वायु प्रदूषण व धूम्रपान से बढ़ा अस्थमा
घर के पास जब यातायात प्रदूषण बढ़ जाता है तो अस्थमा होने का खतरा भी उतना ही बढ़ जाता है। जब भारी वाहनों का आवागमन बहुत ज्यादा हो जाता है तो अस्थमा होने का खतरा 1.2 से 1.7 गुना बढ़ जाता है। यह कहना है डॉ. सीतू सिंह का। वायु प्रदूषण व धूम्रपान से अस्थमा होने संबंधी शोध इंटरनेशनल जर्नल ऑफ अस्थमा में प्रकाशित हुआ है। शुक्रवार को प्रेसवार्ता के दौरान उन्होने बताया कि यह भारत का पहला अध्ययन है जिससे पता चलता है की वाहनों से होने वाले प्रदूषण से अस्थमा भी होता है। यह देश के 18 केंद्रों पर आयोजित की गई जिसमें जयपुर भी एक है। इस स्टडी में 93016 बच्चों का दो आयु वर्गो 5 से 6 साल एवं 13 से 14 वर्ष मेंं अध्ययन किया गया।
एसएमएस अस्पताल के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. भारत भूषण शर्मा ने बताया कि पैसिव धूम्रपान के साथ भी अस्थमा का खतरा बढ़ जाता है। जिन महिलाओं के बच्चे हैं और वे धूम्रपान करती है तो इससे बच्चों में अस्थमा होने की आशंका 2.1-2.7 गुना तक बढ़ जाती है। पिता के स्मोक करने से अस्थमा होने का खतरा 1.2-1.9 गुना बढ़ जाता है। यह एक अलार्म है है जिससे यह पता चलता है कि बच्चों को सिगरेट के धुएं के संपर्क में नहीं जाने देना चाहिए। यह पहली स्टडी है जिससे पता चलता है कि माता-पिता दोनों में से किसी एक का धूम्रपान करना बच्चों में अस्थमा का खतरा बढ़ाने का प्रमुख कारण हो सकता है।
इंडियन चेस्ट सोसाइटी के अध्यक्ष डॉ. वीरेंद्र सिंह ने बताया कि यह आंकडे भयावह रूप में सामने आए हैं। समय की मांग यह है कि सार्वजनिक परिवहन प्रणाली से यातायात प्रदूषण को नियंत्रित किया जाए, ट्रक और बस एवं भारी यातायात के प्रवेश पर प्रतिबंध लगे और वाहनों की मर मत की दुकानें आवासीय इलाकों से दूर हों।
यह मिला अस्थमा का प्रतिशत
– इस अध्ययन में 6 से 7 साल की उम्र में 5.62 प्रतिशत एवं 13 से 14 साल की उम्र में 5.41 प्रतिशत बच्चों को अस्थमा पाया गया।
– गंभीर अस्थमा होने की तकलीफ जयपुर में 62.94 प्रतिशत 6 से 7 साल में एवं 53.85 प्रतिशत 13 से 14 साल में पाई गई।