केरल के सेशन जज सी जयचंद्रन ने जीती लंबी लड़ाई, सुप्रीम कोर्ट में की थी HC के सहयोगी जज बनाए जाने की मांग
केरल हाईकोर्ट (Kerala High Court) और सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में अपनी वरिष्ठता का दावा करने के लिए एक दशक के मुकदमे के बाद, कोट्टायम जिला और सेशन जज सी जयचंद्रन (Sessions Judge C Jayachandran) ने अपना मामला जीत लिया है और अब वो अपने नियुक्ति के खिलाफ रहे जजों के सहयोगी हो सकते हैं. भारत के चीफ जस्टिस एन वी रमना की अध्यक्षता वाले सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम ने पिछले हफ्ते जयचंद्रन के साथ चार अन्य न्यायिक अधिकारियों को केरल हाई कोर्ट का जज नियुक्त करने की सिफारिश की थी.
मालूम हो कि एक बार कॉलेजियम द्वारा जजों की सिफारिश किए जाने पर, सरकार या तो नियुक्ति कर सकती है, या फाइल को पुनर्विचार के लिए कॉलेजियम को वापस कर सकती है. कॉलेजियम तब अपनी सिफारिशों को दोहराने या वापस लेने का विकल्प चुन सकता है.
दरअसल जयचंद्रन केरल हाईकोर्ट में सेशन जज हैं और उन्होंने अपनी वरिष्ठता को देखते हुए ट्रांसफर के जरिए जजों के सहयोगी बनाए जाने की मांग करते हुए अदालत का रुख किया था. हाई कोर्ट के नियम जिला जज संवर्ग में सीधी भर्ती के लिए एक तिहाई कोटा और सेवारत उम्मीदवारों के लिए 50 प्रतिशत कोटा निर्धारित करते हैं. जयचंद्रन का मामला यह था कि जब सेवाकालीन उम्मीदवारों के लिए कोटा पार हो जाता है, तो उन्हें सीधे भर्ती किए गए लोगों पर वरिष्ठता नहीं दी जानी चाहिए, भले ही उन्होंने पहले कार्यभार संभाला हो.
वहीं यह मामला हाई कोर्ट की प्रशासनिक समिति से एकल पीठ और फिर केरल हाई कोर्ट की खंडपीठ में चला गया. जबकि एकल जज ने उनके पक्ष में फैसला सुनाया, डिवीजन बेंच ने जयचंद्रन के खिलाफ, और उनके स्थानांतरित सहयोगियों मोहम्मद वसीम और सोफी थॉमस के पक्ष में फैसला सुनाया. वहीं अपने खिलाफ फैसला सुनाए जाने के बाद जयचंद्रन ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया, और जज यूयू ललित की अगुवाई वाली तीन-जजों की खंडपीठ, जो तीन-न्यायाधीशों के कॉलेजियम के सदस्य भी हैं, जो उम्मीदवारों को हाई कोर्ट के न्यायाधीशों के रूप में नियुक्त करने की सिफारिश करते हुए उनके पक्ष में फैसला सुनाया और उन्हें काल्पनिक वरिष्ठता प्रदान की.