स्पोर्ट्स डेस्क : टोक्यो ओलंपिक में सेमीफाइनल में एंट्री कर मेडल पक्का करने वाली भारतीय मुक्केबाज लवलीना बोरगोहेन को असम सरकार तोहफा देगी. अब लवलीना के गांव बारोमुखिया में 3.5 किलोमीटर सड़क बनेगी. मुक्केबाज का यह गांव असम के गोलाघाट के पास है. 2016 में असम के तत्कालीन सीएम सर्वानंद सोनेवाल ने ये काम शुरू किया था, केवल 100 मीटर रोड ही बनाई गई थी.
इस रोड पर 3/9 गोरखा राइफल्स के हवलदार पदम बहादुर श्रेष्टा का घर भी है जिन्होंने 2019 में पाकिस्तान की फायरिंग में अपनी जान गंवाई थी.
टोक्यो से वापसी के बाद असम सरकार देनी वाली ये गिफ्ट
गांव वालों ने इसकी शिकायत की थी कि मिट्टी की रोड होने की वजह से कई बार मरीज को अस्पताल ले जाने में देरी हो जाती है. एक और अंग्रेजी अखबार की रिपोर्ट की मानें तो लवलीना के गांव में पानी की सप्लाई भी नहीं है. यहां पानी ट्यूबवेल या तालाबों से आता है. छोटी से स्वास्थ्य सुविधा के अलावा यहां कोई अस्पताल भी नहीं हैं और इसी कारण गांव के लोगों को गंभीर मरीज को लेकर 45 किलोमीटर दूर जाना पड़ता है.
वही गांव वाले लवलीना को पदक के साथ देखना चाहते हैं और उम्मीद लगाए बैठे हैं कि वो गोल्ड जीतकर आएंगी और इससे उनके गांव की स्थिति भी बेहतर होगी. लवलीना 69 किलोग्राम भारवर्ग के सेमीफाइनल में है. अगर वो सेमीफाइनल से भी लौटती हैं तो कांस्य पदक लेकर लौटेंगी और अगर फाइनल में जाती हैं तो रजत या फिर गोल्ड की संभावना बन जाएगी.
पुरस्कार से मिली रकम से ऐसे कराया था मां का इलाज
वैसे कोरोना से पहले पिछले साल लॉकडाउन में लवलीना कोरोना वायरस की चपेट में आई. 104 फॉरेनहाइट के तपते बुखार में उन्हें एनआईएस पटियाला से दिल्ली लाया गया. उसके बाद उनकी मां की तबियत खराब हुई.
उनका एक पैर राष्ट्रीय शिविर में और दूसरा गुवाहाटी में था. डॉक्टरों ने बोला कि, मां की दोनों किडनी खराब हो गई हैं. इस पर लवलीना ने खुद डोनर किडनी दान देने वाला ढूंढ़ा और अपने कैश अवार्ड की राशि लगाकर मां की कोलकाता में किडनी ट्रांसप्लांट कराई.
मीराबाई की तरह लवलीना का भी मां से लगाव है. भारतीय टाइम के मुताबिक सुबह साढ़े पांच बजे उन्होंने मां को फोन कर आशीर्वाद लिया. उनके पिता टिकेन भावुक होकर बोलते है उन्हें कोई मलाल नहीं है कि उनके बेटा नहीं है. उनकी तीनों बेटियों ने बेटे से बढ़कर फर्ज निभाया है. लवलीना की दो बड़ी जुड़वां बहनें हैं.
दोनों मुए थाई की विजेता रही हैं. उन्हीं को देखकर लवलीना ने मुए थाई की, 2012 में साई गुवहाटी के कोच पदम बोरो की नजर उन पर पड़ी और उन्होंने उसे बॉक्सिंग शुरू करा दी. टिकेन ने बताया कि किडनी बदलवाने में 25 लाख का खर्च आया जिसे लवलीना ने वर्ल्ड चैंपियनशिप के पदक से जीते कैश अवार्ड से भरा.
लवलीना भी बोलती है कि वो आपरेशन वाले दिन कोलकाता नहीं जा पाई थीं, अगले दिन मां से मिलने पहुंच गई थीं. 2012 की जूनियर राष्ट्रीय चैंपियनशिप में गोल्ड जीतने के बाद राष्ट्रीय कोच द्रोणाचार्य अवार्डी शिव सिंह उसकी लंबी देखकर उन्हें राष्ट्रीय शिविर में ले आए. लवलीना रिंग में खुलकर नहीं खेल पाती थी.
कहीं न कहीं उनके मन में डर रहता था. यहीं उन्हें कोच संध्या गुरुंग का साथ मिला. संध्या ने मां की तरह उनका ख्याल रखा और उनके मन से डर को निकाल दिया. संध्या बोलती है कि वो असली मुक्केबाज तब बनी जब उसके मन से डर निकल गया.