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कोरोना की जांच के लिए बार-बार स्वाब सैंपल लेने से ब्लैक फंगस का खतरा

नई दिल्ली: कोरोना की जांच के लिए कई बार स्वाब सैंपल देना भी म्यूकोरमाइकोसिस (ब्लैक फंगस) की बड़ी वजह हो सकती हैं। दिल्ली एम्स में हाल में हुए एक अध्ययन में यह चौंकाने वाली जानकारी सामने आई है। शोधकर्ताओं का कहना है कि सैंपल लेते वक्त स्वाब को नाक में घुमाने से फंगस और अन्य बैक्टीरिया को शरीर में घुसने से रोकने वाली नेसल म्यूकोसा चोटिल हो सकती है। इससे ब्लैक फंगस का संक्रमण होने का खतरा बढ़ सकता है। एम्स के मेडिसिन विभाग के प्रमुख प्रोफेसर नवीत विग की अगुवाई में यह शोध 352 मरीजों को पर हुआ, जिनमें 152 मरीज कोरोना के साथ ब्लैक फंगस से संक्रमित थे जबकि 200 मरीज सिर्फ कोरोना से पीड़ित थे।

शोध में पाया गया कि 352 में 230 मरीज ऐसे थे, जिन्होंने दो से ज्यादा बार सैंपल दिया था। 230 में 116 ब्लैक फंगस से पीड़ित थे और इन लोगों ने दो से ज्यादा बार जांच कराई थी। बाकी 114 मरीजों ने भी दो से ज्यादा बार जांच कराई, लेकिन उन्हें ब्लैक फंगस नहीं था। यानी ब्लैक फंगस से पीड़ित 76 फीसदी मरीजों ने दो या इससे अधिक बार सैम्पल लिया था जबकि ब्लैक फंगस से पीड़ित न होने वाले 57 फीसदी मरीजों ने दो या अधिक बार स्वाब सैम्पल दिया था। एम्स के मेडिसिन विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर और अध्ययन के सह लेखक डॉक्टर नीरज निश्चल ने बताया कि कोरोना की जांच के लिए सैंपल लेते वक्त नाक में स्वाब को घुमाया जाता हैं।

ऐसा कई बार करवाने से नाक में मौजूद नेसल म्यूकोसा को क्षति पहुंच सकती है। नेसल म्यूकोसा में कुछ अच्छे बैक्टीरिया पाए जाते हैं, जो खतरनाक फंगस और वायरस को शरीर के अंदर जाने से रोकते हैं। इसके चोटिल होने पर इसकी प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है, जिससे हवा और नाक के आसपास मौजूद फंगस आसानी से नाक के जरिए शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। डॉ. नीरज के मुताबिक, सिर्फ एक बार ही स्वाब सैम्पल देकर जांच कराएं। अस्पताल में भर्ती कोरोना मरीजों की भी बार-बार जांच नहीं करनी चाहिए। अगर मरीज को कोविड वार्ड से नॉन कोविड वार्ड में भेज रहे हैं तब उसकी दोबारा जांच की जा सकती है। शोध में यह बात भी सामने आई कि ब्लैक फंगस से पीड़ित 92.1 फीसदी मरीज मधुमेह से पीड़ित थे।

वहीं, कोरोना संक्रमित मरीज जिन्हें यह समस्या नहीं हुई, उनमें सिर्फ 28 फीसदी ही मधुमेह से पीड़ित थे। इतना ही नहीं ब्लैक फंगस से पीड़ित मरीजों में पाया गया कि उन्होंने कोरोना के इलाज के दौरान स्टेरॉइड का अधिक इस्तेमाल किया। ब्लैक फंगस से जूझने वाले 65.8 फीसदी मरीजों ने 6 से 14 दिन तक स्टेरॉइड ली, जबकि कोरोना संक्रिमत 48 फीसदी ऐसे मरीज थे, जिन्होंने स्टेरॉइड का इस्तेमाल किया था और उनमें ब्लैक फंगस नहीं पाया गया। मेडिसिन विभाग के प्रमुख डॉक्टर नवीत विग का कहना है कि शोध से यह साबित होता है कि मधुमेह पीड़ित और स्टेरॉइड का अधिक इस्तेमाल करने वाले मरीजों को म्यूकोरमाइकोसिस का खतरा अधिक है। शोध में यह सामने आया है कि जिन लोगों ने कोरोना की जांच के लिए कई बार स्वाब सैम्पल दिया उनमें म्यूकोरमाइकोसिस (ब्लैक फंगस) के मामले अधिक देखे गए। कोरोना की पुष्टि होने के बाद मरीज को बार बार स्वाब सैम्पल देने से बचना चाहिए। कपड़े का मास्क का इस्तेमाल कई बार न करें।

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