छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ में मुआवजा हड़पने वाले दलाल पुलिस के निशाने पर

रायपुर: समाज में ऐसे लोग भी है जो मुसीबत में घिरने वालों को भी अपना निशाना बनाने से नहीं चूकते। ऐसे ही लोगों में शामिल है वह दलाल गिरोह, जो सरकार की ओर से मिलने वाली मुआवजा राशि में भी डाका डाल देते है। छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले की पुलिस ने नवाचार किया है और अब यहां के दलालों पर सीधी पुलिस की नजर है तो वहीं पीड़ितों को उनका हक दिलाने जमीनी स्तर पर काम हो रहा है।

ज्ञात हो कि राज्य और केंद्र सरकारें विभिन्न आपदाओं के प्रभावितों और शिकार बने लोगों के परिजनों को राहत देने के मकसद से क्षतिपूर्ति राशि देती है। कई योजनाओं में यह लाभ तब मिल पाता है जब समय पर प्रशासन तक आवेदन पहुॅचे और इसी का लाभ दलाल उठाते है। वहीं सरकारी प्रक्रिया जटिल होने का फायदा भी इन दलालों को मिलता है। इन दलालों के कुचक्र से पीड़ितों को बचाने के लिए कोरबा पुलिस ने क्षतिपूर्ति सेल का गठन किया है, जो सीधे पीड़ित के संपर्क में रहती है और प्रभावित परिवारों के आवेदनों का भी जल्दी निपटारा करने के प्रयास करती हैं।

छत्तीसगढ़ जनजाति बाहुल्य इलाका है यहां बड़ी तादाद में गांव में निवास करने वाले आपदाओं का शिकार बनते है। सरकारों ने पानी में डूबने से मौत, सर्पदंश से मौत, गाज गिरने से मौत सहित अन्य हादसों में असमय मौत के अलावा दुष्कर्म पीड़िता, हिंसा का शिकार , प्राकृतिक आपदा से होने वाले नुकसान और कई अन्य नुकसानों पर क्षतिपूर्ति का प्रावधान किया है। इसके पीछे एक मकसद है कि पीड़ित परिवार के जख्मों पर क्षतिपूर्ति के जरिए कुछ मरहम लगाया जा सके।

कोरबा के पुलिस अधीक्षक भोजराम पटेल ने अपनी पूर्व के स्थानों पर पदस्थापना के दौरान पाया कि आपदा पीड़ित को क्षतिपूर्ति राशि पाने के लिए कई तरह की कठिनाइयों के दौर से गुजरना होता है और इसी का लाभ दलाल उठा लेते है। ऐसा इसलिए क्योंकि हादसे का शिकार बने व्यक्ति का प्रकरण पुलिस में दर्ज होता है और क्षतिपूर्ति की राशि प्रशासन अर्थात तहसीलदार, अनुविभागीय अधिकारी व जिलाधिकारी के स्तर पर मिलती है। कई बार पुलिस की ओर से सभी आवश्यक कागजी खाना पूर्ति न होने पर पीड़ित वर्ग इस लाभ से वंचित हो जाता है, क्योंकि कई प्रकरण तीन माह के भीतर निराकृत हो जाना चाहिए।

पुलिस अधीक्षक भोजराम पटेल बताते है कि कोरबा में उन्होंने पीड़ित वर्ग को उसका हक समय से दिलाने के मकसद से जिला मुख्यालय पर एक क्षतिपूर्ति सेल बनाया है। इस सेल में पदस्थ कर्मचारी थाने स्तर से आने वाले प्रकरणों की समीक्षा करते है। थाना पर दर्ज होने वाले प्रकरण की प्रक्रिया पूरी होने पर वह फाइल सेल के पास आती है और उसका त्वरित निपटारा कर उसे संबंधित अधिकारी के पास भेजा जाता है, जिससे समय रहते प्रभावित वर्ग को सरकार की योजना का लाभ और क्षतिपूर्ति राशि मिल जाती है ।

वैसे ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोग सरकारी योजनाओं से वाकिफ कम होते है, ऐसे में पुलिस ने एक तरीका अपनाया है, जिसमें पुलिस हर गांव की जनसंख्या का डाटा कोटवार के जरिए जुटाती रहती है। पटेल बताते है कि कोटवार अपने गांव में होने वाली मौत और जन्म का ब्यौरा रखता है, पुलिस कोटवार के इन आंकड़ों का परीक्षण करती रहती है। जब किसी की मौत का पता चलता है तो उसका कारण पता किया जाता है, अगर मौत की वजह आपदा है तो उसका प्रकरण तैयार करने की प्रक्रिया अपनाई जाती है।

पुलिस अधीक्षक बताते है कि एक तरफ पीड़ित अपनी परेशानी से उबरने के लिए संपत्ति तक को बेच देता है और तो वहीं क्षतिपूर्ति की राशि दिलाने के नाम पर सक्रिय दलाल उसके हिस्से की रकम हजम कर जाते है। इस व्यवस्था से जहां पीड़ित को उसका हक मिल रहा है, वहीं आमजन में प्रशासन व सरकार के प्रति भरोसा भी बढ़ेगा ऐसा उम्मीद है।

आमतौर पर पुलिस अपने तक आने वाली शिकायतों और अपराध की सूचना पर ही कार्रवाई करती है, मगर कोरबा की पुलिस ने आपदा पीड़ितों की मदद के लिए नवाचार किया है। इस नवाचार से उन दलालों के पीड़ित की रकम हजम करने के रास्तें बंद होंगे तो वहीं पीड़ित को पूरा हक और वह भी समय से हासिल हो जाएगा।

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