प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बुधवार को श्रील भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद की 125वीं जयंती पर वीडियो कांफ्रेंस के जरिये एक समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि स्वामी प्रभुपाद न केवल भगवान कृष्ण के महान भक्त थे बल्कि जाने-माने देशभक्त भी थे। प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत का योग का ज्ञान, यहां की स्थायी जीवन शैली और आयुर्वेद जैसा विज्ञान विश्वभर में फैला हुआ है। उन्होंने कहा कि हमारा यह संकल्प है कि पूरा विश्व इससे लाभान्वित हो।
हम सब जानते हैं कि प्रभुपाद स्वामी एक अलौकिक कृष्णभक्त तो थे ही, साथ ही वो एक महान भारत भक्त भी थे। उन्होंने देश के स्वतन्त्रता संग्राम में संघर्ष किया था। उन्होंने असहयोग आंदोलन के समर्थन में स्कॉटिश कॉलेज से अपना डिप्लोमा तक लेने से मना कर दिया था। आज ये सुखद संयोग है कि ऐसे महान देशभक्त का 125वां जन्मदिन एक ऐसे समय में हो रहा है जब भारत अपनी आज़ादी के 75 साल का पर्व- अमृत महोत्सव मना रहा है।
प्रधानमंत्री ने मेक इन इंडिया उत्पादों को दुनिया के कोने-कोने में पहुंचाने के लिए स्वामी प्रभुपाद के हरे कृष्ण आंदोलन की तर्ज पर आंदोलन चलाने का आह्वान किया। मैं कई बार जब आत्मनिर्भर भारत और मेक इन इंडिया के लक्ष्यों की बात करता हूं, तो मैं अपने अधिकारियों को, बिज़नसमेन को इस्कॉन के हरे कृष्णा मूवमेंट की सफलता का उदाहरण देता हूं। हम जब भी किसी दूसरे देश में जाते हैं, और वहां जब लोग ‘हरे कृष्ण’ बोलकर मिलते हैं तो हमें कितना अपनापन लगता है, कितना गौरव भी होता है। कल्पना करिए, यही अपनापन जब हमें मेक इन इंडिया प्रोडक्ट्स के लिए मिलेगा, तो हमें कैसा लगेगा! इस्कॉन से सीखकर हम इन लक्ष्यों को भी हासिल कर सकते हैं।
मानवता के हित में भारत दुनिया को कितना कुछ दे सकता है, आज इसका एक बहुत बड़ा उदाहरण है विश्वभर में फैला हुआ हमारा योग का ज्ञान। हमारी योग की परम्परा। भारत की जो सस्टेनेबल लाइफस्टाइल है, आयुर्वेद जैसे जो विज्ञान हैं, हमारा संकल्प है कि इसका लाभ पूरी दुनिया को मिले। आत्मनिर्भरता के भी जिस मंत्र की श्रील प्रभुपाद अक्सर चर्चा करते थे, उसे भारत ने अपना ध्येय बनाया है और उस दिशा में देश आगे बढ़ रहा है।
प्रधानमंत्री ने देश के विकास में भक्ति आंदोलन का उल्लेख करते हुए कहा कि भक्ति आंदोलन ने देश में एकता और समानता का भाव पैदा किया है। उन्होंने कहा कि भक्ति योग को विश्व तक ले जाने की जिम्मेदारी आई तो श्रील प्रभुपाद और इस्कॉन ने यह महान काम किया।
विद्वान इस बात का आकलन करते हैं कि अगर भक्तिकाल की सामाजिक क्रांति न होती तो भारत न जाने कहां होता, किस स्वरूप में होता। लेकिन, चैतन्य महाप्रभु जैसे संतों ने हमारे समाज को भक्ति की भावना से बांधा। सामाजिक ऊंच-नीच, अधिकार-अनाधिकार, भक्ति ने इन सबको खत्म करके शिव और जीव के बीच एक सीधा संबंध बना दिया। भक्ति की इस डोर को थामे रहने के लिए अलग-अलग कालखंड में ऋषि-महर्षि और मनीषी समाज में आते रहे। स्वामी विवेकानंद जैसे मनीषी आए, जिन्होंने वेद-वेदान्त को पश्चिम तक पहुंचाया।
प्रधानमंत्री ने कहा कि इस्कॉन ने विश्व को ज्ञान दिया कि भारत के लिए आस्था का अर्थ उत्साह, उल्लास और मानवता में आस्था है। स्वामी प्रभुपाद ने इस्कॉन की स्थापना की थी जिसे हरे कृष्ण आंदोलन के रूप में भी जाना जाता है।