नई दिल्ली। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो यानी एनसीआरबी की ओर से जारी ताजा आंकड़ों के मुताबिक साल 2020 में बाल विवाह के मामलों में साल 2019 की तुलना में करीब 50 फीसद का इजाफा दर्ज किया गया है। यही नहीं साल 2020 में मानव तस्करी रोधी इकाइयों की ओर से मानव तस्करी के करीब 1,714 केस दर्ज किए गए हैं। समाचार एजेंसी पीटीआइ की रिपोर्ट के मुताबिक मानव तस्करी के इन मामलों में देह व्यापार के लिए शोषण करना, जबरन मजदूरी करना और घरेलू गुलाम बनाकर रखना जैसे अपराध शामिल हैं।
एनसीआरबी की ओर से साझा किए गए आंकड़ों के मुताबिक साल 2020 बाल विवाह निषेध अधिनियम के तहत कुल 785 मामले दर्ज किए गए। ऐसे मामलों में कर्नाटक पहले स्थान पर है। कर्नाटक में बाल विवाह के सबसे अधिक 184 मामले दर्ज किए गए। असम दूसरे स्थान पर रहा। असम में 138, पश्चिम बंगाल में 98, तमिलनाडु में 77 और तेलंगाना में 62 केस दर्ज किए गए। मालूम हो कि साल 2019 में बाल विवाह निषेध अधिनियम के तहत कुल 523 मामले दर्ज किए गए थे। साल 2018 में ऐसे 501 के दर्ज किए गए।
भारतीय कानून के मुताबिक 18 साल से कम उम्र की युवती या 21 वर्ष से कम उम्र के युवा की शादी कराना बाल विवाह निषेध अधिनियम के तहत अपराध के दायरे में आता है। विशेषज्ञों का कहना है कि बाल विवाह के मामलों में बढ़ोतरी के पीछे ज्यादा केस दर्ज होना भी हो सकता है। किशोर लड़कियों के प्रेम में पड़कर भाग जाने की घटनाओं के चलते भी बाल विवाह के मामलों में बढ़ोतरी देखी जा सकती है। यही नहीं ऐसे मामलों की ज्यादा रिपोर्टिंग भी एक वजह हो सकती है।
राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक साल 2020 में मानव तस्करी के लगभग 1,714 मामले दर्ज किए गए। महाराष्ट्र और तेलंगाना में मानव तस्करी के सर्वाधिक 184-184 केस दर्ज किए गए। ऐसे आपराधिक मामलों में आंध्र प्रदेश तीसरे स्थान पर रहा। आंध्र प्रदेश में 171, केरल में 166, झारखंड में 140 और राजस्थान में 128 मामले दर्ज किए गए। एनसीआर के आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि मानव तस्करी के मामलों में दोषसिद्धि की दर महज 10.6 फीसद है।