सरसों तेल की उत्पादन लागत 203 रुपये प्रति किलो बैठ रही है, यानी अभी और भड़केगी महंगाई
नई दिल्ली: जयपुर में सरसों के भाव 150 रुपये मजबूत होने से सरसों तेल-तिलहन में सुधार आया। शम्साबाद में सरसों के दाम 9,350 रुपये क्विन्टल पर पूर्ववत पर है। दिल्ली मंडी में सरसों 8,920 से 8,950 (42 प्रतिशत कंडीशन का भाव) रुपये चल रहा है। मंडी सूत्रों ने कहा कि सलोनी में सरसों दाना की खरीद लागत अधिभार सहित 93.50 रुपये किलो के लगभग बैठती है। इसके पेराई की लागत 2.5 रुपये किलो बैठती है।
एक क्विन्टल सरसों में 62 किलो खली के अलावा लगभग 36.5 किलो तेल निकलता है। इसके लगभग 2,000 रुपये क्विन्टल के खली का भाव हटा दिया जाये तो प्रति किलो सरसों तेल की लागत 192-193 रुपये किलो बैठती है और उसके ऊपर जीएसटी शुल्क अलग से है। कुल मिलाकर सरसों तेल की उत्पादन लागत 202 से 203 रुपये किलो बैठता है।
आंकलन के मुताबित देश में कुल जरूरत के मुकाबले 54 फीसदी से भी ज्यादा खाद्य तेलों का आयात किया जाता है। मौजूदा समय में दुनियाभर में बढ़ती खपत के चलते इसके दाम बढ़े हैं। वैश्विक अनुमान के मुताबिक फरवरी 2020 के मुकाबले जुलाई 2021 तक इनके दाम 60 फीसदी के करीब बढ़ चुके हैं। सितंबर महीने में भी इसकी महंगाई में 30 फीसदी का इजाफा देखने को मिला है। अक्तूबरमें त्योहारी सीजन की मांग बढ़ने से दाम में ज्यादा नरमी के आसार कम ही हैं।
पाम ऑयल निर्यात करने वाले मलेशिया और इंडोनेशिया जैसे देशों में लेबर की कमी के चलते भी उत्पादन प्रभावित हो रहा है। ऐसे में सरकार की तरफ से ड्यूटी घटाने का प्रयास भी नाकाफी लग रहा है। केंद्र सरकार ने 13 अक्तूबर को पाम, सोयाबीन और सूरजमुखी के तेल की कच्ची किस्मों पर मार्च 2022 तक के लिए बेसिक कस्टम ड्यूटी खत्म कर दी थी।
सूत्रों ने कहा कि आत्मनिर्भर होने के लिए शुल्क कम ज्यादा करने के बजाय तिलहन उत्पादन बढ़ाना ही एकमात्र विकल्प हो सकता है। उन्होंने कहा कि सरकार को शुल्क कम-ज्यादा करने के बजाय अगर गरीब जनता को सही में राहत ही देनी है, तो उन्हें तेल आयात कर सीधे राशन दुकानों के माध्यम से उपलब्ध कराना चाहिये क्योंकि आयात शुल्क में जितनी कटौती की गई होती है, खुदरा कारोबार में भाव पहले की तरह बनाये रखे जाते हैं और कोई विशेष लाभ उपभोक्ताओं को नहीं मिलता।