अच्छे लोगो के साथ ही बुरा क्यों होता है ?
आज हम आपको बताएँगे कि आखिर अच्छे लोगों के साथ हमेशा बुरा ही क्यों होता है जिसका वर्णन भागवत गीता में भगवान् कृष्ण ने विस्तार से किया है मित्रों आपने भी देखा या फिर महसूस किया होगा कि आपके आस पास धर्म कर्म और पूजा पाठ में लीन रहने वाले लोगों की जिंदगी खुशहाल नहीं होती जितने कि दुष्ट और अधर्मी लोगों कि होती है और ये सब देखकर आपके के भी मन में कभी ना कभी ये सवाल जरूर उठा होगा कि आखिर अच्छे लोगों के साथ बुरा क्यों होता है। परन्तु आज के अधिकतर जनमानस इस रहस्य के बारे में नहीं जानते जिसका सबसे बड़ा कारण है कि वे धर्मग्रंथों को सही से पढ़ते नहीं या फिर उसमे लिखी बातों पर विश्वास ही करते। आज की इस वीडियो में हम आपको बताएँगे कि आखिर अच्छे लोगों के साथ हमेशा बुरा ही क्यों होता है जिसका वर्णन भागवत गीता में भगवान् कृष्ण ने विस्तार से किया है।
धर्मग्रंथों में भागवत गीता एक ऐसा धर्म ग्रन्थ है जिसमे मनुष्य के मन में उठने वाले हर प्रश्नो का हल विस्तार से बताया गया है। भागवत गीता में वर्णित कथा के अनुसार अर्जुन के मन में जब भी कोई दुविधा उत्पन्न होती थी वो उसके समाधान के लिए श्री कृष्ण के पास पहुँच जाते थे। एक दिन कि बात है अर्जुन भगवान श्री कृष्ण के पास आये उनसे बोले हे वासुदेव मुझे एक दुविधा ने घेर रखा है और इसका समाधान आप ही बता सकते हैं। तब श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा हे धनञ्जय अपने मन की दुविधा विस्तार से बताओ तब मैं तुम्हे उसका हल बताऊंगा। तब अर्जुन बोले हे नारायण कृपया कर मुझे ये बताइये की अच्छे लोगों के साथ हमेशा बुरा ही क्यों होता है जबकी बुरे लोग हमेशा खुशहाल दिखते हैं। अर्जुन की मुख से ऐसी बातें सुनकर श्री कृष्ण मुस्कुराते हुए बोले हे पार्थ मनुष्य जैसा देखता है या फिर महसूस करता है वास्तव में वैसा कुछ नहीं होता बल्कि अज्ञानता वश वह सच्चाई को समझ नहीं पाता।
श्री कृष्ण की बातें सुनकर अर्जुन हैरान हो गए और बोले हे नारायण आप क्या कहना चाहते हैं मेरी समझ में नहीं आया। तब श्री कृष्ण बोले अब मैं तुम्हे एक कथा सुनाता हूँ जिसे जानने के बाद तुम समझ जाओगे की हरेक प्राणी को उसके कर्म के हिसाब से ही फल मिलता है अर्थात जो बुरा कर्म करता है उसे बुरा फल मिलता है और जो अच्छा कर्म करता है उसे अच्छा फल मिलता है। क्योंकि अच्छे कर्म और बुरे कर्म तो मनुष्य पर निर्भर करता है प्रकृति प्रत्येक को अपनी राह चुनने का मौका देती है अब इसका फैसला करना की वो किस राह पर चलना चाहता है ये व्यक्तिविशेष की इच्छा पर निर्भर करता है।
फिर कथा सुनाते हुए श्री कृष्ण बोले बहुत समय पहले की बात है एक नगर में दो पुरुष रहा करते थे। उनमे से एक पुरुष व्यापारी था, जिसके लिए अपने जीवन में धर्म और नीति की बहुत महत्ता थी , वो पूजा पाठ और भगवान् की भक्ति में बहुत विश्वास करता था। चाहे कुछ भी हो जाये वो रोज मंदिर जाना नहीं भूलता,न ही दान धर्म के कार्य में किसी प्रकार की कमी रखता था। कुछ भी हो जाये वह नित्य भगवान की पूजा अर्चना किया करता था। वहीं दूसरी ओर उसी नगर का दूसरा पुरुष पहले से बिलकुल ही विपरीत था वो प्रतिदिन मंदिर तो जाया करता था परन्तु पूजा पाठ के उद्देश्य से नहीं बल्कि मंदिर के बाहर से चप्पल और धन चुराने के लिए। उसे दानधर्म, न्याय – नीति किसी से भी कुछ लेना देना नहीं था।इतना ही वह मंदिर जाकर वहां की हाँ भी चुरा लिया करता था।
इसी तरह समय बीतता गया और एक दिन उस नगर में जोर की बारिश हो रही थी जिसकी वजह से उस दिन नगर के मंदिर में पंडित के अलावा कोई नहीं था। यह बात जब दूसरे पुरुष को पता चली तो उसके मन में ख्याल आया अभी सही मौका है मंदिर के धन को चुराने का और वह बारिश में ही मंदिर पहुँच गया। मंदिर पहुंचकर उस बुरे व्यक्ति ने पंडित से नजर बचाते हुए मंदिर में मौजूद सारे धन और जेवरात चुरा लिया। और बड़ी प्रसन्नता से वहां से निकल गया।उसी समय धर्म कर्म में विश्वास करने वाला व्यापारी भी मंदिर पहुंचा और भगवान के दर्शन किये परन्तु दुर्भाग्य से मंदिर का पुजारी उस भले व्यापारी को ही चोर समझ बैठे और शोर मचाने लगा। शोर सुनकर मंदिर में लोगो की भीड़ जमा हो गई और सभी लोग उस भले व्यापारी को ही चोर समझ बैठे और उसे अपमानित करने लगे। यह देखकर उस भला व्यक्ति हैरान हो गया और उसे समझ नहीं आ रहा था कि उसके साथ क्या हो रहा है। फिर वह किसी तरह लोगों से बचता हुए उस मंदिर से निकला गया लेकिन दुर्भाग्य ने उसका साथ वहीँ नहीं छोड़ा। मंदिर से बाहर निकलते ही वह एक गाडी से टकरा गया और घायल हो गया।
फिर वह व्यापारी लंगड़ाते हुए घर को जाने लगा तभी रास्ते में उसकी मुलाकात उस दुष्ट व्यक्ति से हुई जिसने मंदिर का धन चोरी किया था, वह झूमता नाचता हुआ जोर जोर से बोलते हुए जा रहा था कि आज तो मेरी स्मत ही चमक गयी एक साथ वो भी इतना सारा धन मिल गया जब व्यापारी ने उस दुष्ट आदमी की ये बात सुनी तो उसे बहुत हैरानी हुयी और क्रोधित हो उसने अपने घर जाते ही भगवान् की सारी फोटो निकालकर फेंक दी और भगवान् से नाराज होते हुए अपना जीवन व्यतीत करने लगा।
कुछ समय पश्चात दोनों ही व्यक्तियों की मृत्यु हो गयी। और दोनों यमराज की सभा में पहुंचे। उस व्यापारी ने अपने बगल में उस दुष्ट व्यक्ति को खड़ा देख क्रोधित स्वर में यमराज से पूछ ही लिया कि मैं तो हमेशा अच्छे कर्म करता था पूजा पाठ दान धर्म में विश्वास रखता था जिसके बदले मुझे पुरे जीवन भर सिर्फ अपमान और दर्द ही मिला और इस अधर्म करने वाले पापी व्यक्ति को नोटों से भरी पोटली। आखिर क्यों ? इस पर यमराज ने उस व्यापारी को बताया कि पुत्र तुम गलत सोच रहे हो – जिस दिन तुम्हे गाडी से टक्कर लगी थी वास्तव में उस दिन तुम्हारे जीवन का आखिरी दिन था परन्तु तुम्हारे किये गए अच्छे कर्मो के कारण ही तुम्हारी मृत्यु एक छोटी सी चोट में परिवर्तित हो गयी। और इस दुष्ट व्यक्ति के बारे में जानना चाहते हो तो पुत्र दरअसल इसके भाग्य में राजयोग था जो कि इसके दुष्कर्म और अधर्म के कारण एक छोटे से धन की पोटली में परिवर्तित हो गया।
श्री कृष्ण अर्जुन को ये कथा सुनाने के बाद कहते है पार्थ क्या तुम्हे अब तुम्हारे प्रश्न का उत्तर मिल पाया। ऐसा सोचना की भगवान् लोगो के अच्छे कर्मो को नजरअंदाज कर रहा है ये बिल्कुल भी सत्य नहीं है। भगवान हमें क्या किस रूप में दे रहा है ये मनुष्य की समझ में नहीं आता है। लेकिन अगर आप अच्छे कर्म करते हैं तो भगवान की कृपा सदैव आप पर बनी रहती है। तो मित्रो इस कहानी से ये पता लगता है कि आपको कभी भी अपने कर्मों को बदलना नहीं चाहिए क्योंकि आपके कर्मों का फल आपको इसी जीवन में मिलता है बस आपको उसका पता नहीं चलता।इसलिए मित्रों मनुष्यों को चाहिए कि वह हमेशा अपने जीवन में अच्छे कर्म करता रहे क्योंकी श्री कृष्ण ने ही गीता में भी बताया है कि किसी के द्वारा किया गया कर्म बेकार नहीं जाता भले ही कर्म अच्छा हो या फिर बुरा। तो मित्रों आशा करता हूँ कि आप भी आज से इस कथा का अनुसरण करेंगे।