राहुल गांधी के साथ चर्चा के बाद भी मुख्यमंत्री पद के शंका का समाधान नहीं
रायपुर। छत्तीसगढ़ (chhattisgarh) में मुख्यमंत्री पद (chief minister post) के लिए जारी सत्ता -संघर्ष फिलहाल थम सा गया है। दिल्ली में शुक्रवार को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल (Chief Minister Bhupesh Baghel) की राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के साथ साढ़े 3 घंटे तक हुई चर्चा के बाद भी ढाई साल -ढाई साल के मुख्यमंत्री पद की शंका का समाधान नहीं हो पाया है। अलबत्ता भूपेश बघेल जरूर आश्वस्त दिखे हैं।
उल्लेखनीय है कि पिछले कुछ माह से छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री पद के लिए प्रारंभ में उक्त कथित तौर पर तय किए गए मुख्यमंत्री के कार्यकाल को लेकर हंगामा शुरू है। कांग्रेस के उच्च सूत्रों का कहना है कि जब प्रदेश में कांग्रेसी सरकार कायम हुई तो स्वयं हाईकमान ने मुख्यमंत्री पद के लिए ढाई साल -ढाई साल का फार्मूला तय किया था। तय यह हुआ था कि प्रथम ढाई साल में भूपेश बघेल मुख्यमंत्री रहेंगे और बात के ढाई साल में टी एस सिंह देव मुख्यमंत्री पद पर आसीन होंगे।
जैसा की आशंका थी प्रथम 3 साल में भूपेश बघेल ने ना केवल पार्टी में अपनी स्वीकार्यता बढ़ाई बल्कि प्रदेश के विधायकों में भी अपनी धमक और समर्थन कायम किया। जोगी के पद चिन्हों पर चलते हुए उन्होंने अपने प्रबलतम प्रतिद्वंदी टी एस सिंह देव को लगातार उपेक्षित और कमजोर किया। राजनीतिक तौर पर शालीन और सभ्य टीएस सिंह देव कहीं ना कहीं कूटनीतिक चालों में पीछे रह गए। हालांकि पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत में उनकी बहुत बड़ी भूमिका रही। उन्होंने ना केवल प्रभावशाली घोषणा पत्र तैयार किया वरन आर्थिक दृष्टि से कमजोर कई विधायकों का चुनावी खर्च भी उठाया था।
प्रदेश में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की कार्यशैली से जनता और पार्टी के भीतर कोई बहुत अच्छा संदेश नहीं है। रेत माफिया, शराब माफिया और भ्रष्ट नौकरशाहों का गठबंधन बेहद प्रभावशाली है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल इस पर कोई अंकुश नहीं लगा पाए हैं। पूरे प्रदेश के आमजनों में इस बात की चर्चा आम है। कांग्रेस के सूत्रों का ही कहना है कि हाईकमान भी इन बातों से वाकिफ है और वह ढाई साल के फार्मूले पर काम करना चाहता है। पर दिल्ली में शुक्रवार को जिस कारण से मुख्यमंत्री ने अपने समर्थक विधायकों और पदाधिकारियों के साथ हाईकमान पर दबाव बना दिया ,उससे यह मामला टल सा गया है। राहुल गांधी से प्रियंका गांधी की उपस्थिति में साढ़े 3 घंटे तक मुख्यमंत्री से हुई चर्चा में इसका कोई समाधान नहीं निकल पाया है। अलबत्ता विजयी भाव से निकले भूपेश बघेल ने यह जानकारी दी कि और राहुल गांधी शीघ्र ही छत्तीसगढ़ का दौरा करेंगे और बस्तर से लेकर सरगुजा तक के हालातों का जायजा लेंगे।
मुख्यमंत्री पद के दूसरे दावेदार टी एस सिंह देव को अपनी रणनीति अब नए सिरे से तय करनी पड़ेगी। उन्हें यह सोचना पड़ेगा कि प्रतिद्वंदी के आक्रमक और कूटनीति का जवाब कैसा देना है। कुछ माह पहले तक पार्टी के अधिकांश विधायक उनके साथ थे और व्यक्तिगत चर्चा में मुख्यमंत्री के बारे में नकारात्मक टिप्पणियां करते रहे। आज वे भूपेश बघेल के साथ कैसे हो गए।
कांग्रेस पार्टी के हाईकमान को भी यह समझना पड़ेगा कि मुख्यमंत्री के जनाधार विहीन लोगों के समर्थन को किस प्रकार से लेना है। मुख्यमंत्री के कुछ समर्थकों को छोड़ दिया जाए तो अधिकांश का अपने क्षेत्र में कोई भी जनाधार नहीं है और ना ही वे प्रभावशाली ढंग से अपनी इमेज जनता के समक्ष बना पाए हैं। पार्टी के जिन वरिष्ठों को ढाई साल -ढाई साल का फार्मूला मालूम था वह भी यह सोचेंगे कि हाईकमान के वायदे और आश्वासन की कोई विश्वसनीयता और गरिमा समय के साथ मलिन पड़ जाती है। इससे यह भी संदेश जाता है कि कांग्रेस हाईकमान छत्रपों के आगे लगातार कमजोर हुआ है।