खुली जो मुट्ठी तो चमके सितारे
जबसे सरकार ने घोषणा की है कि पैरा खिलाडिय़ों को भी सामान्य खिलाडिय़ों की तरह मान-सम्मान और पैसा दिया जाएगा, तबसे वे खेलों को लेकर ज्यादा गंभीर हुए। पैरा खिलाडिय़ों को समझ में आ गया कि उन्हें भी वही रुतबा हासिल होगा जो सामान्य खिलाडिय़ों को होगा। बैडमिंटन ने भारत की पदक तालिका में दो स्वर्ण, एक रजत और एक कांस्य का इजाफा किया। साल 2018 में ही तय हो गया था कि टोक्यो पैरालम्पिक में बैडमिंटन शामिल होगा। तभी से पैरा बैडमिंटन के कोच गौरव खन्ना ने तैयारियां शुरू कर दी थीं।
डा. सुधा बाजपेयी : हार फिल्म का एक गीत है ‘मेरी ही मु_ी में है आकाश सारा, जब भी खुलेगी चमकेगा तारा…।’ गीत की इन लाइनों को इस बार देश के पैरा खिलाडिय़ों ने चरित्रार्थ कर दिया है। मुख्यधारा के कटे इन खिलाडिय़ों ने कोरोना काल में बड़ी खामोशी से पैरालम्पिक में पदक जीतने के अपने सपनों को पूरा करने के लिए पसीना बहाते रहे। इनके पास न सामान्य खिलाडिय़ों जैसी सुविधाएं थीं ना ही साधन। पर इन्होंने टोक्यो पैरालम्पिक में कमाल कर दिया। उन्होंने इतने पदक जीते जितने इससे पहले चार पैरालम्पिक में मिलाकर नहीं जीते थे। भारतीय पैरा खिलाडिय़ों ने इस बार पांच स्वर्ण, आठ रजत और छह कांस्य यानी 19 पदक जीते। जबकि पिछले चार ओलंपिक में 12 पदक जीते हैं। पैरालम्पिक के इतिहास में भारत का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन रियो 2016 में रहा था। तब उसने दो स्वर्ण समेत चार पदक जीते थे। कोरोना संक्रमण जहां महामारी लेकर आया वहीं तमाम लोग ऐसे हैं जिन्होंने अपने को बचाते हुए खुद को खूब तराशा। लॉकडाउन में जहां पूरी दुनिया ठप हो गई थी वहीं खिलाडिय़ों ने इसका खूब फायदा उठाया।
पिछले साल मार्च से ही खेलों के राष्ट्रीय कैम्प बंद हो गए थे। पैरा खिलाडिय़ों की स्थिति और ज्यादा खराब थी पर खिलाडिय़ों ने कोरोना लॉकाउन को अवसर मानते हुए खूब अभ्यास किया। उनका ध्यान सिर्फ अपने खेल के अभ्यास पर ही रहा। पैरा बैडमिंटन खिलाड़ी तो कोरोना काल में भी लखनऊ में किराये का घर लेकर रहे और वहीं एक अकादमी में पसीना बहाते रहे। इसका फायदा उन्हें पैरालम्पिक में मिला। पिछले तीन-चार वर्ष में दिव्यांगजनों में खेलों को लेकर रुचि बढ़ी है। यही कारण रहा कि पैरा खिलाडिय़ों ने खेलों को गंभीरता से लिया। पैरालम्पिक में पदक का लक्ष्य मानकर शेड्यूल के तहत ट्रेनिंग की। पहली बार पैरा खिलाडिय़ों को ध्यान में रख सरकार ने कार्यक्रम तैयार किया। भारतीय खेल प्राधिकरण ने भी खूब मदद की। पैरा खिलाडिय़ों की ट्रेनिंग का खास ख्याल रखा। उन्हें गुणवत्ता वाली खुराक और अन्य सुविधाएं मुहैया करायीं। पैरालम्पिक में पहली बार बैडमिंटन को शामिल किया गया था। बैडमिंटन ने भारत की पदक तालिका में दो स्वर्ण, एक रजत और एक कांस्य का इजाफा किया। साल 2018 में ही तय हो गया था कि टोक्यो पैरालम्पिक में बैडमिंटन शामिल होगा। तभी से पैरा बैडमिंटन के कोच गौरव खन्ना ने तैयारियां शुरू कर दी थीं। उन्होंने 15-20 खिलाडिय़ों का एक पूल बनाया। इन्हें पैरालम्पिक को ध्यान में रखते हुए ट्रेनिंग दी। खिलाडिय़ों को एक ही जगह रखा। इससे खिलाडिय़ों में पदक जीतने की लालसा पैदा हुई। बैडमिंटन में स्वर्ण पदक जीतने वाले प्रमोद भगत ने पैरालम्पिक में जाने से पहले कहा था कि जब बात पैरा एथलीट या खिलाडिय़ों की हो, तो बात हौसलों के भी ऊपर की है। बात सिर्फ चुनौतियों का सामना करने की नहीं है। बात मेहनत करने की भी नहीं है। ये बात है एक बहुत बड़ी लड़ाई की। ऐसी लड़ाई जो पहले ख़ुद से लडक़र जीतनी होती है, उसके बाद में समाज के विकलांग रवैए के खिलाफ और अंत में खेल के मैदान पर। टोक्यो पैरालम्पिक में भारत पदक तालिका में 24वें स्थान पर रहा जो उसका अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है। भारत ने इस बार एथलेटिक्स में आठ, निशानेबाजी में पांच, बैडमिंटन में चार, टेबल टेनिस में एक और तीरंदाजी में एक पदक जीते। इसके साथ ही भारत के खाते में पांच स्वर्ण, आठ रजत और छह कांस्य आए।
पैरालम्पिक में रजत पदक जीतने वाले
पहले आईएएस अधिकारी हैं सुहास एलवाई
पिछले साल जब कोरोना संक्रमण अपने चरम पर था तब युवा आईएएस अधिकारी सुहास एलवाई को नोएडा का जिलाधिकारी बनाया गया था। उन्होंने दिन-रात एक कर कोरोना संक्रमण काल में बखूबी प्रशासन संभाला। इसी में से कुछ समय निकालकर वह बैडमिंटन की जमकर ट्रेनिंग करते रहे। नतीजा यह रहा है कि उन्होंने टोक्यो पैरालम्पिक में बैडमिंटन एकल में शानदार प्रदर्शन करते हुए रजत पदक जीता। पैरालम्पिक में पदक जीते वाले वह देश के पहले आईएएस अधिकारी हैं।
कोरोना संक्रमण के दौरान सुहास एलवाई ने पैरालम्पिक खेलने के अपने सपने को अपनी ड्यूटी पर न्यौछावर कर दिया था। पर उन्होंने पिछले साल अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जो प्रदर्शन किया उसके हिसाब से अंतरराष्ट्रीय पैरालम्पिक कमेटी ने उन्हें पैरालम्पिक का टिकट दिया। टिकट पाकर सुहास को लगा कि वह अब पदक जीत सकते हैं। उन्होंने नोएडा में ही रहकर तैयारी शुरू की।
सुहास एलएल-3 वर्ग के एकल में हिस्सा लिया। उन्होंने अपने अंतिम टूर्नामेंट में पिछले साल ब्राजील ओपन और पेरू ओपन में स्वर्ण जीते थे। उन्होंने हांगझोऊ (चीन) में 2019 में आयोजित चाइना पैरा बैडमिंटन इंटरनेशनल टूर्नामेंट में एसएल थ्री-एसएल फोर में रजत पदक और कांस्य पदक जीता था। वह जकार्ता में 2018 में हुए पैरा एशियन गेम्स में कांस्य पदक विजेता टीम के भी सदस्य थे।
मेरे पदक ने दिखाया कि खेल और पढ़ाई साथ हो सकती है : सुहास
पैरालम्पिक रजत पदक विजेता बैडमिंटन खिलाड़ी और नोएडा के जिलाधिकारी सुहास यथिराज का कहना है कि यह गलतफहमी है कि खेल और पढ़ाई साथ में नहीं हो सकती। अड़तीस साल के सुहास के एक पैर के टखने में जन्मजात विकार है। 2016 में इस खेल में आने के बाद उन्होंने हाल में टोक्यो पैरालम्पिक में पदार्पण करते हुए रजत पदक हासिल किया। अपनी इस उपलब्धि के लिये उन्होंने अपने दिवंगत पिता की प्रेरणादायी भूमिका को श्रेय दिया।
इस नौकरशाह ने यूपीएससी परीक्षा पास करने के बाद कारपोरेट नौकरी छोड़ दी थी। उन्होंने कहा कि वह नौकरी और अपने जुनून के बीच सही संतुलन बनाने के आदी हैं। उन्होंने कहा कि बचपन से ही मैं दो घंटे खेलता था, खेल हमेशा से पढ़ाई के साथ मेरे जीवन का हिस्सा रहा है। समाज में गलतफहमी ही है कि खेल और पढ़ाई साथ में नहीं हो सकती।
कर्नाटक के हसन में जन्में सुहास ने कहा, ‘‘मैं माता पिता और समाज को बताना चाहूंगा कि यह तर्क भूल जाइये। आपका बच्चा दोनों में अच्छा कर सकता। मैंने अपना पहला पेशेवर टूर्नामेंट खेला था जो बीजिंग में एशियाई चैम्पियनशिप थी जिसमें मुझे स्वर्ण पदक मिला था। मुझे लगता है कि वह पेशेवर बैडमिंटन के हिसाब से मेरे लिये टर्निंग प्वाइंट था।’’
आजमगढ़, प्रयागराज और हाथरथ के जिलाधिकारी रह चुके सुहास ने अपने दिवंगत पिता यथिराज एल के को अपनी सफलता का श्रेय दिया और कहा कि उन्हें खेलते हुए देखकर ही वह बैडमिंटन खेलने के लिये प्रेरित हुए। उनके पिता भी एक सरकारी अधिकारी थे। सुहास ने कहा, ‘‘मेरा विकार जन्मजात है। जब मैं बच्चा था तो इसे ठीक करने के लिये मेरी सर्जरी भी हुई थी। बचपन में हम अच्छा या बुरा समझने के लिये परिपक्व नहीं होते।’’
उन्होंने कहा, ‘‘इसलिये जब लोग बात करते तो आप बहुत संवेदनशील होते हो, आपको खुद पर भरोसा नहीं होता कि आप जिंदगी में क्या हासिल कर सकते हो। लेकिन यहीं मेरे पिता की भूमिका अहम रही, उन्होंने मुझमें इतना आत्मविश्वास भर दिया कि मैं क्या नहीं कर सकता। इसलिये बचपन से ही मैं सक्षम खिलाडिय़ों के साथ प्रतिस्पर्धा करता था।’’
उन्होंने कहा कि बचपन से ही वह बैडमिंटन खेलना चाहते थे। उन्होंने कहा, ‘‘दक्षिण भारत में बॉल बैडमिंटन खेला जाता है, मेरे पिता भी यही खेलते थे और मैं इससे आकर्षित होता था।’’ इंजीनियरिंग कर चुके सुहास पैरालम्पिक पदक जीतने वाले प्रथम आईएएस अधिकारी बनकर इतिहास रचा। उन्हें 30 मार्च 2020 को गौतम बुद्ध नगर का जिलाधिकारी नियुक्त किया गया और उन्होंने कोविड-19 महामारी प्रबंधन में काफी अहम भूमिका निभायी।