यहां विराजती हैं बिना सिर वाली माता, अंग्रेजों से जुड़ा है दिलचस्प किस्सा
Navratri 2021: आज से नवरात्रि शुरू हो रही हैं. मंदिरों में सुबह से ही भीड़ है. मंदिरों में श्रद्धालु उमड़ रहे हैं. इस मौके पर हम एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसका नवरात्रि में बेहद महत्व है. ये मंदिर अपने आप में अनोखा है और इसकी मान्यता भी लोगों में बहुत है. इस ऐतिहासिक मंदिर से अंग्रेजों से जुड़ा एक वाकया भी है, जो बेहद दिलचस्प है.
ये मंदिर उत्तर प्रदेश के झांसी (Jhansi) शहर में स्थित है. ख़ास बात ये है कि इस मंदिर जो मां काली विराजी हैं, वो बिना सिर वाली हैं. मां काली की प्रतिमा का सिर नहीं है. बिना सिर वालीं मां काली की पूजा अर्चना करने के लिए यहां खूब भीड़ लगती है. नवरात्रि में यहां पूजा अर्चना का विशेष महत्व है.
मां काली के प्रति लोगों में विशेष श्रद्धा है. झांसी के खाती बाबा में नीम वाली छिन्नमस्ता माता के नाम से ये मंदिर मशहूर है. यहां के पुजारी बताते हैं कि ऐसा नहीं है कि जानबूझकर बिना सिर वाली माता की प्रतिमा लगाई गई हो. ये प्रतिमा कई दशक पुरानी है. शुरू में कई बार कोशिश की गई कि प्रतिमा पूरी की जाए, लेकिन ऐसा संभव नहीं हुआ. वह कहते हैं कि जितने बार भी प्रतिमा का सिर स्थाई रूप से लगाने की कोशिश की गई, लेकिन माता ने इसे स्वीकार ही नहीं किया. फिर श्रृंगार के लिए मोम का सिर लगाया गया तो आश्चर्यजनक रूप से मां काली ने इसे स्वीकार कर लिया. इसके बाद से हमेशा मोम का सिर ही लगाया जाता रहा है. कई मौकों पर प्रतिमा बिना सिर के भी रहती है.
बुजुर्ग बताते हैं कि ये मंदिर तब अस्तित्व में आया था, जब देश अंग्रेजों के अधीन था. अंग्रेज़ झांसी में रेलवे स्टेशन बना रहे थे. नगर इलाके में जिसे रेलवे से जुड़ी संपत्ति में शामिल किया गया था, में एक मैदान में भवन बनाया जाना था. यहां एक नीमा का पेड़ था, जिसे कटवा दिया गया. और दीवार बनवाई गई, लेकिन ये दीवार गिर गई. दीवार कई बार गिरी, इससे परेशान अंग्रेज प्रशासन ने इस जगह पर खुदाई कराई. खुदाई में यहां एक प्रतिमा मिली जिसका सिर नहीं था. ये प्रतिमा मां काली की थी. इस मूर्ती को लोगों ने उसी मैदान के पास स्थापित कर दिया. धीरे-धीरे यहां मंदिर स्थापित हो गया.
विशेष बात ये है कि नवरात्रि के दिनों में काली मां के धड़ से एक अस्थायी सिर जोड़ दिया जाता है. यह सिर विषेश रूप से काली मां के लिये मोम का बनवाया गया है. एक निर्धारित समय पर मोम का यह सिर उनके धड़ से अलग कर दिया जाता है. इसके बाद भी पूजा अर्चना करने वाले बिना सिर वाली काली मां की ही पूजा करते हैं.