स्पोर्ट्स डेस्क : आज पुरुष हॉकी टीम ने 41 वर्ष बाद ओलंपिक पदक जीता. हालांकि, इससे पहले 1980 में हुए उस ऐतिहासिक पल को लाइव नहीं देखा, आज सबने मिलकर अपने जैसे बहुतों को उसकी याद जरूर दिलाई. 1980 मॉस्को ओलंपिक… वी भास्कोरन की कप्तानी में भारतीय हॉकी टीम ने गोल्डं मेडल अपने नाम किया था. वो 1964 के बाद हमारा पहला गोल्ड था.
गोल्ड मेडल जीतने की इच्छा इस बार नहीं पूरी हुई, ओलंपिक के मंच पर भारत खड़ा जरूर होगा. 41 साल पूर्व मिली उस सुनहरी जीत की कुछ ब्लै क ऐंड वाइट फोटोज हैं, जो शायद आज की जीत से जवां हुई हैं. आज शायद ‘हॉकी के जादूगर’ मेजर ध्यानचंद को भी नाज होगा कि उनके नक्शे कदम पर चलते हुए इन लड़कों ने हॉकी में भारत की पुराने रुतबे को थोड़ा तो लौटाया है.
जोश मे लबरेज दर्शकों की ये फोटोज प्यारी है. हॉकी को लेकर ऐसा प्यार अंतिम बार 1980 में देखा गया था. आज जर्मनी पर 5-4 से जीत हासिल करके पुरुष हॉकी टीम ने 130 करोड़ से अधिक भारतीयों को गर्व का अवसर दिया है. खेलों के बड़े मंच पर 41 वर्ष बाद हॉकी के चलते अपने देश का राष्ट्र्रेगान बजने पर कैसा लगता है,
ये 1980 में नौसिखिए रहे उन प्लेयर्स से पूछिए जो हर टीम की धज्जियां उड़ाते चले जा रहे थे. उनमें से कई के पास तो अधिक अंतरराष्ट्रीय अनुभव नहीं था. भाष्क रन, जफर इकबाल, मर्विन फर्नांडिज, एमएम सोमैया और बीर बहादुर छेत्री विदेशी टीम के खिलाफ खेले थे. भाष्क रन को मालूम था कि उनकी टीम को तगड़े मोटिवेशन की जरूरत पड़ेगी. जो तरीका निकाला, वो भी किसी विजेता से कम नहीं था.
बेंगलुरु में प्री-ओलंपिक कैम्प लगा था. भाष्कजरण की टीम के सामने मौजूद थे फील्ड मार्शल सैम मॉनेकशॉ. वो एक बार नहीं, दो-दो बार भारत की उस हॉकी टीम से रूबरू हुए. उन्होंने लड़कों में ऐसा जोश भरा कि 1964 से चला आ रहा गोल्डं मेडल का सूखा खत्म हुआ. टूर्नामेंट में सिर्फ छह टीमें खेल रही थीं. सबको एक-दूसरे से खेलना था.
पहला मैच तंजानिया जैसी कमजोर टीम से खेल रही थी. 18-0 से कूट दिया. पोलैंड और स्पेथन के साथ खेले गए मैच 2-2 से बराबरी पर छूटे. स्पेषन के खिलाफ मैच टर्निंग पॉइंट साबित हुए. जिस तरह से टीम ने तब की यूरोपियन विजेता के खिलाफ मैच ड्रॉ कराया, उससे भरोसा जग गया. सेमीफाइनल में पहुंचने के लिए भारत ने क्यूयबा को 13-0 से हराया. सोवियत यूनियन से सेमीफाइनल में मैच था. टीम ने अपनी रणनीति बदली.
सेमीफाइनल में टीम ने इनडायरेक्टथ पेनल्टी कॉर्नर्स के लिए जाने का फैसला लिया. सारे वीडियोज देखे गए. अपने घर में सोवियत यूनियन को मात देने की चुनौती थी. टीम का बदला हुआ अप्रोच काम आ गया और 4-2 से जीतकर हम फाइनल में पहुंच गए. फाइनल ने दर्शकों को नाखून कुतरने पर मजबूर किया. स्पेन से मैच था,
सुरिंदर सिंह सोढ़ी ने हाफ समय से पहले ही 2 गोल करके लीड दिलाई. सेकेंड हॉफ के आगाज में एमके कौशिक ने गोल कर लीड और मजबूत दी पर यहीं से मैच रुख बदलने लगा. दो मिनट के भीतर जुआन अमात ने दो गोल करके स्कोरलाइन को 2-3 किया. मैच फंसा हुआ था. यहीं पर मोहम्मद शाहिद को सेंटर-फारवर्ड खिलाने की तरकीब काम आ गयी.
भाष्करण ने शाहिद को समझा दिया था कि अधिक पीछे नहीं जाना है. शाहिद ने 58वें मिनट में गोल किया जो निर्णायक साबित हुआ. स्पेन ने 65वें मिनट में एक और गोल दागा, अमात की हैट्रिक हुई. स्पेन ने आखिरी सेकेंड्स में दो पेनल्टी कॉर्नर मिले, मगर भारत ने पकड़ ढीली नहीं होने दी. 1980 के उस मैच की कहानी पूरी हुई. आज के मैच की करते हैं.
कांस्य पदक के लिए जर्मनी से रोमांचक मैच हुआ. एक समय टीम 1-3 से पीछे थी, फिर 7 मिनटों के भीतर 4 गोल दाग कर कहानी ही पलट दी. वैसा ही अंदाज रहा जैसा 1980 में था, कभी हार ना मानने वाला. नतीजा जीत हमारी हुई. ओलंपिक 2021 में ये भारत का चौथा मेडल है. हॉकी के अलावा वेटलिफ्टिंग, बैडमिंटन और मुक्केबाजी में मेडल जीते हैं.