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पुलिस से अपमानित किशोरी ने सरकार से मिली मुआवजे की राशि जरूरतमंदों में बांटने का फैसला किया

तिरुवनंतपुरम: एक महिला पुलिस अधिकारी द्वारा सार्वजनिक रूप से अपमानित की गई आठ वर्षीय बच्ची और उसके पिता ने केरल हाईकोर्ट से न्याय मिलने के बाद, अब राज्य सरकार द्वारा दिए गए 1.5 लाख रुपये के मुआवजे को जरूरतमंदों के बीच साझा करने का फैसला किया है। मुआवजे का एक हिस्सा आदिवासी बच्चों को सशक्त बनाने के लिए आवंटित किया जाएगा और दूसरा हिस्सा मुख्यमंत्री आपदा राहत कोष (सीएमडीआरएफ) को दिया जाएगा।

न्यायमूर्ति देवन रामचंद्रन ने बुधवार को मामले में पूरी सुनवाई के दौरान मानवीय रुख अपनाते हुए केरल सरकार से महिला पुलिस अधिकारी रेजिता के उनके प्रति असभ्य व्यवहार के लिए लड़की को मुआवजे के रूप में 1.5 लाख रुपये का भुगतान करने को कहा था। नाबालिग लड़की के पिता जयचंद्रन ने शनिवार को कहा कि अगर राज्य सरकार उच्च पीठ के समक्ष अपील दायर किए बिना एकल पीठ के निर्देशानुसार 1.5 लाख रुपये का मुआवजा दे देती है, तो उनकी ओर से उस राशि को साझा किया जाएगा।

जयचंद्रन ने कहा, “एक हिस्सा मेरी बेटी के लिए इस्तेमाल किया जाएगा, दूसरा हिस्सा सीएमडीआरएफ को दिया जाएगा और तीसरा हिस्सा आदिवासी बच्चों को शिक्षित करने तथा उन्हें सशक्त बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाएगा।” न्यायमूर्ति रामचंद्रन ने फैसला सुनाते हुए कहा, “हम अपनी बेटियों को गुस्से के साथ बड़ा नहीं होने दे सकते, इसलिए तत्काल उपचारात्मक कदम उठाए जाने चाहिए। कोई भी विवाद नहीं कर सकता कि अनुच्छेद 21 के तहत सम्मानजनक जीवन जीने के उनके मौलिक अधिकार का उल्लंघन किया गया था।”

अदालत ने याचिकाकर्ता को 1,50,000 रुपये का मुआवजा दिए जाने का निर्देश देने के साथ ही और मामले में कानूनी खर्च के लिए 25,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया। अदालत ने निर्देश दिया कि संबंधित पुलिस अधिकारी के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू की जानी चाहिए और स्पष्ट किया कि इसका मतलब यह नहीं है कि उसे उसकी सेवा से हटा दिया जाना चाहिए।

लड़की ने सार्वजनिक, निजी और डिजिटल स्थानों पर महिलाओं की रक्षा करने वाली एक सर्व-महिला टीम ‘पिंक पुलिस’ की अधिकारी रेजिता के कारण हुए आघात के लिए मुआवजे की मांग करते हुए केरल उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। पिछली सुनवाई के दौरान, न्यायमूर्ति रामचंद्रन ने कहा था कि याचिकाकर्ता द्वारा मांगे गए मुआवजे को देना उचित है और राज्य सरकार से पूछा था कि वह उसे कितना भुगतान करने को तैयार है।

राज्य सरकार ने जवाब दिया और कहा कि उनका कोई मुआवजा देने का इरादा नहीं है, क्योंकि कुछ भी गलत नहीं किया गया था। अदालत ने तब एक शीर्ष पुलिस अधिकारी से पूरे घटनाक्रम का वीडियो देखने को कहा और मामले को बुधवार के लिए पोस्ट कर दिया। यह घटना 27 अगस्त की है, जब 38 वर्षीय जयचंद्रन और उनकी बेटी इसरो यूनिट के लिए उपकरण ले जा रहे एक बड़े ट्रेलर को गुजरते हुए देखने के लिए अटिंगल के पास बाहरी इलाके में अपने घर के बाहर आ गए थे।

अचानक महिला पुलिस अधिकारी रजिता ने अपना मोबाइल फोन गायब पाया और पुलिस गश्ती वाहन के पास खड़े जयचंद्रन पर चोरी करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि उसने जरूर अपनी आठ साल की बेटी को मोबाइल पकड़ा दिया होगा और इस काम में वह दोनों ही शामिल हैं। रजिता ने सार्वजनिक रूप से पिता और बेटी को अपमानित किया और दोनों को पास के पुलिस स्टेशन ले जाने की धमकी दी और इस घटनाक्रम को सड़क पर मौजूद बड़ी भीड़ ने देखा।

बाद में, रेजिता को वाहन में मोबाइल फोन मिला। घटनाक्रम को पास में ही खड़े एक व्यक्ति ने अपने मोबाइल में कैद कर लिया। इसके बाद उस वीडियो को सोशल मीडिया पर साझा किया गया और वह वायरल हो गया।

31 अगस्त को, जयचंद्रन ने राज्य के पुलिस प्रमुख अनिल कांत से संपर्क किया और पुलिस अधिकारी रेजिता के खिलाफ कार्रवाई की मांग की, क्योंकि उनकी बेटी सार्वजनिक रूप से अपमानित होने के कारण सदमे की स्थिति में थी।

कांत ने कार्रवाई का वादा करते हुए दक्षिण क्षेत्र की पुलिस महानिरीक्षक हर्षिता अटालूरी से जांच करने को कहा, जिसके बाद रजिता का तबादला कर दिया गया।

हालांकि, यह पता चला कि रजिता को एक अधिक सुविधाजनक स्थान पर स्थानांतरित कर दिया गया था और उसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई थी।

कोई और कड़ी कार्रवाई नहीं होने पर सितंबर में परिवार ने केरल सचिवालय के समक्ष महिला पुलिस अधिकारी के खिलाफ निष्क्रियता का विरोध करते हुए एक दिवसीय विरोध प्रदर्शन किया। इस पर भी किसी का ध्यान नहीं गया तो परिजन हाईकोर्ट पहुंचे।

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