीरात के स्वास्थ्य अधिकारियों ने उन लोगों को बूस्टर डोज देने की तैयारी की है जिन्होंने चीनी निर्माता कंपनी सिनोवैक बायोटेक की वैक्सीन सिनोफार्मा और एस्ट्राजेनेका लगवाई है। अधिकारी बूस्टर डोज की ओर इसलिए प्रेरित हो रहे हैं क्योंकि वैक्सीन डेल्टा वेरिएंट और उसकी तरह के अन्य वेरिएंट पर असर नहीं कर रही है। इसका सबसे बड़ा कारण ये है कि ये वैक्सीन आरएनए तकनीक या एमआरएनए का इस्तेमाल करके नहीं बनाई गई है।
मंगोलिया और संयुक्त अरब अमीरात जैसे देशों ने जिन्होंने चीनी वैक्सीन का इस्तेमाल किया है वहां पर कोरोना संक्रमण की रफ्तार कम नहीं हुई है। सेशेल्स में एस्ट्राजेनेका वैक्सीन के इस्तेमाल को इजाजत दी गई थी। यहां पर जिन लोगों ने कोरोना वैक्सीन की दोनों खुराक ली थी, उनमें से अब तक 5 लोगों की मौत हो चुकी है। शोध से पता चला है कि डेल्टा म्यूटेशन इतना ताकतवर है कि अगर कोई वैक्सीन एमआरएनए से बनी है तो उस वैक्सीन को लगवाने वाले में कोरोना से सुरक्षा 90 प्रतिशत से भी कम हो जाती है। एक अन्य शोध में पता चला है कि एस्ट्राजेनेका वैक्सीन लगवाने वालों में कोरोना का खतरा 60 प्रतिशत तक बना रहता है, हालांकि अभी भी वैक्सीन मरीज को 90 फीसदी तक सुरक्षा प्रदान करती है और अस्पताल जाने से रोकती है।