जानें क्या अंतर है रुई की बाती और कपूर में, दोनों का ही होता है आरती में प्रयोग
सनातन धर्म या हिंदू धर्म में देवी देवता की पूजा सुबह और शाम दोनो ही समय की जाती है। हिंदू धर्म में आरती का अत्यंत महत्व है। आरती भगवान की पूजा के बाद की जाती है। बिना आरती के पूजा का कोई महत्व नही और बिना पूजा के आरती का। हर हिंदू के घर में भगवान की सुबह और शाम दो ही वक्त आरती होती हैं। भक्त भगवान की आरती रुई की बाती को घी या तेल के दीपक में लगा कर या फिर कपूर यानी जोत से करते हैं। बाती और कपूर इन दोनों की चीज़ों का अपना अपना महत्व हैं। जिस घर में भगवान की दोनों समय पूजा की जाती है, वहां भगवान होते है। आज हम आपको बताएंगे की, बाती और कपूर से की गई आरती में क्या अंतर होता है
क्या अंतर है बाती और कपूर में
भगवान की आरती इन दोनों से ही की जाती है। बाती को घी या तेल में भिगो तांबे या पीतल के दिए में प्रज्जवलित की जाती है। इसमें जितना आप घी और तेल डालेंगे इसकी लौ उतनी ही देर तक जलेगी। वहीं बात करें कपूर की तो, इससे आरती करने के लिए मिट्टी के दिये या फिर पान के ऊपर कपूर रखकर उसपर शकर कुछ दाने डाल कर प्रज्जवलित किया जाता है। कपूर बहुत देर तक नही जलता है। यह जल्दी ही शांत हो जाता है।
क्या है बाती से की गई आरती का महत्व
हर घर में घी में बाती से दिया लगाया जाता है, घी को समृद्धी का प्रतीक माना जाता है। मान्यता के अनुसार, घी व्यक्ति के स्वभाव में हो रहा रूखापन को दूर कर देता है और उसे स्नेह देता है। भगवान के सामने घी का दिया लगाने से व्यक्ति के जीवन में भी घी की तरह चिकनाहट बनी रहती है। इसके साथ ही भक्त के सभी काम बड़ी ही सहजता से पूरे हो जाते है।
क्या है कपूर से कि गई आरती का महत्व
मान्यता के अनुसार, कपूर की गंध तेजी से फैलकर वातावरण और ब्रम्हाण्ड में मौजूद सभी सकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करती है। जो देवी देवता के लिए पूजन स्थल तक का मार्ग बना देता है। पूजा के वक्त जलाए गए कपूर से निकला हुआ धुआं वातावरण में फैल कर भक्तों को ब्रह्मांडीय की सभी शक्ति से जोड़ता है।