गरीब छात्रा के IIT में दाखिले के लिए अपनी जेब से भरी फीस; अलग से IIT सीट की व्यवस्था करने के निर्देश
प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच के एक जज मेधावी दलित छात्रा की योग्यता से इतना प्रभावित कि उन्होंने छात्रा की फीस के 15 हजार रुपये अपनी जेब से भर दिए। संस्कृति रंजन नाम की एक दलित स्टूडेंट अंतिम तिथि तक IIT BHU में एडमिशन लेने के लिए 15 हज़ार रुपये की फीस नहीं जमा कर पाई थी, जिसके चलते उसे IIT BHU में प्रवेश नहीं मिल पाया था। स्टूडेंट ने हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में याचिका दाखिल कर मांग की थी कि उसे फीस की व्यवस्था करने के लिए कुछ और वक़्त दिया जाए। मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने ज्वाइंट सीट एलोकेशन अथारिटी और बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी को निर्देश दिया कि छात्रा को तीन दिन के भीतर IIT में दाखिला दिया जाए। कोर्ट ने कहा है कि अगर कोई सीट खाली न हो तो उसके लिए अलग से सीट की व्यवस्था की जाए।
जानकारी के अनुसार, शुरू से ही मेधावी छात्रा रही संस्कृति रंजन ने JEE एडवांस और मेंस की परीक्षा आरक्षित वर्ग में पास की थी, इसके उपरांत उस IIT BHU में गणित और कंप्यूटर से जुड़े 5 वर्ष के इंटीग्रेटेड कोर्स में सीट आवंटित की गई, लेकिन संस्कृति प्रवेश के लिए जरूरी 15 हज़ार रुपये की फीस तय वक़्त में व्यवस्था नहीं कर पाई, इसके उपरांत उसने फीस की व्यवस्था के लिए कुछ और वक़्त की मांग करते हुए याचिका दर्ज की थी। याचिका के अनुसार छात्रा के पिता की किडनी खराब है, उनका किडनी ट्रांसप्लांट किया जाना था। छात्रा के पिता का एक सप्ताह में दो बार डायलिसिस भी होता है। ऐसे में पिता की बीमारी और कोविड-19 के चलते संस्कृति के परिवार की आर्थिक हालत बिगड़ी और संस्कृति अपनी फीस नहीं दे पा रही थी।
छात्रा के अनुसार, उसने ज्वाइंट सीट एलोकेशन अथॉरिटी से थोड़ा और वक़्त मांगते हुए कई बार पत्र भी लिखा, लेकिन कोई उत्तर नहीं मिला इसके उपरांत छात्रा ने हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में फीस से राहत की अपील करते हुए याचिका दाखिल की। इस पर जस्टिस दिनेश कुमार सिंह ने ज्वाइंट सीट एलोकेशन अथॉरिटी और IIT-BHU को निर्देश दिया कि वह स्टूडेंट को 3 दिन के भीतर एडमिशन दे और अगर सीट खाली न बची हो तो उसके लिए अलग से सीट का बंदोबस्त किया जाना चाहिए। केस की सुनवाई के लिए आने वाले सप्ताह के लिए सूचीबद्ध करने का आदेश कोर्ट में दिया है।