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केजरीवाल सरकार ने स्कूल फीस पर कोर्ट में कहा- अभिभावकों पर दबाव को नजरअंदाज नहीं कर सकते

नई दिल्ली। दिल्ली सरकार ने बुधवार को दिल्ली उच्च न्यायालय में कहा कि ऐसे समय जब बहुत सारे बच्चे कोविड के दौरान अपने एक या दोनों अभिभावकों को खो चुके हैं या लॉकडाउन के कारण वे बेरोजगारी के शिकार हो गए हैं, स्कूलों द्वारा व्यावसायिक तर्ज पर फीस वसूलना अनुचित और कठोर है।

दिल्ली सरकार ने कहा कि इन संस्थानों से उम्मीद की जाती है कि वे शिक्षा के क्षेत्र में अधिकतम सहयोग करेंग ताकि स्कूलों के माध्यम से सुविधाजनक वित्तीय माहौल के साथ अधिक से अधिक छात्रों को शिक्षा मिल सके। मुख्य न्यायाधीश डी एन पटेल और जस्टिस ज्योति सिंह की पीठ ने घंटों दलीलें सुनने के बाद कहा कि वह बृहस्पतिवार को भी दलीलों की सुनवाई जारी रखेगी।

पीठ दिल्ली सरकार, छात्रों और एक गैर सरकारी संगठन की विभिन्न याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। इन याचिकाओं में पिछले साल राष्ट्रीय राजधानी में लॉकडाउन समाप्त होने के बाद की अवधि के लिए निजी गैर-सहायता प्राप्त स्कूलों को छात्रों से सालाना और विकास शुल्क लेने की अनुमति देने वाले एकल न्यायाधीश के आदेश को चुनौती दी गई है। दिल्ली सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने कहा कि स्कूली शिक्षा का नियामक होने के नाते अपीलकर्ता (दिल्ली सरकार) आम जनता पर भारी वित्तीय दबाव और तनाव को नजरअंदाज नहीं कर सकता है, जहां कई बच्चों ने अपने एक या दोनों अभिभावकों को खो दिया है या उनकी आमदनी के स्रोत समाप्त हो गए हैं। सिंह ने कहा स्कूलों द्वारा वाणिज्यिक आधार पर चलने का प्रयास Þअनुचित और कठोरÞ है।

दिल्ली सरकार के स्थायी वकील और वरिष्ठ अधिवक्ता संतोष कुमार त्रिपाठी ने दलील दी कि एकल न्यायाधीश ने स्कूल फीस लिए जाने से जुड़े उच्चतम न्यायालय के एक आदेश के आधार पर निर्देश पारित करने में गंभीर गलती की। उन्होंने कहा कि एकल न्यायाधीश ने इस तथ्य की अनदेखी की कि उच्चतम न्यायालय का फैसला राजस्थान से संबंधित है और ट्यूशन फीस उस समय के लिए थी जब वहां स्कूल फिर से खुल गए थे जबकि दिल्ली में स्थित वह नहीं है। अभिभावकों और एनजीओ जस्टिस फॉर ऑल की ओर से पेश अधिवक्ता खगेश बी झा तथा शिखा शर्मा बग्गा ने दलील दी कि स्कूल जानबूझकर एकल न्यायाधीश के फैसले को गलत तरीके से पढ़ रहे हैं।

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