विटामिन डी हमारे शरीर की कार्यप्रणाली को सुचारू रूप से चलाने में अहम भूमिका निभाता है। एक रिसर्च में भारत में करीब 80 फीसदी लोगों में विटामिन डी की कमी पाई गई। सबसे बड़ी बात यह थी कि इनमें से अधिकतर लोगों को पता ही नहीं था कि उन्हें यह कमी है भी। विटामिन डी हड्डियों की सेहत के लिए बेहद जरूरी है। यह शरीर की केल्शियम अवशोषित करने में मदद करता है। विटामिन डी की कमी से कैंसर, उच्च रक्तचाप, दिल संबंधी बीमारियां, अस्थमा, टीबी, मल्टीपल स्क्लेरोसिस जैसी बीमारियां हो सकती हैं…
कहां से मिलेगा- सूर्य की रोशनी में केवल 10 मिनट खड़े रहने पर ही पर्याप्त मात्रा में विटामिन डी मिल जाता है। विटामिन डी अंडा, मशरूम, चीज, मछली, कॉड लिवर और फोर्टीफाइड दूध में मिलता है। विटामिन डी न मिलने का एक बहुत बड़ा कारण घर या दफ्तर में अंदर रहना और संस्क्रीन का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल भी है।
कैसे पहचानें कमी है-विटामिन डी की कमी के लक्षण कुछ ऐसे होते हैं कि ज्यादातर लोग इन्हें या तो हल्के में लेते हैं या फिर दूसरी बीमारियों के लक्षण समझ लेते हैं। जोड़ों या पीठ में दर्द, हड्डियों में दर्द, थकान, डिप्रेशन आदि ऐसे लक्षण हैं, जिनके होने पर आपको विटामिन डी का टेस्ट कराना चाहिए। इसके लिए 25(ओएच) डी टेस्ट किया जाता है। खून में मौजूद 25-हाइड्रॉक्सी विटामिन डी शरीर में विटामिन डी की मात्रा को बताता है। हाल में हुए शोध साबित करते हैं कि विटामिन डी की प्रति एमएल 30-40 नेनोग्राम की मात्रा ही शरीर को स्वस्थ रखने के लिए पर्याप्त है। इसकी मात्रा 12 नेनोग्राम प्रति एमएल से कम होने और 50 नेनोग्राम प्रति एमएल से ज्यादा होने पर सेहत संबंधी परेशानियां हो सकती हैं। हालांकि विटामिन डी की कमी का पता थोड़ी देर से लगता है, लेकिन इसके सप्लीमेंट्स लेने से सुधार भी जल्द आ जाता है।
इन वजहों से हो जाती है विटामिन डी की कमी…सूरज की रोशनी कम मिलना- सूरज की रोशनी से बचने के लिए संस्क्रीन लगाने की सलाह दी जाती है। यह सही भी है कि ज्यादा धूप से एजिंग, स्किन कैंसर, सनबर्न जैसी समस्याएं पैदा हो जाती हैं, लेकिन संस्क्रीन के जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल से त्वचा सूरज की रोशनी से पोषक तत्व अवशोषित नहीं कर पाती।उम्र- विभिन्न शोध साबित कर चुके हैं कि 65 साल से अधिक उम्र के लोगों में धूप में नियमित रूप से बैठने के बावजूद युवाओं की तुलना में 75 फीसदी कम विटामिन डी बनता है। विटामिन डी की कमी डिमेंशिया और सेहत में गिरावट का कारण बनती है।काला रंग- त्वचा का रंग निर्धारित करने वाला पिगमेंट मिलानिन अधिक होना भी विटामिन डी की कमी कारण बनता है। मिलानिन सूरज की रोशनी से त्वचा में विटामिन डी बनने की प्रक्रिया को रोकता है। इसलिए त्वचा का रंग जितना गहरा होगा, विटामिन डी उतना ही कम बनेगा और फिर इसकी कमी भी होती चली जाएगी।मोटापा-बहुत ज्यादा वजन भी आपको विटामिन डी की कमी की ओर ले जाता है। अगर है कमी तोविटामिन डी की कमी को केवल सूरज की रोशनी और खाने-पीने की चीजों से पूरा नहीं किया जा सकता। इसके लिए विटामिन डी सप्लीमेंट्स लेने होते हैं। ये सप्लीमेंट्स कमी होने पर खासकर गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली महिलाओं, छह साल से पांच साल तक बच्चों और 65 साल से अधिक उम्र के लोगों के लिए बेहद जरूरी है। ज्यादातर सप्लीमेंट्स ऐसे होते हैं, जिन्हें हफ्ते में एक बार ही लेना होता है।
कुछ बीमारियां- कुछ बीमारियां जैसे क्रोहन्स डिजीज, कोलिएक डिजीज, पाचन तंत्र में कोई गड़बड़ी होने से भी खाने की चीजों में मौजूद विटामिन डी अवशोषित नहीं हो पाता। इसी तरह किडनी संबंधी बीमारियों में भी विटामिन डी का अवशोषण और इस्तेमाल मुश्किल हो जाता है।