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अरब देशों में एक नया धर्म दे रहा दस्तक, इजरायल और अमेरिका हैं इसके पीछे?

नई दिल्ली: मिडिल ईस्ट में एक नए धर्म को लेकर लगातार चर्चाएं हो रही हैं जिसका कोई धार्मिक ग्रंथ नहीं है। इस धर्म को मौजूदा वक्त में कोई मानते भी नहीं हैं। इस धर्म के अस्तित्व को लेकर अब तक कोई आधिकारिक घोषणा भी नहीं गई है। रिपोर्ट्स में इसका नाम अब्राहमिक बताया जा रहा है।

अब्राहमिक धर्म क्या है?
नए धर्म का नाम अब्राहमिक है। कई लोग इसे एक धार्मिक प्रोजेक्ट की तरह देखते हैं। यह ईसाई, इस्लाम और यहूदी धर्म का मिश्रण है। इसका नाम पैगंबर अब्राहम के नाम पर रखा गया है। इस धर्म में इस्लाम, ईसाई और यहूदी धर्म की सामान्य बातें शामिल हैं।

अब्राहमिक धर्म की चर्चा कहां से शुरू हुई?
अरब देशों में अब्राहमिक धर्म की बात पिछले एक साल से जारी है और इसे लेकर कई तरह के विवाद भी शुरू हो गए हैं। अब्राहमिक धर्म के जरिए एक ऐसे धर्म का निर्माण करने का प्लान है जिसका कोई ग्रंथ न हो, न कोई फॉलोअर हो और न ही कोई अस्तित्व हो। इस धार्मिक प्रोजेक्ट का मकसद तीनों धर्मों के आपसी मतभेदों को दूर कर दुनिया में शांति स्थापित करने का है।

क्या ये कोई राजनीतिक चाल है?
कई लोग अब्राहमिक धर्म के विचार के विरोध में हैं। उनका मानना है कि यह धोखे और शोषण की आड़ में एक राजनीतिक चाल है। इस नए धर्म का मुख्य मकसद अरब देशों के साथ इजरायल के संबंधों को बढ़ाना है। बता दें कि ‘अब्राहमिया’ शब्द का इस्तेमाल सितंबर 2020 में संयुक्त अरब अमीरात और बहरीन के साथ इजरायल के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर करने के साथ शुरू हुआ था।

पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप और उनके सलाहकार जेरेड कुशनर द्वारा प्रायोजित इस समझौते को ‘अब्राहमियन समझौता’ कहा जाता है। इस समझौते को लेकर अमेरिकी विदेश विभाग का कहना है कि अमेरिका तीन अब्राहमिक धर्मों और सभी मानवता के बीच शांति को आगे बढ़ाने के लिए और धार्मिक संवाद का समर्थन करने की कोशिशों को बढ़ावा देता है।

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